कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, प्रखर राजनीतिज्ञ, लेखक और शिक्षाविद थे। वे लोगों के बीच केएम मुंशी के नाम से लोकप्रिय थे। केएम मुंशी का जन्म गुजरात के भरूच में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भरूच में ही हुई। आगे की पढ़ाई के लिए वे बडोदरा चले गए। बडोदरा कॉलेज से 1907 में उन्होंने अंग्रेजी भाषा में अधिकतम अंक प्राप्त करके, बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री के साथ ‘कुलीन पुरस्कार’ प्राप्त किया। बडोदरा कॉलेज में अपने शिक्षकों में वे श्री अरबिंदो घोष से बहुत अधिक प्रभावित थे। बाद में वे महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल और भुलाभाई देसाई से भी प्रभावित हुए। 1910 में उन्होंने मुंबई से कानून की पढ़ाई की, इसके बाद बांबे हाई कोर्ट में वकालत करने लगे।
स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी
केएम मुंशी ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1915 में भारतीय होम रूल आंदोलन में शामिल हुए और सचिव बने। 1917 में वे बांबे प्रेसीडेंसी एसोसिएशन के सचिव बने। 1920 में, उन्होंने अमदाबाद में वार्षिक कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया और इसके अध्यक्ष सुरेंद्रनाथ बनर्जी से प्रभावित हुए। फिर 1927 में बांबे विधानसभा के लिए चुने गए। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया और छह महीने जेल में रहे। 1932 में वे फिर से गिरफ्तार हुए और दो साल जेल में रहे। 1937 के बांबे प्रेसिडेंसी चुनाव में उन्हें फिर से चुना गया और वे वहां के गृहमंत्री बने। सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें 1940 में गिरफ्तार किया गया। मतभेदों के कारण 1941 में कांग्रेस छोड़ दी, बाद में महात्मा गांधी के कहने पर 1946 में वापसी कर ली।
संविधान निर्माण में योगदान
केएम मुंशी का संविधान निर्माण में भी बहुत बड़ा योगदान रहा। वह मसौदा समिति, सलाहकार समिति, मौलिक अधिकारों पर उप-समिति सहित कई समितियों का हिस्सा रहे। वे राष्ट्रीय ध्वज समिति के भी सदस्य रहे, जिसने वर्तमान भारतीय ध्वज को चुना। वे बीआर अंबेडकर के नेतृत्व में कार्यरत भारतीय संविधान समिति के सदस्य थे। केएम मुंशी पर्यावरणविद भी थे। केंद्रीय खाद्य और कृषि मंत्री रहते हुए उन्होंने 1950 में देश में ‘वनमहोत्सव’ की शुरुआत की। मुंशी ने 1952 से 1957 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया। 1959 में कांग्रेस पार्टी से किनारा कर लिया और बाद में जनसंघ में शामिल हो गए।
स्कूल-कॉलेजों की नींव
7 नवंबर, 1938 को उन्होंने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की। इससे बाद उन्होंने मुंबादेवी संस्कृत महाविद्यालय सहित दर्जनों स्कूल कॉलेजों की नींव रखी। वे इकतीस साल तक भारतीय विद्या भवन के अध्यक्ष भी रहे।
लेखक और पत्रकार
केएम मुंशी प्रतिष्ठित लेखक और पत्रकार भी थे। वे घनश्याम व्यास के नाम से गुजराती और अंग्रेजी में लिखते थे। उन्होंने गुजराती मासिक ‘भार्गव’ की शुरुआत की। 1954 में ‘यंग इंडिया’ के संयुक्त संपादक भी रहे। उन्होंने प्रेमचंद के साथ मिल कर हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘हंस’ का संपादन भी किया। उन्होंने गुजराती, हिंदी, कन्नड़, तमिल, मराठी, अंग्रेजी आदि भाषाओं में एक सौ सत्ताईस पुस्तकें लिखीं। वे गुजराती के श्रेष्ठ साहित्यकार रहे। उन्होंने उपन्यास, नाटक, कहानी, निबंध, आत्मकथा, जीवनी आदि विधाओं में लिखा। केएम मुंशी गुजराती साहित्य परिषद और हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे।
सम्मान और पुरस्कार
केएम मुंशी को अनेक सम्मान प्राप्त हुए। उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया गया।
निधन : कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का देहांत 8 फरवरी, 1971 को हो गया।