कुछ फूल और फल ऐसे हैं, जो ग्रामीण इलाकों में भोजन के रूप में सहज उपयोग होते हैं, और इनमें अनेक औषधीय गुण होते हैं। शहरों में रहने वाले लोगों को ये चीजें सहज उपलब्ध नहीं होतीं, पर तलाश की जाए तो इन्हें उपलब्ध करना मुश्किल नहीं है। इस मौसम में उगने वाले फलों और सब्जियों में से इस बार औषधीय गुण वाले ककोड़ा और सनई के फूल की सब्जी बनाते हैं।
ककोड़ा की सब्जी
ककोड़ा, कर्कोट या कंटोला करेले से मिलता-जुलता होता है, जिस पर छोटे-छोटे कांटेदार रेशे होते हैं। कुछ लोग इसे मीठा करेला भी कहते हैं। यह बरसात के मौसम में पैदा होने वाला साग है। गरम मसालों और लहसुन के साथ ककोड़े का साग बना कर खाने से वात रोग नहीं होता। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, फाइबर, और बहुत से खनिज पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें एस्कॉर्बिक एसिड, कैरोटीन, थियामिन, रिबोफ्लेविन और नियासिन जैसे आवश्यक विटामिनों की मौजूदगी के कारण यह हमारे अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है। नियमित सेवन से यह मधुमेह रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है। इसमें केरेंटिन भी अच्छी मात्रा में होता है, जो यकृत मांसपेशी और वसा ऊतकों की कोशिकाओं में ग्लाइकोजन संश्लेषण को बढ़ावा देता है। इसमें मौजूद विटामिन ए आंखों के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण घटक है। विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट की अच्छी मात्रा होने के कारण यह फ्री रेडिकल्स को नष्ट करने और कैंसर की संभावनाओं को रोकता है। बवासीर से परेशान लोगों के लिए कंटोला का सेवन बहुत फायदेमंद होता है।
विधि
ककोड़े को धोकर मनचाहे आकार में काट लें। गोल-गोल या फिर लंबा-लंबा। इसकी सूखी सब्जी ही बनाएं। जैसे करेले की सब्जी बनाते हैं, उसी तरह। अगर आप भुजिया जैसा खाना पसंद नहीं करते, तो इसमें प्याज, लहसुन, टमाटर भी डाल सकते हैं। कच्चे नारियल के चूरे के साथ भी इसे बनाया जा सकता है। जैसे भी बनाएं, इसका गुण बरकरार रहता है। कड़ाही में खाने का तेल गरम करें। जीरा, सौंफ, राई का तड़का लगाएं। चाहें तो कुछ कढ़ी पत्ते भी डाल लें। तड़का तैयार हो जाए तो बारीक कटा प्याज और लहसुन डाल कर चलाएं। ऊपर से हल्दी पाउडर डालें और फिर कटे हुए ककोड़े डाल कर पकाएं। जब ककोड़े पक जाएं, तो नमक और गरम मसाला डाल कर ठीक से मिला लें। अगर कच्चे नारियल का चूरा डालना चाहें तो नमक और मसाला डालने से पहले डालें और थोड़ी देर पकने दें। इस सब्जी को दाल-चावल या फिर रोटी-परांठे के साथ खा सकते हैं।

सनई का साग
सनई के पौधे से रस्सियां बनाने का रेशा प्राप्त किया जाता है। इसे जूट भी कहते हैं। इसकी कलियों को सब्जी स्वादिष्ट और बहुत गुणकारी होती है। सनई के फूल को अलग क्षेत्रों में भिन्न नामों से जाना जाता है। बंगाली में शॉन, कन्नड में सनालू, मलयालम में वुक्का, मराठी में ताग, तमिल में सन्नप्पू सनल, तेलगु में जनुमू पुरुवू कहते हैं। सनई के फूल में कैल्शियम, फॉस्फोरस और फाइबर भरपूर होता है। कैल्शियम और फॉस्फोरस हड््िडयों और दांतों की मजबूती, शरीर में एंजाइम्स की क्रियाओं और कई चयापचयी (मेटाबॉलिक) क्रियाओं में सहायक होते हैं। इसका फाइबर कब्ज और कैंसर से बचाव और नियंत्रण में भी सहायक है। अनेक शोधों के अनुसार सनई के फूल में जीवाणुरोधी गुण पाए जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार सनई के फूलों की सब्जी खाने से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है। कब्ज दूर करने वाली आयुर्वेदिक दवाओं में सनई का उपयोग किया जाता है।
विधि
सनई का साग पकाना बहुत आसान है। इसकी कलियों को पानी से धोकर साफ कर लें। फिर एक कड़ाही में तेल गरम करें। राई, जीरा, सौंफ और लहसुन का तड़का लगाएं और सनई के फूलों को छौंक दें। ऊपर से हल्दी पाउडर डालें और ठीक से मिला कर कड़ाही को ठीक से ढंक दें और मंदी आंच पर पकने दें। थोड़ी देर बाद सनई के फूल नरम पड़ने लगेंगे। इसमें पानी डालने की जरूरत नहीं होती, पर अगर फूल कई दिन के तोड़े हुए हैं, तो शायद पकते समय पानी न छोड़ें। ऐसे में थोड़ा पानी डाल सकते हैं। अब गरम मसाला और नमक डाल कर थोड़ी देर पकने दें। अगर इस सब्जी को और स्वादिष्ट बनाना चाहते हैं, तो इसमें भी कच्चे नारियल के चूरे का उपयोग कर सकते हैं। न भी करें, तो कोई हर्ज नहीं। सब्जी पक जाए, तो हरी मिर्चें काट कर डालें और खाने को परोसें। इसे दाल-चावल के साथ खाना अच्छा लगता है। इसे एक तरह से सूखी सब्जी के रूप में खाया जाता है। इसे परांठे और रोटी के साथ भी खा सकते हैं।