बुद्ध के जीवन से जुड़ी कथा है। बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक बूढ़ा आदमी मिला। वह कभी रोता, तो कभी हंसने लगता। बुद्ध उसके पास गए। वह वृद्ध उनके चरणों में गिर पड़ा। कहा, मैं जीवन भर आपका विरोध करता रहा। आपकी बातों को उचित नहीं माना। अब समझ में आ गया है कि आप सही कहते थे।
बुद्ध ने पूछा कि आप रोते क्यों हैं, तो वृद्ध ने कहा कि इसीलिए कि मैं जीवन भर अपने मन का करता रहा, उसमें गलतियां करता रहा। उन गलतियों को सही ठहराने के लिए झूठ बोलता रहा।
अपने ही लोगों ने बहुत सारे तकलीफें दीं, अपमान भी किया कई बार, लेकिन यह सोच कर सब सहता और नजरअंदाज करता रहा कि वे तो अपने हैं, एक न एक दिन समझेंगे अपनी गलती। मगर मैं ही गलत था। खूब धन कमाया, खूब संपत्ति जमा की। मगर अब समझ में आया कि वह सब मेरी भूल थी। जीवन जीने का तरीका तो कुछ और है। मगर यह बात मुझे इस बुढ़ापे में पहुंच कर समझ में आई है। इसीलिए रो रहा हूं।
मगर फिर हंसते क्यों हैं? बुद्ध ने पूछा। वृद्ध हंसा और कहा- इसलिए कि जो गलतियां मैंने जीवन में की हैं, वही तो सारे कर रहे हैं। उनका भी हश्र कोई मुझसे बेहतर नहीं होने वाला। इस जगतगति पर हंसता हूं। पास खड़े बुद्ध के शिष्यों को बात समझ में आ गई कि उस वृद्ध व्यक्ति को अब ज्ञान प्राप्त हो गया है।
ज्ञान देर से ही लोगों को प्राप्त होता है। फिर तब तक समय इतना निकल चुका होता है कि उनके पास पछताने, रोने के अलावा कोई और विकल्प बचता नहीं। मगर ज्ञान जब भी प्राप्त हो जाए, तभी से अगर जीवन की दिशा बदल लें, बचे हुए जीवन को ही सही ढंग से जीना शुरू कर दें, तो आनंद की प्राप्ति होती है।
सही बात तो यही है कि अपने किए पर देर तक पछताते रहने के बजाय, उसे तत्काल छोड़ देने और फिर उसे दोहराते न रहने में ही जीवन के आनंद का रहस्य छिपा है।