कलमकारी भारत की करीब तीन हजार पुरानी कला है। शुरू में इसे मंदिरों में सजावट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था, पर अब यह फैशन के साथ तालमेल बिठाते हुए वस्त्रों पर भी दिखाई देने लगी है। साड़ी हो, सलवार-सूट-दुपट्टा, प्लाजो या फिर डेनिम से बने वस्त्र, अनेक नामी-गिरामी वस्त्र डिजाइनर कलाकारों की मदद से कलमकारी की देसज परंपरा को उन पर सहेज रहे हैं। कलमकारी के फैशन पर चर्चा कर रही हैं अनुजा भट्ट।

अं गरेजी का एक मुहावरा फैशन की दुनिया में अक्सर सुनाई देता है- ‘ओल्ड इज गोल्ड’, यानी जो पुराना है वह सुनहरा है। फैशन में कलमकारी डिजाइन की चमक-दमक को हम इसी रूप में देख सकते हैं। करीब तीन हजार वर्ष पूर्व भारत में कलमकारी की कला विकसित हुई थी। सबसे पहले इसकी शुरुआत आंध्रप्रदेश के गांवों से हुई। वहां के श्रीकलाहस्ति में आज भी कलमकारी के लिए कलम का उपयोग होता है, जबकि मछलीपुरम में ठप्पों का चलन है। वैसे इसकी जड़ें ईरान में भी हैं। वहां की कलमकारी भी विश्वप्रसिद्ध है। भारत में इस कला का विस्तार कुतुबशाही राजवंश ने किया। निजाम ने ही सबसे पहले कलमकारी शब्द का प्रयोग किया। अन्य अनेक लोककलाओं की तरह इस कला को भी स्थानीय मंदिरों का आश्रय प्राप्त हुआ। मंदिरों की दीवारों पर भित्तिचित्रों के रूप में इसका चित्रण किया जाता था, जिसमें चित्रों के माध्यम से कहानी कही जाती थी। आज भी इस कला में मानव आकृतियों के साथ पुराण और रामायण के प्रसंगों को चित्रित किया जाता है। कलाकृतियों के किनारों को फूल-पत्तियों के आकर्षक नमूनों से सजाया जाता है।

कलमकारी का अर्थ कलम की सहायता से छपाई की कला है। यह कपड़ों पर पेंटिंग और छपाई की एक पुरानी दस्तकारी शैली है। मछलीपट्टम कलमकारी और फारसी कलमकारी की पहचान पुष्प और लताओं की डिजाइन को देख कर की जा सकती है। यह ब्लॉक द्वारा छापा जाता है। श्रीकलाहस्ति में चित्रों के माध्यम से रामायण और महाभारत की कहानी कही जाती है। मान्यता है कि हिंदू धर्म के विकास के लिए लोकगायक और चित्रकार साथ-साथ गांव-गांव जाते और धर्म का प्रचार करते थे। कला का प्रयोग धर्म के विकास के लिए किया जाता था। आज यह कला फैशन के मेल के साथ पूरी दुनिया में अपनी चमक फैला रही है।  आमतौर पर कलमकारी का काम खादी, सूती और सिल्क आदि पर होता है। पर समय के हिसाब से इसमें परिवर्तन भी हुए हैं। आज के दौर में सबसे ज्यादा पसंदीदा फैब्रिक डेनिम है, इसलिए डेनिम में भी यह कला अपने रंग बिखेर रही है। डेनिम की बनी जैकेट, स्कर्ट, प्लाजो, पैंट से लेकर हैंडबैग में भी इसके डिजाइन देखे जा सकते हैं। आंध्र प्रदेश के कलाकार सी. सुब्रह्मण्यम कलमकारी पेंटिंग के लिए जाना-पहचाना नाम है। इस कला के लिए उन्हें 1973 में नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है। सुब्रह्मण्यम कहते हैं कि कलमकारी पेंटिंग की बारीकियां उन्होंने 1964 में आंध्र के इंडस्ट्री डिपार्टमेंट से दो साल का कोर्स करके सीखी थीं।

इस पेंटिंग में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे कलाकार खुद घर पर बनाते हैं। फिर इन रंगों से बाजार से खरीदे गए कपड़ों पर चित्रकारी करते हैं। जैसे बाजार से चंदेरी सिल्क और अन्य कोई कपड़ा ले लेते हैं, फिर अगर काला रंग बनाना होता है, तो उसमें सबसे पहले गुड़ को पानी में मिलाते हैं, जिससे काला रंग बन जाता है। इसी तरह लाल रंग बनाने के लिए चावल, सुरूड चक्का, रूट और फिटकरी को गरम पानी में मिलाया जाता है। इस तरह प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल कर रंगों को तैयार किया जाता है।  इसके डिजाइन इस समय जींस, स्कर्ट, टॉप, कुर्ती, साड़ी, प्लाजो में भी दिखाई दे रहे हैं। सादा शिफॉन की साड़ी के साथ कलमकारी के डिजाइनडर ब्लाउज काफी पसंद किए जा रहे हैं। कलमकारी के परंपरागत रंग मैरूम के अलावा और भी कई शेड्स हैं, जिन्हें लोग पसंद कर रहे हैं- जैसे ग्रे, ब्लैक, ब्राउन, क्रीम और रेड। कपड़े की कीमत दो सौ रुपए मीटर से शुरू हो जाती है।

साड़ी : साड़ी में कलमकारी के कई तरह के डिजाइन प्रयोग में लाए जाते हैं। कहीं पूरी साड़ी में इस तरह का डिजाइन होता है तो कहीं सिर्फ बार्डर और पल्लू में। साड़ी के पल्लू में विशेष तौर पर जोर दिया जाता है, जिसमें देवी-देवता, लक्ष्मी नारायण, राधा-कृष्ण की लीलाएं चित्रित का जाती हैं। सादे सिल्क की साड़ी में इस तरह के डिजाइन खास पसंद किए जा रहे हैं। एकरंगी साड़ी के बजाय अब बहुरंगी साड़ियों का चलन बढ़ा है। मोटिफ में अब भी फूल पत्तों का ही प्रयोग होता है। पक्षियों में मोर के डिजाइनों की मांग ज्यादा है। दूर से देखने पर यह आभास होता है कि साड़ी में कसीदारी की गई है, पर यह सब पेटिंग का कमाल है। असम में पहने जाने वाली साड़ी, जिसे मेखला चादर के नाम से जाना जाता है, उसी तरह की साड़ी इस समय फैशन में है, जो अलग-अलग रंगों और डिजाइन से बनी होती है। साड़ी के ऊपरी हिस्से में कलमकारी के सुंदर डिजाइन बने होते हैं, तो नीचे का हिस्सा सादा होता है। इसे हम कंट्रास्ट भी कह सकते हैं। साड़ी के डिजाइन में जिस तरह से बदलाव आया है वैसा ही बदलाव उसके पहनने-ओढ़ने में भी है। अब टू पीस साड़ी, स्कर्ट साड़ी, लहंगा साड़ी का चलन है। यह एक तरफ बिल्कुल परंपरागत तरीके से है, यानी ढांचा वैसा ही है जैसे तीन हजार साल पहले था, पर रंगों में विविधता आई है। परंपरागत रंगों की जगह अब सब तरह के रंग आजमाए जा रहे हैं।

ब्लाउज : साड़ी हो या लंहगा, डिजाइनर ब्लाउज सब पर जंचता है। आजकल डिजाइनर ब्लाउज का फैशन है। यह सिल्क और काटन दोनों तरह से पहना जा सकता है। यहां भी जलवा कलमकारी का है। कहीं पूरा ब्लाउज कलमकारी से सजा है, तो कहीं इसका प्रयोग सिर्फ मोटिफ के तौर पर किया गया है। कहीं पूरा आस्तीन है, तो कहीं कट स्लीव। कहीं पीछे की तरफ डिजाइन है, तो कहीं आस्तीनों में। डोरी और घुंघरुओं का प्रयोग एक बार फिर से छा गया है। इसी के साथ वेस्टर्न लुक भी ब्लाउज में दिखाई दे रहा है, जिसे शर्ट और टी-शर्ट लुक कह सकते हैं।  सलवार-कुर्ता : अगर कलमकारी डिजाइन का सलवार-कुर्ता है, तो उसके साथ सादा दुपट्टा है। और अगर सादा सूट है तो कलककारी डिजाइन का दुपट्टा। दुपट्टा अब फिर से फैशन में लहराने लगा है। सलवार-कुर्ते के अलावा यह अब स्कर्ट या प्लाजो के साथ भी पहना जा रहा है।

प्लाजो : कुछ-कुछ स्कर्ट और पैजामे की झलक प्लाजो में है। यह पहनने में सुविधाजनक भी है और माडर्न लुक भी देता है, इसलिए युवाओं की यह पहली पसंद बन गया है। कलमकारी के दीवाने यहां भी हैं। प्लेन टॉप के साथ डिजाइनर कलमकारी प्लाजो अपनी नई रंगत बिखेरता है। यह भी देखने में आ रहा है कि इस समय फैशन में कंट्रास्ट पर ज्यादा जोर है। फ्रॉक और मैक्सी डेÑस में भी इस तरह के खूबसूरत डिजाइनों की भरमार है।
स्कर्ट : लांग स्कर्ट हो या शार्ट, सबमें इसके डिजाइन उपलब्ध हैं। पर यहां भी कंट्रास्ट है। स्कर्ट में कलमकारी डिजाइन, तो टॉप सादा। स्कर्ट के कट्स और स्टाइल कई तरह के हो सकते हैं। लंहगा-चुन्नी भी इन दिनों फैशन में है।कहने का अभिप्राय यह कि परंपरागत कला जब आधुनिक डिजाइन के साथ पेश की जाती है, तो उसके चाहने वालों की संख्या अचानक बढ़ जाती है। इस समय भारतीय परिधानों की धूम विदेशों में भी बहुत है। ये सारे डिजाइन और ड्रेस आनलाइन भी मिल सकते हैं। १

कलमकारी भारत की करीब तीन हजार पुरानी कला है। शुरू में इसे मंदिरों में सजावट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था, पर अब यह फैशन के साथ तालमेल बिठाते हुए वस्त्रों पर भी दिखाई देने लगी है। साड़ी हो, सलवार-सूट-दुपट्टा, प्लाजो या फिर डेनिम से बने वस्त्र, अनेक नामी-गिरामी वस्त्र डिजाइनर कलाकारों की मदद से कलमकारी की देसज परंपरा को उन पर सहेज रहे हैं। कलमकारी के फैशन पर चर्चा कर रही हैं अनुजा भट्ट।

आ ज सारा घर सजा हुआ था। सब बने-ठने घूम रहे थे। व्यस्त होने के बावजूद मम्मी, पापा और चाचा के चेहरों पर खुशी झलक रही थी। दादाजी का तो पूछो ही मत। सफेद कुर्ते-पाजामे पर आसमानी सदरी और नए जूते पहन कर खूब जंच रहे थे। खुशी के कारण उनकी मूंछें गालों पर उठी जा रही थीं। आज उनका जन्मदिन मनाया जा रहा था। वे पूरे सत्तर साल के हो गए थे।  घरवालों के लिए दादाजी का जन्मदिन मनाया जाना सुखद आश्चर्य था। दादी के गुजरने के बाद वे किसी भी उत्सव में शामिल नहीं होते थे। कमरे में चुपचाप अकेले बैठे रहते। बाहर भी बहुत कम आते-जाते। पर दो दिन पहले उन्होंने चाचा को बुला कर कहा कि वे अपना जन्मदिन मनाना चाहते हैं। सब बहुत खुश हुए। दादाजी ने बेकरीवाले से केक के लिए खुद बात की। सारा घर दादाजी में आए इस बदलाव से बहुत हैरान था। पापा ने उत्साह में पूरा घर सजवा दिया था। चाचा ने पड़ोस से मिस्त्री को बुलवा कर बिजली की झालरें भी लगवा दी थीं। यह सब देख-देख कर दादाजी भी उत्साहित हो रहे थे।

मेहमानों को बुलाने की जिम्मेदारी दादाजी ने अपने जिम्मे ले रखी थी। उन्होंने कह रखा था कि जन्मदिन पर वे सिर्फ अपने दोस्तों को बुलाएंगे, और किसी को नहीं। पापा को भला कब इनकार हो सकता था। वे तो उनकी हर बात के लिए राजी थे। शाम होते ही दादाजी अपनी छड़ी लेकर बेसब्री से टहलने लगे। उन्हें अपने दोस्तों का इंतजार था। वे बार-बार दरवाजे तक जाकर झांक आते। उनकी बेचैनी देख कर पापा ने कहा, ‘बाबूजी, आपने सबको आमंत्रित तो कर लिया था न? कोई छूटा तो नहीं? कहिए तो मैं फोन करके दुबारा याद दिला दूं?’ ‘मेरे दोस्तों के पास फोन नहीं है।’ दादाजी ने सपाट-सा उत्तर दिया और गर्दन ऊंची करके सड़क की ओर देखने लगे। दादाजी के उत्तर पर पापा को बहुत आश्चर्य हुआ। दादाजी के दोस्त ही कितने थे। पुरुषोत्तम अंकल, गयादीन अंकल, करीम अंकल और गुरुसेवक अंकल। उन सबके पास अपने मोबाइल फोन थे। वे अक्सर एक-दूसरे से बात भी करते रहते थे। पापा को समझ में नहीं आ रहा था कि दादाजी ने ऐसा क्यों कहा? थोड़ी देर चुप रहने के बाद पापा फिर बोले, ‘पुरुषोत्तम अंकल तो अभी होम्योपैथ के क्लीनिक पर बैठे थे। मेरी उनसे बातचीत भी हुई। पर ऐसा लगा जैसे उन्हें आपके जन्मदिन की खबर नहीं है।’

‘आं… हां…’, दादाजी अनमने होकर बोले, ‘चलो, उनको भी बुला लेता हूं।’ यह कह कर दादाजी उन्हें फोन मिलाने लगे।पापा के माथे पर बल पड़ गए। पुरुषोत्तम अंकल दादाजी के सबसे गहरे दोस्तों में से थे। वे उन्हें कैसे भूल गए? दादाजी रोज शाम को पार्क में टहलने के लिए निकलते थे। अपने दोस्तों से मिलते, बातें करते और लौट आते थे। इधर कुछ दिनों से वे पार्क जाने के लिए उतावले रहते थे। सूरज ढलने से पहले तैयारी शुरू कर देते। उनके चेहरे की चमक देखते ही बनती थी। कहते थे कि उनके कुछ नए दोस्त बने हैं। उनसे बातचीत और मौज-मस्ती में समय पता ही नहीं चलता। दो दिन पहले की बात है। दादा जी पार्क से लौट कर आए और चहकते हुए कहने लगे, ‘इस बार मुझे अपना जन्मदिन मनाना है। मेरे दोस्तों ने कहा है, इस बार वे केक जरूर खाएंगे।’
पापा हैरानी से सोच रहे थे कि आखिर ये नए दोस्त कौन से हैं, जिनके कारण दादाजी पुरुषोत्तम अंकल जैसे बचपन के दोस्त को भूल गए?
काफी देर हो गई तो चाचा ने कहा, ‘बाबूजी अब देर हो रही है। हमें केक काट लेना चाहिए।’

‘नहीं, नहीं, अभी नहीं। बस थोड़ा-सा इंतजार और। मेरे दोस्त आते ही होंगे।’ दादाजी घड़ी की ओर देखते हुए बेचैनी से बोले। थोड़ा समय और बीता। पापा थक कर बैठ गए। चाचा भी अपना मोबाइल निकाल कर अंगुलियां फिराने लगे। तभी अचानक दरवाजे की घंटी बजी। दादाजी चहक उठे। चाचा ने बढ़ कर दरवाजा खोला तो ‘हैप्पी बर्थ डे’ गाते हुए ढेर सारे बच्चे अंदर आ गए। दादाजी का चेहरा खिल उठा। कोई छोटा, कोई मोटा, किसी के सिर खजूर जैसी चोटी, किसी के बिखरे बाल, किसी के गुब्बारे जैसे गाल, कोई गोल-मटोल, कोई बार्बी डॉल। लगा जैसे सारा घर रंग-बिरंगे फूलों से भर गया है।
दादाजी की खुशी देखने लायक थी। उन्होंने केक काटा। सबने जोर-जोर से ‘हैप्पी बर्थ डे’ गाया। बड़ी देर तक हंगामा होता रहा। दादाजी ने दोस्तों के साथ खूब मस्ती की। अंताक्षरी खेली, म्युजिकल चेयर में हिस्सा लिया, डीजे गानों पर डांस किया। मम्मी, पापा और चाचा भी बेहद खुश थे। दादाजी के दोस्तों के साथ उन्होंने भी खूब मजे किए। १