भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की विलक्षणताओं में एक यह भी है कि इसने सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के उतरने और संघर्ष करने के कई सुलेख एक साथ रचे। आज महिला सशक्तीकरण की बात तो खूब होती है पर उसकी व्यापकता को सरलीकृत कर दिया गया है। इस लिहाज से देखें तो स्वाधीनता आंदोलन ने जहां समाज में लैंगिक बराबरी की दरकार को संघर्ष और स्वीकृति के साथ पूरा किया, वहीं इस दौरान आधुनिक भारतीय स्त्री की शिनाख्त नए सिरे से गढ़ी गई।
जिन महिलाओं ने स्वाधीनता संघर्ष के दिनों में अपनी निर्भीकता और नेतृत्व क्षमता से बड़ा मुकाम हासिल किया रुक्मिणी लक्ष्मीपति का नाम उनमें प्रमुखता से शामिल है। रुक्मिणी अम्मा के रूप में लोक श्रद्धा और स्वीकृति का पात्र बनी इस महिला ने जहां निर्भीक सत्याग्रही के तौर पर अपनी पहचान बनाई, वहीं हरिजन उद्धार जैसे कई सामाजिक अभियानों के लिए वो समर्पित मन से आगे आईं।
सेवा, समाज और राजनीति की त्रयी के बीच कई सकर्मक सर्गों को रचने वाली रुक्मिणि का जन्म छह दिसंबर, 1892 में प्रतिष्ठित और संपन्न कृषक परिवार में हुआ। उनके अभिभावक कोचीन राज्य के दीवान थे। वे मद्रास के प्रसिद्ध वूमन क्रिश्चियन कालेज के पहले सत्र की स्नातक थीं। छात्र जीवन से ही वो उदारवादी विचारों के लिए जानी जाती थीं। कालांतर में उन्होंने अचंत लक्ष्मीपति, जो स्वयं विधुर थे, से अंतरजातीय विवाह किया। अचंत चिकित्सक थे और बाद में उनकी रुचि आयुर्वेद तथा भारतीय चिकित्सा पद्धति की दिशा में बढ़ी।
यह सब वे पत्नी रुक्मिणी के सहयोग और परामर्श से ही कर रहे थे। 1920 के दशक में रुक्मिणी की दिलचस्पी स्वाधीनता आंदोलन तथा स्वदेशी आंदोलनों में बढ़ी। वे महात्मा गांधी, सरोजिनी नायडू तथा चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जैसे नेताओं से प्रभावित रहीं। उन्होंने राजा जी के नेतृत्व में मद्रास प्रेसीडेंसी में नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया। इस सत्याग्रह में गिरफ्तार होने वाली वो पहली महिला थीं।
स्वाधीनता आंदोलन में अपनी शिरकत के दौरान रुक्मिणी कई ऐसे रचनात्मक कार्यक्रमों से भी स्वाभाविक रूप से जुड़ीं, जो उन दिनों महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में विभिन्न रूपों में चल रहे थे। उल्लेख यह भी मिलता है उन्होंने अपने सारे गहने हरिजन कल्याण के लिए दान कर दिए थे। रुक्मिणी ने खासतौर पर युवा महिलाओं को खादी कातने तथा रोजमर्रा के जीवन में उसका अधिकाधिक उपयोग करने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने महिलाओं को स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो कर सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया। रुक्मिणी ने भारत स्त्री मंडल और वूमेन इंडिया एसोसिएशन जैसी संस्थाओं से जुड़कर महिला सशक्तीकरण और महिला शिक्षा के लिए कारगर प्रयास किए। अपने इन प्रयासों के क्रम में उन्होंने बाल विवाह का निषेध करने जैसे सामाजिक सुधारों के लिए आवाज उठाई।
कांग्रेस सदस्य के रूप में उन्होंने यूथ लीग आफ कांग्रेस के माध्यम से युवाओं को आजादी के आंदोलन से जोड़ा। 1926 में कांग्रेस ने उन्हें महिला मताधिकार के मुद्दे पर पेरिस में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन में शरीक होने के लिए भेजा। 1937 में रुक्मिणी मद्रास विधानसभा की पहली महिला सदस्य चुनी गईं और विधानसभा उपाध्यक्ष बनीं।
आगे वो मुख्यमंत्री टी प्रकाशम के मंत्रिमंडल में मंत्री रहीं। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उन्होंने आयुर्वेद और भारतीय चिकित्सा प्रणाली को लोकप्रिय बनाने में बड़ी भूमिका निभाई। रुक्मिणी का जीवन उन तमाम लोगों के लिए अक्षर प्रेरणा हैं, जो संघर्ष और सेवा के क्षेत्र में प्रतिबद्ध भाव से कार्य करना चाहते हैं।