अगर आप बात-बात पर घबराते हैं, अच्छी तरह सो नहीं पाते, लोगों के साथ घुलने-मिलने में परेशानी होती है, तो समझ लीजिए कि यह मनोरोग का संकेत है। यह बीमारी सामाजिक भय यानी सोशल फोबिया या सोशल एंजाइटी कहलाती है। यानी सामाजिक भय या चिंता। हालांकि यह असल में उतना गंभीर रोग है नहीं, जितना कि माना जाता है। लेकिन दिक्कत यह है कि अगर समय रहते यह पकड़ में नहीं आया, तो बढ़ने पर इसके नतीजे घातक हो सकते हैं।
सोशल फोबिया ऐसा मनोरोग है, जिसमें आदमी अपने दायरे में ही सिमटता और सामाजिकता से कटता जाता है। उसके मन में असुरक्षा की भावना घर कर जाती है और वह किसी पर भी भरोसा नहीं करता। उसे हमेशा यह भय सताता रहता है कि कोई भी उसे धोखा दे सकता है। कुल मिला कर एक नकारात्मक सोच दिल-दिमाग में ऐसी बन जाती है, जिसमें असुरक्षा, भय, भ्रम- सब होता है। इस स्थिति को ही सोशल फोबिया कहा जाता है। अगर सही समय पर इसे पहचान कर इस बारे में जरूरी कदम नहीं उठाए जाएं, तो स्थिति खराब होने लगती है। आदमी ऐसे स्वाभाव की वजह से अपनी मूल प्रवृत्ति खोने लगता है। यह बीमारी छह महीने से अधिक होने पर पागलपन या किसी गंभीर रोग का रूप ले सकती है। इसलिए समय रहते इसकी पहचान करके इलाज करवाना जरूरी है।
मानसिक विकार
सोशल एंजाइटी दरअसल एक तरह का मानसिक विकार (डिसआॅर्डर) है, जो आमतौर तेरह से पैंतीस साल के लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस बीमारी में शरीर में कैटेकोल अमीब्स हार्मोन बढ़ जाता है, जिससे घबराहट होने लगती है। सही समय पर इलाज न होने पर यह आगे चल कर फोबिया यानी भय में बदल जाता है। बदलती जीवनशैली और बढ़ते तनाव के कारण लोगों में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है।
लक्षण
फैसला करने की क्षमता कम होना, बोलते हुए घबराहट, पेट में हलचल, कमजोरी, थकावट, बेवजह चिंता, हाथ-पैर का बेवजह कांपना, आंखों के आगे बिंदु तैरना, घबराहट, डर, नकारात्मक विचार, बेकाबू होना, रात में अचानक उठ जाना, लोगों से डर लगना हाथ पैरों का ठंडा होना, मांसपेशियों में सूजन और पेट में हलचल के लक्षण दिखाई देते हैं।
सामाजिक भय के कारण
सोशल फोबिया केवल पांच से दस फीसद लोगों में देखने को मिलता है। आमतौर पर यह रोग बीस साल की उम्र से पहले शुरू हो जाता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह ज्यादा होता है। इस रोग के होने और बढ़ने में पारिवारिक और आसपास के माहौल ज्यादा जिम्मेदार होता है। यह अनुवांशिक भी हो सकता है या फिर किसी घटना-दुर्घटना की वजह से भी।
बच्चे भी होते हैं शिकार
सोशल फोबिया के शिकार बच्चे भी काफी होते हैं। बच्चे की परवरिश में माता-पिता का बहुत बड़ा योगदान होता है। ज्यादातर मामलों में बच्चों के भीतर सामाजिक भय उसी परवरिश की देन हो सकती है। अच्छे काम के लिए बच्चों की तारीफ न करना, उन्हें प्रोत्साहित न करना, उनकी अनदेखी करना, उनके साथ कठोरता से पेश आना आदि ऐसे कारक हैं, जो बच्चों के भीतर डर और चिंता का कारण बन जाते हैं। इनसे बच्चे खुद के प्रति हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। उनके आत्मसम्मान को धक्का लगता है। इन सब कारणों से बच्चे लोगों के सामने बोलने में डरने लगते हैं।
इलाज संभव है
सोशल फोबिया के इलाज में दवाओं और मनोचिकित्सा- दोनों जरूरी होते हैं। इस रोग के लिए दवाइयां मरीज में मौजूद बीमारी के लक्षण के आधार पर दी जाती हैं। इसके अलावा मरीज की काउंसिलिंग करके उसे नकारात्मक विचारों से छुटकारा दिलाने की कोशिश होती है। इसमें परिवार के सदस्यों की भूमिका भी बड़ी होती है। इस तरह के रोगियों के साथ बहुत ही विनम्रता से पेश आना चाहिए। क्योंकि उसे सकारात्मक व्यवहार की जरूरत सबसे ज्यादा होती है।
इसके अलावा सोशल फोबिया के मरीजों के लिए सबसे जरूरी है नियमित दिनचर्या। खासकर खाने-पीने और सोने का समय हमेशा निश्चित होना चाहिए। अच्छे और सकारात्मक लोगों के दोस्ती करें। शराब का सेवन और धूम्रपान न करें। रोजाना योग और व्यायाम जरूर करें। सबसे जरूरी बात कि इस समस्या को किसी अभिशाप की तरह न लें। इसका सामना करें और इलाज कराएं। आपकी सकारात्मक भवना और हिम्मत ही आपको इससे बाहर आने में सबसे ज्यादा मदद करती है।
इस बीमारी के बारे में सोचना कम चाहिए। ज्यादा मानसिक तनाव न लें और कभी भी अकेले न रहें।
खानपान
ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज और वसा का सेवन करना इस समस्या में काफी फायदेमंद होता है। हमेशा पौष्टिक भोजन लें और समय पर करें। जंक फूड के सेवन से दूर रहें। ये आपके रोग को और बढ़ा सकते हैं। ल्ल