दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी का सूबे की भाजपा सरकार पर आरोप है कि आखिर तीन महीने में ऐसा क्या कर दिया कि दस वर्षों से 24 घंटे मिलने वाली बिजली अब घंटों गुल रहती है। पानी की दिक्कत हो गई है। आठ मार्च तक महिलाओं को ढाई हजार मासिक मिलने का वादा था, अब तो आठ जून भी आने वाली है। यह वादा कब पूरा होगा? आतिशी के मुताबिक अगर अरविंद केजरीवाल अपनी गिरफ्तारी के बाद तुरंत इस्तीफा दे देते तो यह भाजपा के लिए सरकार बनाने का एक और नया ‘माडल’ बन जाता। इसके बाद विपक्ष के मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी की कड़ी बन जाती। आतिशी के साथ नई दिल्ली में कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज की विस्तृत बातचीत के चुनिंदा अंश।
27 साल बाद भारतीय जनता पार्टी दिल्ली की सत्ता में आई। क्या वजह रही कि जनता ने आम आदमी पार्टी की जगह भाजपा को चुना?
आतिशी: सत्ता किसके पास जाएगी यह तो जनता ही तय करती है। भारतीय जनता पार्टी को 27 साल बाद जनादेश मिला। हम इस इंतजार में हैं कि भाजपा ने दिल्ली की जनता से जो वादे किए थे वे पूरे किए जाएं।
भाजपा के ज्यादातर वादे आम आदमी पार्टी के वादों को बेहतर कर किए गए, जैसे आपके दो हजार के वादों को ढाई हजार कर देना।
आतिशी: चाहे उनके वादे हमारे वादों के ही फेरबदल थे, यह तो स्पष्ट है कि जनता ने उन पर भरोसा किया। अब देखने की बात है, उन वादों का क्या होता है।
आपकी उम्मीद क्या है?
आतिशी: अभी तीन महीने हुए हैं और इसके हिसाब से ज्यादा उम्मीद नहीं है। प्रधानमंत्री ने अपनी गारंटी देते हुए कहा था कि आठ मार्च तक महिलाओं के खाते में ढाई हजार रुपए आ जाएंगे, अब तो आठ जून आने वाली है। कहा गया कि उनकी गारंटी के आगे कोई नहीं टिक सकता। इसके साथ ही दिल्ली में रोजमर्रा की जो चीजें ठीक चल रही थीं वे सब ध्वस्त हो गईं। चौबीस घंटे बिजली, पानी मिल रहा था, लोग संतुष्ट थे। स्कूलों की फीस नियंत्रित थी। आप सोशल मीडिया पर देखिए कि हर तरफ बिजली जाने की शिकायतें हैं, ट्रांसफार्मर जल रहे हैं। मेरे विधानसभा क्षेत्र से मुझे आधी रात में फोन आते हैं कि बिजली आ रही है, जा रही है। तीन महीने ही हुए हैं…ऐसा क्या कर दिया भारतीय जनता पार्टी ने कि जो ढांचा हम दस साल से चला रहे थे वह तीन महीने में ही ध्वस्त हो गया?
दिल्ली में बिजली कटौती के मुद्दे को आप ही केंद्र में लेकर आई हैं। इत्तेफाक से मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता से साक्षात्कार के दौरान मैंने उनसे यह सवाल पूछा। उनका जवाब था कि अगर आतिशी बिजली बंद कर मोमबत्ती जला कर बैठ जाएं, तो इसका मतलब यह नहीं कि दिल्ली में बिजली का संकट है। क्या वाकई आप इस संकट को अतिरेक की तरह पेश कर रही हैं?
आतिशी: मुख्यमंत्री ऐसा बोल रही हैं, तो यह काफी गैरजिम्मेदाराना बयान है। मेरे ही घर में बिजली गई है, तो गई है। बिजली कंपनियों के पास हर मिनट का विवरण होता है कि कहां, कितनी देर के लिए गई। विधानसभा में खुद ऊर्जा मंत्री ने कहा कि मेरे घर के विवरण बताते हैं कि मेरे इलाके में बिजली गई। अब जब मुख्यमंत्री कहने लगें कि ‘कैंडल लाइट डिनर’ कर रहे हैं तो क्या ही कहें। आशीष सूद के विधानसभा क्षेत्र में चार से पांच घंटे बिजली नहीं आ रही है। पिछले दस वर्षों में यह समस्या नहीं रही थी। दिल्ली वालों के घरों में ‘इनवर्टर’ नहीं होता था। दिल्ली जैसे शहर में जब 40 से 45 डिग्री तापमान में बिजली चली जाती है तो असहनीय स्थिति हो जाती है।
क्या वजह है इसकी?
आतिशी: यह तो भारतीय जनता पार्टी वाले ही बताएंगे।
दिल्ली में आप को उस वक्त कड़ी पराजय मिली जब पार्टी देश के और हिस्सों में भी बढ़ना चाह रही थी। पंजाब में आपकी सरकार है। गोवा से लेकर गुजरात तक आप लड़े। दिल्ली से मिला झटका कितना बड़ा है?
आतिशी: यह सच्चाई है कि दिल्ली के लोगों ने आम आदमी पार्टी को नहीं चुना। यह हमारे लिए भी सोचने की बात है कि हमें नहीं, भाजपा को क्यों चुना। लेकिन, यह भी सच है कि पूरे देश में आम आदमी पार्टी को विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। असम, मध्य प्रदेश, गोवा में भी हम स्थानीय निकायों में जीत रहे हैं। दिल्ली में हार के बावजूद लोगों को विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी से उम्मीद है।
आपने बहुत अहम बात कही कि लोगों ने आम आदमी पार्टी को अलग तरह की पार्टी के रूप में देखा, लेकिन यह छवि धीरे-धीरे टूटती भी चली गई। संदेश गया कि मुख्यमंत्री दो कमरों के घर में नहीं रह सकते और शीशमहल का आरोप लग गया। भ्रष्टाचार के आरोप में आम आदमी पार्टी के लगभग सभी बड़े नेता फंसते चले गए।
आतिशी: जब देश में धन शोधन निवारण कानून है, जिसमें आप किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं, जिसमें जमानत मिलना असंभव सा हो सकता है तो फिर क्या स्थिति होगी? आज के दौर में गिरफ्तार तो कोई भी हो सकता है, लेकिन गिरफ्तारी के बाद कुछ साबित भी तो करें। पहले हमने आंकड़े इकट्ठा करना शुरू कर दिया था, अब तो हमने गिनती भी करनी बंद कर दी। एक साल पहले तक आम आदमी पार्टी के खिलाफ 180 से ज्यादा मामले दर्ज थे। मामले में सुनवाई शुरू होते ही जमानत मिलनी शुरू हो जाती है। कई मामलों में ‘ट्रायल’ भी शुरू नहीं हुआ है। आरोप भी वही लगा रहे हैं, जज भी वही हैं, साथ ही जनसंचार के माध्यम भी उनके साथ हैं। आज विपक्ष पर हमला करना कितना आसान है सब देख रहे हैं। सरकार की नीतियों पर कोई सवाल नहीं उठा रहा, हर तरफ विपक्ष ही सवालों के घेरे मेंहै। विपक्ष का तो मीडिया पर ही ‘ट्रायल’ हो रहा है, सरकार से कोई सवाल नहीं पूछ रहा है। हमारी सरकार थी तो हर तरफ सवाल ही सवाल थे। भाजपा की सत्ता आते ही हर तरफ सवालों की शांति क्यों हो जाती है? हमारे समय में राज्यसभा में सरकार के ऊर्जा मंत्रालय का बयान है कि दिल्ली में 24 घंटे बिजली आती है। ये सवाल पूछना ही पड़ेगा कि अब क्यों नहीं आ रही है। हमारे समय में प्रदूषण बढ़ा तो मैंने हर मंच से बात की। अब दिल्ली सहित देश के कई इलाकों में प्रदूषण बढ़ रहा है तो क्या आपने कभी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री तक को इस मुद्दे पर बोलते सुना है? भाजपा की सत्ता में जिम्मेदारों से सवाल पूछने की जवाबदेही कहां गायब है?
आम आदमी पार्टी राजनीति में बदलाव का वादा करके आई थी। आरोप है कि अब यह भी आम दलों की तरह है, जिसके अंदरूनी लोकतंत्र पर सवाल है। आम आदमी पार्टी के कई संस्थापक सदस्य पार्टी छोड़ कर न सिर्फ जा चुके हैं बल्कि इसकी नीतियों पर हमलावर रहते हैं।
आतिशी: सवाल यह नहीं है कि आम आदमी पार्टी अच्छी है या बुरी है। चलिए, मैं कहती हूं खत्म कर दीजिए आम आदमी पार्टी को। सवाल यह है कि देश का क्या होगा, देश की जनता का क्या होगा? देश के लोगों की समस्याओं की बात कौन कर रहा है? पहले दिल्ली में नीट, जेईई के परिणाम आते थे तो सरकार की तरफ से आंकड़े जारी होते थे कि सरकारी स्कूलों के कितने विद्यार्थियों ने ये परीक्षाएं पास कीं। इन बच्चों के घर जाकर मुख्यमंत्री से लेकर शिक्षा मंत्री तक मिलते थे, उत्साह बढ़ाते थे। मैं भी मिलती थी। कोई एक साल ऐसा नहीं गया, जब हमारी सरकार के लोग इन बच्चों से मिलने नहीं गए। इससे अन्य बच्चों का भी उत्साहवर्धन होता था कि ये कर सकते हैं तो हम भी कर सकते हैं। आखिर दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की हिम्मत कैसे बढ़ेगी? अब दिल्ली में कोई सरकारी स्कूलों के बच्चों की बात नहीं कर रहा है। पूरे देश भर में जो सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं उन पर बात कौन करेगा? सवाल है कि क्या इस देश में जिनके पास पैसे नहीं हैं, उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिलेगी? अभी बंगलुरू में एक परिचित से बात हुई जिसे अपने बीमार पति की सांसें बचाने के लिए अपना आखिरी संसाधन बेचने की नौबत आ गई। ऐसी स्थिति है कि लोग इलाज कराएं या सब कुछ गंवा दें। सवाल यह नहीं है कि आम आदमी पार्टी का क्या होगा, सवाल यह है कि देश का क्या होगा? आम आदमी पार्टी इन्हीं बुनियादी मुद्दों को उठा कर सत्ता में आई थी और इन्हीं मुद्दों को उठाती रहेगी। देश में चाहे कोई गरीब हो या अमीर, हर किसी को बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए। इतने वर्षों की आजादी के बाद क्या हर पार्टी को यह नहीं करना चाहिए? सवाल आम आदमी का नहीं, सवाल शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं का है। इन बहुत से मुद्दों पर आम आदमी सफल हुई तो कुछ मुद्दों पर नाकाम भी हुई। हम उन्हीं मुद्दों पर आगे बढ़ेंगे जो देश के लिए सबसे जरूरी मुद्दे हैं।
फिर जनता के बीच ये सब मुद्दे क्यों नहीं उठते? वहां सिर्फ हिंदू-मुसलमान की बातें क्यों होने लगती हैं?
आतिशी: ये तो देश की जनता को तय करना होगा कि वह क्या चाहती है।
देखिए, मुद्दा उठा हुआ है जो मध्य प्रदेश के मंत्री ने कर्नल कुरैशी को लेकर बोला। उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने जो बोला। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी पार्टी उन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर रही है। मुद्दे तो उठे हुए हैं, लेकिन सरकार उन पर कुछ नहीं कर रही है तो आगे का रास्ता क्या होगा?
आतिशी: जब तक देश के युवा, महिलाएं, सभी वर्ग आगे नहीं आएंगे तब तक कोई बदलाव नहीं हो सकता है। आम आदमी पार्टी भी तो इसी तरह अस्तित्व में आई थी। देश के कोने-कोने से बदलाव के इच्छुक लोग एक मंच पर आए और बदलाव हुआ। जब देश के अलग-अलग हिस्सों के विभिन्न व्यवसायों और मध्य-वर्ग के हम लोग इकट्ठे हुए थे तब सोचा भी नहीं था कि राजनीति में आएंगे। आम आदमी पार्टी के दिल्ली में दस साल के शासन की ही बदौलत आज देश भर की सरकारें शिक्षा पर बात करने के लिए मजबूर हुई हैं। हमारे बाद शिक्षा मुख्य मुद्दा बना है।
क्या आम आदमी पार्टी की निरंतरता इसलिए रुकी हुई सी दिख रही है क्योंकि लोगों को पारंपरिक राजनीति की आदत है?
आतिशी: मैं इतिहास की विद्यार्थी रही हूं इसलिए मैं किसी भी चीज को दीर्घ समय वृत्त में देखने की वकालत करूंगी। हमें इस देश के राजनीतिक इतिहास के पूरे कालखंड को देखना होगा और उसके बाद तय करना होगा कि लोग किधर जाना चाहते हैं। क्या देश के हिंदुओं को अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा नहीं चाहिए? क्या उन्हें अपने परिवार के लिए अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं चाहिए, बच्चों के लिए नौकरियां नहीं चाहिए? आज देश के पचास फीसद से ज्यादा स्नातक नौकरी पाने में नाकाम हैं। बेरोजगारी अपने चरम पर है। इसके लिए तो हम सबको सोचना पड़ेगा कि हमें कैसी राजनीति चाहिए?
फिर जनता उन सरकारों को बार-बार क्यों चुन रही है जो आपके हिसाब से ये बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दे पा रही हैं?
आतिशी: इसका जवाब तो हम सब को मिल कर खोजना होगा। हम सबको इसका जवाब देना होगा।
आपने अहम बात कही थी कि आयुष्मान भारत पर कैग की रपट का जिक्र कहीं नहीं हो रहा है। भाजपा सरकार का दावा है कि उसके पास आम आदमी पार्टी के शासन के समय की 14 कैग रपटें हैं, जिनमें मोहल्ला क्लीनिक, शिक्षा घोटाला से लेकर आबकारी घोटाला तक शामिल है। क्या इन्हें भी विश्वसनीय माना जाए?
आतिशी: हम तो कह रहे हैं, सब कुछ को पेश करो इसमें क्या दिक्कत है? सवाल यह नहीं है कि भाजपा आम आदमी पार्टी पर हमला कर रही है। हम विपक्ष में हैं, दो अलग दल हैं, अलग विचारधारा है। सवाल मीडिया का है। जब सिर्फ एक ही पार्टी की खामियां दिखाई जाएंगी तो दूसरी ज्यादा सही नजर आने लगेगी। यह सच है कि लोकतंत्र में जनता तय करती है। यह भी उतना ही बड़ा सच है कि जनता को सही सूचना देनी होगी। जनता तो सूचना के आधार पर ही अपने कदम तय करेगी। सिर्फ एक ही पक्ष आएगा तो कुछ भी निष्पक्ष नहीं हो सकता है। लोकतंत्र में सही सूचना जरूरी है।
आपको दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी मिली। क्या आपको लगता है कि इसमें देर हुई? अरविंद केजरीवाल के जेल जाने और आपको पद मिलने में लंबा अंतराल रहा। अरविंद केजरीवाल अगर समय पर इस्तीफा दे देते तो आज उनकी छवि कुछ और रहती?
आतिशी: तब अरविंद केजरीवाल जी ने इस्तीफा नहीं देकर बिल्कुल सही किया। सवाल दिल्ली का नहीं लोकतंत्र का है। आप भारतीय जनता पार्टी का तरीका देखिए। वह साम-दाम-दंड-भेद अपना कर चुनाव लड़ती है। उसके बाद भी कहीं हार जाती है तो विधायकों की तोड़-फोड़ शुरू कर देती है। गोवा, कर्नाटक, अरुणाचल में ऐसे ही सरकार बनाई थी। अब वह जहां यह भी नहीं कर पाती वहां एक और ‘माडल’ ले आई कि मुख्यमंत्री को उठा कर जेल में डाल दो। अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन इसी का हिस्सा थे। अगर विपक्ष के मुख्यमंत्री गिरफ्तार होने के बाद सीधे इस्तीफा देने लगते तो यह भाजपा के लिए एक और ‘माडल’ हो जाता। अरविंद केजरीवाल जी ने तुरंत इस्तीफा दे दिया होता तो उसके बाद विपक्ष के मुख्यमंत्रियों की गिरफ्तारी की कड़ी बन जाती। उन्होंने इस्तीफा नहीं देने का जो रुख अपनाया उसी की वजह से विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार करने का ‘माडल’ रुका। वरना चाहे ममता बनर्जी हों या स्टालिन, ये एक-एक कर सबको जेल में डाल देते।
अरविंद केजरीवाल कहां हैं?
आतिशी: अभी पंजाब में पार्टी की छात्र शाखा की बुनियाद रखी है। उनकी अगुआई में आम आदमी पार्टी ने पंजाब में नशे के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। यह एक नागरिक अभियान बन रहा है। वे लोगों के बीच काम कर रहे हैं।