व्यक्तिगत जीवन

माखनलाल चतुर्वेदी के पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था। वे एक शिक्षक थे। माखनलाल कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। यही वजह है कि प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं का अध्ययन किया। उनका विवाह मात्र पंद्रह वर्ष की आयु में हो गया।

जुझारू पत्रकार
पत्रकारों के योगदान के बिना देश की आजादी का इतिहास अधूरा है। बाल गंगाधर तिलक, महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्यामसुंदर दास, माखनलाल चतुर्वेदी आदि ने अंग्रेजी राज के खिलाफ लिखा। माखनलाल चतुर्वेदी के भाषण युवाओं के लिए आॅक्सीजन का काम करते थे। उन्होंने प्रभा, प्रताप, कर्मवीर आदि अखबारों का संपादन किया। उन्होंने कविता, नाटक, कहानी, निबंध आदि विधाओं में भरपूर लेखन किया। माखनलाल पेशे से एक शिक्षक थे, लेकिन 1913 में शिक्षण कार्य छोड़ कर जीवन को पूरी तरह से देश की आजादी में लगा दिया। वे ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने देश के लिए आजादी की लड़ाई भी लड़ी और जेल भी गए। उन्होंने नई पीढ़ी का आह्वान करते हुए गुलामी की जंजीरों को तोड़ कर सड़क पर आने के लिए कहा था। वे माखनलाल ही थे, जिन्होंने मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन में यह प्रस्ताव पारित कराया था कि ‘साहित्यकार स्वराज्य प्राप्त करने के ध्येय से लिखें।’

गणेश शंकर विद्यार्थी और चतुर्वेदी
माखनलाल चतुर्वेदी आजादी के आंदोलन में गणेश शंकर विद्यार्थी से अधिक प्रभावित हुए और उनके संपर्क में रहे। माखनलाल ऐसे शख्स थे, जो विचारों को तरजीह देते थे। वे गरम दल के नेता बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित थे, तो गांधी को भी मानते थे। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इस वजह से 1921 में उन्हें जेल भी जाना पड़ा और 1922 में वे रिहा हुए। उन्होंने वर्ष 1913 में ‘प्रभा पत्रिका’ का संपादन किया। 1918 में प्रसिद्ध ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ नाटक की रचना की और 1919 में जबलपुर में ‘कर्मयुद्ध’ का प्रकाशन किया। 1924 में गणेश शंकर विद्यार्थी की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने प्रताप का संपादन कार्य संभाला।

माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय
माखनलाल चतुर्वेदी के योगदान को सम्मान देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने 1992 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह भारत का पत्रकारिता को लेकर पहला विश्वविद्यालय है।

सम्मान
माखनलाल चतुर्वेदी ने देश को बचाने के लिए खुद को न्योछावर करने तक से गुरेज नहीं किया। उनके अमूल्य योगदान के लिए देश ने उन्हें सम्मानित भी किया। 1949 में ‘हिमतरंगिनी’ के लिए उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने 1963 में इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया, लेकिन माखनलाल अपने सिद्धांतों के पक्के थे और उन्होंने यह सम्मान लौटा दिया। उन्होंने 10 सितंबर, 1967 को ‘राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक’ के विरोध में पद्मभूषण लौटाया था। यह विधेयक राष्ट्रीय भाषा हिंदी का विरोधी था। ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से कविताएं लिखने के कारण उन्हें ‘एक भारतीय आत्मा’ की उपाधि दी गई थी। 1959 में उन्हें सागर विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट की उपाधि दी थी।