जीवन में शिक्षक की बड़ी भूमिका होती है। भारतीय परंपरा में तो गुरु महिमा के लिए कई आदर्श बातें कही गई हैं। यह भी कि शिक्षक अपने शिष्यों को कई तरीके से सिखाते हैं। ये तरीके औपचारिक और अनौपचारिक दोनों होते हैं। कई बार शिक्षक अपने शिष्यों को सिखाने के लिए ऐसी युक्ति लगाते हैं कि सीख आजीवन याद रहे। ऐसे ही एक प्रचलित प्रसंग में शिक्षक ने शिष्य को संगत के महत्व के बारे में बताया।
यह प्रसंग कुछ इस तरह है कि एक शिक्षक अपने शिष्यों के साथ कहीं घूमने जा रहे थे। रास्ते में वे अपने शिष्यों को अच्छी संगत की महिमा समझाने लगे लेकिन शिष्य इसे समझ नहीं पा रहे थे। शिष्यों की समझ की कठिनाई को शिक्षक भी भांप रहे थे। उन्हें लगा कि उन्हें अपनी बात को भिन्न तरीके से और उदाहरण के साथ समझानी होगी। शिक्षक जब यह सब सोच रहे थे कि तभी फूलों से भरा एक गुलाब का पौधा उन्हें दिखा।
उन्होंने एक शिष्य को उस पौधे के नीचे से तत्काल एक मिट्टी का धेला उठाकर ले आने को कहा। जब शिष्य धेला उठाकर लाया तो शिक्षक बोले-इसे अब सूंघो। शिष्य ने धेला सूंघा और बोला- गुरु जी, इसमें से तो गुलाब की खुशबू आ रही है। इस पर शिक्षक ने शिष्यों से कहा- क्या तुम लोग जानते हो कि इस मिट्टी में यह मनमोहक महक कैसे आई? दरअसल, इस मिट्टी पर गुलाब की पत्तियां टूट-टूटकर गिरती रहती हैं, तो मिट्टी से भी गुलाब की महक आने लगती है। यह असर संगत का है।
हम सबको यह बात समझनी चाहिए कि जिस तरह गुलाब की पंखुड़ियों की संगत के कारण इस मिट्टी से गुलाब की महक आने लगी, उसी तरह जो व्यक्तिजैसी संगत में रहता है उसमें वैसे ही गुण-दोष आ जाते हैं। लिहाजा जीवन में संगत का बहुत असर होता है। अच्छी संगत जीवन में कल्याण का रास्ता दिखाती है, जबकि बुरी संगत हमेशा अनिष्टकारी साबित होती है।