Celebratory Firing: करीब साल भर पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान शादियों में मनाए जाने वाले जश्न के दौरान ‘अनियंत्रित और अनुचित’ गतिविधियां और गोलीबारी को लेकर सख्त टिप्पणी की थी। तब अदालत की एक पीठ ने कहा था कि ‘विवाह समारोहों के दौरान जश्न में बंदूक से गोलियां चलाना चिंताजनक है, लेकिन इसका चलन बढ़ गया है। ऐसे मामले इस तरह की अनियंत्रित और अनुचित जश्न गोलीबारी के विनाशकारी परिणामों के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
हाल में नोएडा में एक शादी के जश्न के दौरान एक व्यक्ति ने गोलीबारी की, जिसमें ढाई साल के एक बच्चे की जान चली गई। इसके बाद ग्रेटर नोएडा में ही इसी तरह की अन्य घटना में दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। ऐसा पहली बार नहीं है जब हर्ष गोलीबारी से किसी की जान चली गई। यह प्रकारांतर से हत्या ही है, मगर ऐसे मामलों में अगर पुलिस सक्रिय हुई, पीड़ित पक्ष ने कानून का सहारा लिया, तब सिर्फ ‘गैरइरातन हत्या’ की धाराओं के तहत कार्रवाई होती है। सवाल है कि जश्न को अभिव्यक्त करने की शक्ल क्या ऐसी हो सकती है कि उसमें इस बात का खयाल रखना जरूरी न समझा जाए कि उससे किसी जान चली जाएगी!
शादी या किसी अन्य मौके पर खुशी को सामूहिक रूप से अभिव्यक्त करना एक स्वाभाविक सामाजिक चलन है। जश्न मनाना भी सामान्य है, जब तक यह इसमें शामिल लोगों की खुशियों को आपस में बांटने का जरिया है। लेकिन अगर किन्हीं हालात में जश्न के दौरान खुशी को अभिव्यक्त करने का तरीका ऐसा हो, जो किसी व्यक्ति या परिवार या फिर अन्य लोगों के लिए दुख का कारण बन जाए, तो यह सोचने की जरूरत है कि वह कितना उचित है।
शादी-ब्याह के अवसर पर जब बारात विवाह स्थल की ओर बढ़ रही होती है, तब यह उसमें शामिल लोगों के साथ-साथ देखने वालों के लिए भी उल्लास का समय होता है। मगर उसी बारात में शामिल कोई व्यक्ति अपनी खुशी को जाहिर करने के नाम पर हिंसक भाव का प्रदर्शन करता है, तो कोई भी संवेदनशील व्यक्ति या समूह उसका समर्थन नहीं कर सकता।
अभिव्यक्ति में विकृति
विडंबना यह है कि पिछले कुछ वर्षों में किसी जश्न में उल्लास की अभिव्यक्ति के रूप में जिस तरह की प्रवृत्तियों ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है, उसकी जड़ें हिंसा और सामंती कुंठा से जुड़ी दिखती हैं। यह समझना बेहद आसान है कि अगर कोई व्यक्ति जश्न मनाने या खुशी को जाहिर करने के लिए बंदूक या पिस्तौल से हवा में गोली चलाता है, तो यह गोलीबारी अपने मूल में क्या है। बारात के झूमने-नाचने या जश्न मनाने के बीच हवा में गोली चलाने वाला कोई व्यक्ति ठीक गोलियां चलाते समय किस मानसिकता की जकड़ में रहता है? खुशी को जाहिर करने के लिए गोलियां चलाना जरूरी क्यों है? आमतौर पर गोलीबारी करने का नतीजा क्या होता है? हवा में चलाई गई गोली के पीछे कौन-सी मानसिकता काम करती है?
दरअसल, शादी-ब्याह या जश्न मनाने के अन्य अवसरों पर हवा में की गई गोलीबारी के पीछे सामंती अकड़, हिंसा की कुंठा जैसे मनोभाव छिपे होते हैं, जिसके वशीभूत कोई व्यक्ति भारी संख्या में मौजूद लोगों के बीच हवा में गोलियां चलाता है। मगर ऐसा करते हुए शायद वह भूल जाता है कि उसके बंदूक या पिस्तौल की नली कभी बेलगाम भी हो जा सकती है और उससे निकली गोली किसी की नाहक जान भी ले ले सकती है।
ज्यादातर मामलों में हथियार अवैध रहते हैं
अव्वल तो यह कैसे संभव हो पाता है कि कोई व्यक्ति वैध या अवैध हथियार लेकर काफी लोगों के बीच उसे असुरक्षित तरीके से चलाता है। फिर ज्यादातर मामलों में यही देखा जाता है कि हर्ष गोलीबारी करने वाले व्यक्ति का पिस्तौल या बंदूक अवैध होती है। सवाल है कि बारात में शामिल जिम्मेदार लोग इस बात की इजाजत कैसे देते हैं कि कोई व्यक्ति हथियार लेकर साथ चल रहा है और गोलीबारी भी कर रहा है, भले ही वह हवाई हो।
दूसरे, स्थानीय प्रशासन या पुलिस यह सुनिश्चित करने में क्यों नाकाम रहते हैं कि पारिवारिक समारोहों या जश्न के मौके पर कोई व्यक्ति हथियार लेकर न शामिल हो। जबकि इस बात की आशंका हर वक्त बनी रहती है कि उल्लास में बेलगाम होकर कोई पिस्तौल या बंदूक चलाने वाले का निशाना समारोह में शामिल किसी व्यक्ति की ओर हो जाए, कोई छोटा बच्चा मारा जाए।
ऐसे मौकों पर अवैध हथियार लेकर चलने वाले इस बात से बेखौफ क्यों रहते हैं कि वे मनमर्जी तरीके से जश्न मनाने के नाम पर हवा में गोलीबारी करेंगे और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ेगा? वे किस बात को लेकर आश्वस्त रहते हैं कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी?
जानलेवा शौक पर नहीं लग पा रही रोक
हालांकि आए दिन इस तरह की खबरें आती रहती हैं, जिनमें यह बताया जाता है कि किसी बारात में या स्थानीय स्तर पर आयोजित किसी मनोरंजन के कार्यक्रम में उत्साह में आकर चलाई गई गोली से वहीं पास में खड़े किसी व्यक्ति की मौत हो गई। यों भी भीड़भाड़ वाली जगह में किसी भी रूप में हथियार के प्रयोग से जनहानि का खतरा बना रहता है। मगर इसके बावजूद लोग हथियारों और उन्हें चलाने का प्रदर्शन करने से नहीं हिचकिचाते।
विडंबना यह भी है कि हथियारों से लैस लोगों के आसपास खड़े दूसरे लोग भी इसी मिजाज में होते हैं और शायद ही कभी गोलीबारी से रोकने की कोशिश की जाती हो। इसके त्रासद नतीजे में नाहक किसी की मौत हो जाती है और इसके बाद उसी जश्न में शामिल लोगों को होश आता है कि बहुत गलत हो गया। सवाल है कि किसी की जान चले जाने के बाद केवल पछताने से क्या मिलता है। खासतौर पर जब पहले के त्रासद उदाहरण सामने हों, लोगों को गोलीबारी में जरा-सी चूक के नतीजे मालूम हों, तब भी उन्हें समय पर रुकना या रोकना जरूरी नहीं लगता। ऐसे में अगर जश्न मनाने के नाम पर हर्ष गोलीबारी की जाती है, तो गोली चलाने वाले व्यक्ति के साथ-साथ उसके आसपास मौजूद और उसका उत्साह बढ़ाने वाले अन्य लोगों को भी कठघरे में क्यों नहीं खड़ा किया जाना चाहिए?
किसी खुशी के मौके को मातम में बदलने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। हिंसक अभिव्यक्ति को किसी भी लिहाज से खुशी को प्रकट करने का एक तरीका नहीं कहा जा सकता। इस तरह की प्रवृत्ति सिर्फ सामंती और हिंसक कुंठा का ही सूचक है, जो किसी भी व्यक्ति का अमानवीकरण करता है। जबकि जश्न मनाना एक सामुदायिक भागीदारी है, जिसमें किसी खुशी के मौके को समूह के स्तर पर साझा किया जाता है। कोई भी नहीं चाहेगा कि खुशी में शामिल होने आए किसी शख्स की जान सिर्फ इसलिए चली जाए कि किसी अन्य व्यक्ति को खुशी प्रकट करने के लिए बंदूक चलाना जरूरी लगता है।
बंदूक रखना शान या हीनताबोध का प्रदर्शन
एक समस्या यह है कि परिवारों में बंदूक रखना शान और ताकत का प्रतीक माना जाता है। पितृसत्तात्मक सोच और कुंठाओं से घिरे लोगों को बंदूक का सार्वजनिक प्रदर्शन करना अपने रोब में इजाफा करना लगता है। जबकि इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष यह है कि अगर कोई व्यक्ति इस तरह बंदूक रखने या उसका नाहक ही प्रदर्शन करने की इच्छा रखता है, तो यह उसके आत्मविश्वास में कमी का सबूत है। हीन भावना से भरे लोग यही समझते हैं कि बंदूक लहराने या गोलियां चलाने से सामने के बाकी लोग उसके नियंत्रण में रहते हैं। ऐसे लोग एक तरह से मानसिक रूप से बीमार होते हैं, जो हिंसा को अपने मानसिक ढांचे में प्रमुख पक्ष बना लेते हैं।
इस तरह की घटनाओं के बढ़ते जाने की वजह से ही अब कई लोग आक्रामक तरीके से मनाए जाने वाले जश्न में शामिल होने से हिचकने लगे हैं। अगर किसी खुशी को मातम का एक आयोजन बनने से रोकना है, तो इसके लिए सरकार और समाज को अपने स्तर पर सख्त और ठोस पहल करनी होगी। इस मसले पर कानूनों को सख्ती से लागू करने और जरूरत पड़ने पर ज्यादा सख्त कानून बनाना वक्त का तकाजा है। समाज को भी अपने स्तर पर किसी भी बारात या जश्न के अन्य मौके पर बंदूक-पिस्तौल या अन्य हथियार चलाने की प्रवृत्ति पर रोक लगानी चाहिए। वरना इस तरह की प्रवृत्ति अगर फैलती गई तो खुशी में भय घुल जाएगा और तब खुशी वास्तव में खुशी नहीं रह जाएगी।
बड़ा सवाल- हथियार रखने और फायरिंग की इजाजत क्यों देते हैं लोग
बारात में शामिल जिम्मेदार लोग इस बात की इजाजत कैसे देते हैं कि कोई व्यक्ति हथियार लेकर साथ चल रहा है और गोलीबारी भी कर रहा है, भले ही वह हवाई हो। दूसरे, स्थानीय प्रशासन या पुलिस यह सुनिश्चित करने में क्यों नाकाम रहते हैं कि पारिवारिक समारोहों या जश्न के मौके पर कोई व्यक्ति हथियार लेकर न शामिल हो। जबकि इस बात की आशंका हर वक्त बनी रहती है कि उल्लास में बेलगाम होकर कोई पिस्तौल या बंदूक चलाने वाले का निशाना समारोह में शामिल किसी व्यक्ति की ओर हो जाए, कोई छोटा बच्चा मारा जाए।
बिहार में हथियारों का प्रदर्शन क्यों बन रहा मिसाल
शादी -ब्याह के मौके पर जश्न मनाने के क्रम में बंदूक या पिस्तौल से गोलियां चलाना पूरे देश में एक बड़ी समस्या है। बिहार में हर्ष गोलीबारी और हथियार प्रदर्शन की घटनाओं में लगातार इजाफे की बढ़ती शिकायतों की वजह से पुलिस-प्रशासन भी परेशान थी। इससे होनेवाले नुकसान को नियंत्रित करने के लिए शस्त्र (संशोधन) अधिनियम, 2019 लाया गया। इस अधिनियम के तहत हर्ष गोलीबारी करने वालों को दो वर्ष की जेल या एक लाख रुपए तक का जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान किया गया।
बिहार पुलिस मुख्यालय द्वारा ऐसी घटनाओं पर पूरी तरह से अंकुश लगाने के लिए जून 2023 में स्थायी आदेश के माध्यम से सभी जिलों को ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया। इसके तहत सभी जिलों को प्रत्येक थाना क्षेत्र के सभी शस्त्र लाइसेंस के साथ-साथ शस्त्र लाइसेंस धारकों और रिटेनर का नियमित रूप से वार्षिक सत्यापन करने, वैवाहिक, सांस्कृतिक, आर्केस्ट्रा और इस प्रकार के अन्य कार्यक्रमों के आयोजन से जुड़ी जानकारी प्रत्येक थाने को कार्यक्रम से पहले ही आयोजकों द्वारा देने, इन जगहों पर सीसीटीवी कैमरे की व्यवस्था करने, आयोजनकर्ताओं से हर्ष गोलीबारी से जुड़े घोषणा-पत्र को भरवाने, आशंका वाली जगहों को लेकर पूर्व सावधानी बरतने, और वीडियोग्राफी कराने के निर्देश जारी किए गए। इसका नतीजा यह सामने आया कि बिहार में जून 2022 से मई 2023 के बीच जश्नी गोलीबारी में होने वाली मौत और घायलों की संख्या 58 थी, जबकि जून 2023 से मई 2024 के बीच इसकी संख्या 29 रही। यानी ऐसी घटनाओं में पचास फीसद तक की कमी आई।
दरअसल, जश्न में गोलीबारी और हथियार प्रदर्शन करने वालों पर पुलिस की ओर से तत्काल सक्रियता दिखा कर कार्रवाई की गई। साथ ही, बिहार पुलिस की ओर से सोशल मीडिया पर हर्ष गोलीबारी के विरुद्ध लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से निरंतर जन जागरूकता अभियान भी चलाया गया।
कानून का कठघरा और गैरकानूनी हरकत करने का दुस्साहस
जश्न में गोलीबारी के जो खमियाजे सामने आ रहे हैं, वे त्रासद हैं। हालांकि यह ऐसे कानूनों के बावजूद चल रहा है, जो इस पर सख्त पाबंदी लगाते हैं। जाहिर है, अगर कानून के बावजूद कुछ लोग जश्न के मौके पर गोलियां चला कर अपनी शान बघारने से नहीं हिचकते हैं, गैरकानूनी हरकत करने का दुस्साहस करते हैं, तो यह कानून के शासन की ही नाकामी है। इस संबंध में शीर्ष अदालत की स्पष्ट टिप्पणी थी कि ‘भारतीय संविधान जीवन के संरक्षण को बहुत महत्त्व देता है। अवैध और बिना लाइसेंस वाले हथियारों का प्रसार रोकना होगा। यदि नहीं, तो यह कानून के शासन के लिए एक बड़ा झटका होगा।’ मसला यह है कि शासन इस संबंध में कितना सख्त या नरम रवैया अख्तियार करता है।
भारत में हैं कानूनी रोक के सख्त प्रावधान, अमल नहीं
जहां तक इस संबंध में कानूनों का सवाल है, तो भारत में इसे लेकर सख्त कानूनी प्रावधान हैं। हर्ष गोलीबारी पर कानूनी रोक लगी हुई है। ऐसे में अगर शादी-ब्याह या अन्य किसी भी प्रकार के जश्न के दौरान अपनी खुशी को बेलगाम तरीके से प्रकट करने के लिए कोई हर्ष या गोलीबारी करता है, तो उसे कानून का सामना करना पड़ सकता है। इसके लिए उसे जेल भी जाना पड़ सकता है।
कई धाराएं, वैध या अवैध हथियार जांच का विषय
हर्ष गोलीबारी के मामले में सबसे पहले शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाता है। पुलिस सबसे पहले यह देखती है कि गोलीबारी किस हथियार से की गई, वह हथियार वैध है या अवैध। अवैध हथियार के उपयोग पर कड़ी सजा का प्रावधान है। वहीं, यदि वैध हथियार से भी गोलीबारी होती है, तो हथियार का लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई भी की जा सकती है।
मौत पर आरोपी के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा
जश्नी गोलीबारी की घटना में अगर किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो आरोपी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाती है। पुलिस ऐसे व्यक्ति के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज कर सकती है। पहले आइपीसी की धारा 304 के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जाती है। हालांकि, अब भारतीय न्याय संहिता के तहत ऐसे मामले में कार्रवाई की जाती है।
हथियार के मालिक पर भी कार्रवाई का घेरा
हर्ष गोलीबारी करने वाले शख्स के साथ-साथ जिसके नाम पर हथियार का लाइसेंस मिलेगा, उस पर भी संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है। इसके तहत अदालत जुर्म साबित होने पर जेल की सजा और जुर्माना लगा सकती है।