सुब्रह्मण्य भारती शुरू से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। ग्यारह वर्ष की आयु में उन्हें कवियों के एक सम्मेलन में आमंत्रित किया गया, जहां उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें ज्ञान की देवी सरस्वती का अलंकरण दिया गया। वे पांच वर्ष के थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया। बाद में पिता का निधन भी जल्दी हो गया। ग्यारह वर्ष की अल्प आयु में उनका विवाह कर दिया गया। वे कम उम्र में ही अपनी बुआ के पास वाराणसी चले गए, जहां उनका परिचय अध्यात्म और राष्ट्रवाद से हुआ। उसका उनके जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा।

चार साल के काशी प्रवास में भारती ने संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया। अंग्रेजी भाषा के कवि ‘शेली’ से वे विशेष प्रभावित थे। काशी में ही उन्हें राष्ट्रीय चेतना की शिक्षा मिली, जो आगे चल कर उनके काव्य का मुख्य स्वर बन गई। काशी में उनका संपर्क भारतेंदु हरिश्चंद्र के ‘हरिश्चंद्र मंडल’ से रहा। काशी में उन्होंने कुछ समय एक विद्यालय में अध्यापन किया। वहां उनका संपर्क एनी बेसेंट से हुआ, पर वे उनके विचारों से पूर्णत: सहमत नहीं थे। बाद में भारती की रुचि पत्रकारिता के क्षेत्र में पैदा हुई। फिर समाचार पत्रों के प्रकाशन और संपादन से जुड़ गए।

उन समाचार पत्रों में तमिल दैनिक ‘स्वदेश मित्रम’, तमिल साप्ताहिक ‘इंडिया’ और अंगेजी साप्ताहिक ‘बाला भारतम्’ प्रमुख हैं। उन्होंने अपने समाचार पत्रों में व्यंग्यात्मक राजनीतिक कार्टून का प्रकाशन शुरू किया था। उस समय उनकी रचनाधर्मिता चरम पर थी। उनकी रचनाओं में एक ओर जहां गूढ़ धार्मिक बातें होती थीं, वहीं रूस और फ्रांस की क्रांति तक की जानकारी होती थी।

भारती 1907 की ऐतिहासिक सूरत कांग्रेस में शामिल हुए थे, जिसने नरम दल और गरम दल के बीच की तस्वीर स्पष्ट कर दी थी। भारती ने तिलक, अरविंद तथा अन्य नेताओं के गरम दल का समर्थन किया था। इसके बाद वह पूरी तरह से लेखन और राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो गए। 1908 में ‘इंडिया’ के मालिक को मद्रास में गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी गिरफ्तारी भी की जानी थी।

गिरफ्तारी से बचने के लिए वे पांडिचेरी चले गए। पांडिचेरी प्रवास के दिनों में वे गरम दल के कई प्रमुख नेताओं के संपर्क में रहे। वहां उन्होंने ‘कर्मयोगी’ तथा ‘आर्या’ के संपादन में अरविंद की सहायता भी की थी। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में भी काफी काम किया। उनके कुछ गीत अब भी कर्नाटक संगीत में बेहद लोकप्रिय हैं।

अंग्रेज शासन के विरुद्ध स्वराज्य सभा के आयोजन के लिए भारती को जेल जाना पड़ा। कोलकाता जाकर उन्होंने बम बनाना, पिस्तौल चलाना और गुरिल्ला युद्ध का भी प्रशिक्षण लिया। भारती ने नानासाहब पेशवा को मद्रास में छिपाकर रखा था। निर्धन छात्रों को वे अपनी आय से सहयोग करते थे। 1917 में वे गांधीजी के संपर्क में आए और 1920 के असहयोग आंदोलन में भी सहभागी हुए।

स्वामी विवेकानंद के प्रभाव में आने के बाद जीवन के उत्तरार्ध में लिखी भारती की कविताओं में भारतीय हिंदू राष्ट्रवाद का गुणगान मिलता है। उन्होंने अपनी आत्मकथा में स्वीकार भी किया कि यह परिवर्तन उनकी गुरु भगिनी निवेदिता और स्वामीजी के कारण उत्पन्न हुआ।

भारती का प्रिय गान बंकिमचंद्र का ‘वंदे मातरम्’ था। भारती ने उस गीत का उसी लय में तमिल में पद्यानुवाद किया था, जो आगे चल कर तमिलनाडु के घर-घर में गूंज उठा। सुब्रह्मण्य भारती ने गद्य और पद्य की लगभग चार सौ रचनाओं का सृजन किया।