पिछले सप्ताह जब प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड मामले में आरोपपत्र दाखिल किया, तो मेरे लिए उस दौर की यादें ताजा हुईं जब कांग्रेस का शाही परिवार भारत को अपनी निजी जायदाद समझ बैठा था। याद आया मुझे जब दिल्ली हवाईअड्डे पर विमान में सवार होने जाया करती थी, तो सुरक्षा जांच करवाते समय जब मेटल डिटेक्टर से गुजरती थी, तो उसके पास में सूची दिखती थी उन लोगों की, जिनकी जांच जरूरी नहीं थी, क्योंकि वे ऊंचे ओहदों पर बैठे अति विशिष्ट लोग थे। इस सूची में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों के साथ नाम दिखता था राबर्ट वाड्रा का।
अजीब और गलत लगता था सोनिया गांधी के दामाद का नाम पढ़ कर। याद आया यह भी कि सोनिया गांधी जब रवाना होती थीं, तो उनकी गाड़ी विमान तक जाया करती थी। याद आया किस तरह जब किसी विदेश यात्रा पर निकलती थीं तो उनके लिए हाजिर किए जाते थे देश के अति-धनी उद्योगपतियों के निजी विमान। याद आया कि उनके दोनों बच्चों को लुटियंस दिल्ली में आलीशान मकान दिए गए थे। प्रियंका गांधी उन दिनों सिर्फ एक गृहिणी थीं, लेकिन सुरक्षा के नाम पर उनको सरकारी बंगला दिया गया था। याद आया मुझे कि जब सोनियाजी किसी के घर तशरीफ लाती थीं किसी दावत के लिए, तो बाकी मेहमान उनकी खुशामद में लग जाते थे। याद आया किस तरह जब सोनियाजी किसी ओहदे पर नहीं थीं, तब उनके नियुक्त किए प्रधानमंत्री नरसिंह राव हर बड़े विदेशी मेहमान को पहले सोनियाजी के घर भेजा करते थे।
नेहरू-गांधी परिवार के हाथ में भारत की बागडोर इतने दशक रही थी कि तकरीबन तय कर लिया था हमने कि उनके बिना देश की गाड़ी चल ही नहीं सकती है। इसलिए 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और पूरे बहुमत के साथ, तो जब सोनियाजी अपने सुपुत्र के साथ कांग्रेस की हार को स्वीकार करने पत्रकारों के सामने आर्इं, उनमें इतना गुस्सा था कि मोदी का नाम तक न ले सकीं। बधाई दी तो ‘नई सरकार’ को।
अब आइए नेशनल हेराल्ड मामले पर। मैं नहीं जानती हूं कि इस अखबार को गांधी परिवार से कोई आर्थिक लाभ हुआ है कि नहीं। उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि एक भी रुपए का लाभ उनको नहीं हुआ है और न हो सकता है इसलिए कि जिस ‘यंग इंडिया कंपनी’ को उन्होंने नेशनल हेराल्ड अखबार दिया था वह ‘नान-प्राफिट कंपनी’ है सो पैसे बनाने का सवाल ही नहीं है। हो सकता है सिंघवी साहब ठीक कह रहे हैं और अदालत में जब मामला आएगा सोनियाजी और उनके बेटे को बाइज्जत बरी कर दिया जाएगा, लेकिन किस्सा अजीब-सा है।
अजीब इसलिए कि ‘यंग इंडिया कंपनी’ तकरीबन पूरी तरह सोनियाजी और उनके बेटे की निजी कंपनी है। उनके साथ जो बोर्ड में लोग हैं, वह उनके दोस्त हैं या करीबी सेवादार। इस कंपनी के हवाले कांग्रेस पार्टी का निजी अखबार करने की जरूरत क्या थी? जो अखबार कांग्रेस पार्टी का रहा है स्वतंत्र संघर्ष के समय से, उसको इस निजी कंपनी को बेचने की आवश्यकता क्यों हुई और वह भी पार्टी के खजाने से 90 लाख का ऋण देकर। यंग इंडिया के पास जब यह पैसा आया, तो इस कर्ज को ‘इक्विटी’ में तब्दील कर दिया गया और 80 फीसद शेयर सोनियाजी और उनके बेटे के नाम पर हैं। क्या कांग्रेस का अखबार उसके राज परिवार की निजी संपत्ति है? ऐसा है तो कैसे?
यहां याद दिलाना चाहती हूं कि यह सिलसिला बहुत पहले से चलता आ रहा है। इंदिरा गांधी के दौर में इस अखबार के कर्ता-धर्ता बने थे उनके निजी सचिव यशपाल कपूर और अखबार के पहले पन्ने पर या तो इंदिराजी की तस्वीर दिखती थी या कपूर साहब की हर दूसरे दिन। अखबार को बहुत कम लोग पढ़ा करते थे, क्योंकि इसका काम था सिर्फ कांग्रेस नेताओं की प्रशंसा करना, लेकिन यह भी सही है कि इस अखबार के पास बड़ी-बड़ी इमारतें हैं दिल्ली और लखनऊ में, जिनसे किराए के पैसे बनते हैं। कहना यह चाहती हूं कि इस अखबार की संपत्तियां काफी हैं जिनसे कुछ न कुछ आय जरूर होती होगी।
सवाल फिर वही आता है कि अखबार को निजी कंपनी के हवाले करने की जरूरत क्या थी? इससे भी अहम सवाल यह है कि क्या गांधी परिवार कांग्रेस को अपनी निजी संपत्ति मानता है? पहले सवाल का मेरे पास जवाब नहीं है, लेकिन दूसरे सवाल का जवाब है कि कांग्रेस पार्टी कई दशकों से एक निजी कंपनी में तब्दील हो चुकी है जिसके मालिक हैं सोनिया और राहुल गांधी। संयोग से पिछले सप्ताह सोनियाजी के दामाद को भी बुलाया गया ईडी के दफ्तर में किसी दूसरे मामले में उनसे पूछताछ करने के लिए। वह मामला भी अजीब-सा है। वाड्रा ने गुड़गांव में जमीन खरीदी कौड़ियों के दाम और उसको कुछ ही महीने बाद बेचा, उन्हीं को जिनसे खरीदी गई थी और अचानक इस जमीन की कीमत कोई पचास गुना बढ़ गई थी। इसका लाभ मिला वाड्रा को।
कांग्रेस के प्रवक्ता कहते हैं कि गांधी परिवार के खिलाफ राजनीतिक साजिश है। उनको बदनाम किया जा रहा है इसलिए कि सब जानते हैं कि मोदी का मुकाबला अगर कोई कर सकता है तो वह है कांग्रेस पार्टी। बात है तो सही, लेकिन यह भी सही है कि कांग्रेस को खोखला किया है उसके राज परिवार ने। राजनीतिक दल न रह कर निजी कंपनी बन गई है कांग्रेस। यही कारण है शायद कि पिछले ग्यारह सालों में कांग्रेस अपने बल पर एक भी महत्त्वपूर्ण चुनाव जीत नहीं पाई है कर्नाटक और हिमाचल के अलावा। ऊपर से पराजित हुई है तीन लोकसभा चुनावों में।