एक गांव में एक वृद्धा रहती थी। उसका एक दस साल का पुत्र था। एक दिन वृद्धा से उसके पुत्र ने पूछा- मां! गांव में अन्य लोगों के पास अच्छे पक्के मकान हैं और हमारे पास यह घास-फूस की झोंपड़ी ही क्यों है? हमें पक्के मकान क्यों नहीं मिले? मां की आंखें पुत्र से ऐसी भोली बात सुन छलछला आईं। वह बोली, ‘बेटा! यह सब हमारी करनी के फल हैं। भगवान उसे वैसा ही फल देता है, जैसा वह कार्य करता है।’ यह सुन उसका भोला पुत्र बोला, ‘मां! भगवान कहां मिलेंगे? मैं उनसे मिलूंगा।’ यह सुन कर बूढ़ी मां हंसती हुई बोली-‘बेटा! हमारे ऐसे कर्म कहां जो भगवान हमे मिल जाएं? भगवान तो ऋषि-मुनियों को मिलते हैं।’
‘नहीं मां! मैं तो भगवान से मिलूंगा!’ इस प्रकार उसने बालहठ शुरू कर दी और भगवान को ढूंढने जाने की योजना बना ली। सारे गांव में यह चर्चा फैल गई। यह बात जब गांव के राजा को मालूम पड़ी, तो उसने बालक को संदेश भेज राजमहल में बुलवाया। राजा बोला-‘भई, तुम भगवान के पास जा ही रहे हो तो जरा भगवान से पूछना कि हमारे राजा के संतान क्यों नहीं होती है।’
तभी मंत्री बोला-‘नन्हें! भगवान से तुम मेरी बात भी पूछना कि मेरे घर की दरिद्रता भला दूर क्यों नहीं होती।’ अच्छा कहता हुआ वह बालक भगवान की तलाश में जंगलों की ओर बढ़ गया।
जंगलों को पार करता हुआ वह एक भयानक और डरावने स्थान पर पहुंचा गया। रात होने में ज्यादा समय न था, सो वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसी पेड़ पर एक पति-पत्नी का जोड़ा अलग-अलग खटोलों में आराम कर रहा था। पति को नन्हें पर दया आ गई और वह अपनी पत्नी से बोला-‘देखो, उस बालक को जंगली जानवर खा जाएंगे, तो क्यों न हम दोनों एक ही खटोले में सो जाए और एक खटोला उस बच्चे को दे दें!’ यह सुनते ही पत्नी तुनक कर बोली-‘तुम्हें ज्यादा दया उमड़ रही है तो स्वयं नीचे बैठ जाओ और उसे खटोले में बैठा दो।’
पति को बात लग गई। उसने वैसा ही किया। रात को जंगली जानवर आए और पति को मारकर घसीट ले गए। सवेरा हुआ। नन्हा पेड़ से उतर कर अपने ध्येय के लिए आगे बढ़ा। वह अब एक तालाब पर जा पहुंचा था। वहां पहुंचकर उसने सोचा कि उसे अब भगवान नहीं मिलेंगे, पर तभी ब्राह्मण के रूप में भगवान प्रकट हुए और उससे बोले-‘तुम्हें कुछ पूछना हो तो पूछो।’
वह बोला-‘चतुर्भुज रूप में आओ,
तब पूछुंगा।’
भगवान तुरंत चतुर्भुज रूप में आए। बालक ने भगवान को प्रणाम कर सबसे पहले राजा का प्रश्न पूछा। इस पर भगवान बोले-‘राजा को अपने महल की अमुक दीवार तुड़वा देनी चाहिए। दीवार में उसे जो पुस्तक प्राप्त हो उसे उसका पाठ करना चाहिए।’ राजा के प्रश्न का उत्तर सुनकर बालक ने अब मंत्री का प्रश्न पूछा। भगवान बोले-‘उसे अपनी युवा कन्या का विवाह शीघ्र कर देना चाहिए।’ मंत्री के प्रश्न का उत्तर जानने के बाद उसने स्वयं के बारे में पूछा तो भगवान बोले-‘इस बारे में तुम्हें राजा का होने वाला पुत्र बताएगा।’
अपने प्रश्नों का उत्तर सुन बालक गांव लौट आया। फिर राजा और मंत्री को उनके प्रश्नों के उत्तर बताया। राजा और मंत्री ने बिलकुल वैसा ही किया, जैसा बालक ने उन्हें बताया। कुछ समय बाद रानी गर्भवती हुई और मंत्री की दरिद्रता मिट गई।
समय आने पर रानी का पुत्र पैदा हुआ। कुछ वर्षों बाद राजा ने नन्हें को बुलाकर कहा-‘तुम अपने प्रश्नों के उत्तर मेरे पुत्र से पूछ लो।’
नन्हें ने अपने कर्मफल के बारे में पूछा। वह शिशु बोला-‘मूर्ख नन्हें! अभी तक तुम नहीं समझे ? मैं वही पति हूं जिसने तुम्हें खटोले में बिठाया था और स्वयं जंगली जानवरों के हाथों मारा गया था। अब मैं एक बहुत बड़े राजा का पुत्र हूं और समय आने पर राजा भी बनूंगा। मेरी पत्नी जिसने तुझे तिरस्कृत किया था वह सुअरी बनी गंदे नाले में पड़ी है। यही तो कर्मफल है।’
यह सुन नन्हा सोचता हुआ अपने घर लौट आया। अब उसे अपनी स्थिति के प्रति कोई असंतोष नहीं था। ०