एक पूर्व प्रधानमंत्री ने वर्तमान प्रधानमंत्री को नसीहत दी पिछले सप्ताह। डॉक्टर मनमोहन सिंह ने नरेंद्र मोदी को समझाया कि जब कोई प्रधानमंत्री बन जाता है तो उसका दायित्व है नाप-तोल कर कुछ कहना, क्योंकि दुनिया उसके हर शब्द को अहमियत देती है। डॉक्टर साहब का इशारा था मोदी के उस वक्तव्य की तरफ, जिसका खंडन प्रधानमंत्री कार्यालय को अगले दिन करना पड़ा था।
मोदी ने कहा था कि भारत की सरजमीन पर न कोई घुस आया है, न कोई घुसा हुआ है और न ही हमारी किसी पोस्ट पर किसी का कब्जा हुआ है। उनके कार्यालय ने अपने स्पष्टीकरण में कहा कि मोदी गलवान घाटी की बात नहीं कर रहे थे, लेकिन इसके बावजूद चीन ने प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान का खूब लाभ उठाया और तोड़-मरोड़ कर इसको अपने हक में चीन के सरकारी अखबारों में छापा।
सो, डॉक्टर साहब की नसीहत गलत नहीं थी, लेकिन देते हुए क्या उनको शर्म-अलशेख जरा भी नहीं याद आया? कैसे नहीं याद रहा उनको कि उन्होंने भी बिना सोचे-समझे एक ऐसी बात कह दी थी, जिससे फायदा हुआ पाकिस्तान को और नुकसान भारत का? मिस्र के इस शहर में 26/11 वाले हमले के बाद पहली बार मिल रहे थे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से। तब तक दुनिया जान गई थी कि इस हमले की सारी साजिश पाकिस्तान में हुई थी, सो उस भेंट में एक ही मुद्दा होना चाहिए था और वह था पाकिस्तानी सरकार का लश्कर-ए-तैयबा जैसी जिहादी संस्थाओं को समर्थन।
मगर जब 26/11 की बात शुरू हुई, तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अपने जवाब में चतुराई से कहा कि बलोचिस्तान में भारत द्वारा अराजकता फैलाने की भी बात होनी चाहिए। डॉक्टर साहब को फौरन कहना चाहिए था- ‘बिल्कुल नहीं’। लेकिन ऐसा न कह कर वे राजी हो गए बलोचिस्तान पर बात करने के लिए, जैसे कि स्वीकार कर रहे हों कि भारत भी पाकिस्तान के अंदर आतंकवाद फैला रहा है। क्या उस समय उन्होंने सोच-समझ कर अपनी बात रखी थी?
सच तो यह है कि भारत की सुरक्षा को लेकर गंभीर गलतियां कई राजनेताओं ने की हैं। आज तक गलतियां हो रही हैं तो इसलिए कि जब राष्ट्र की सुरक्षा पर कोई सवाल उठाता है, तो उस पर देशद्रोह का आरोप लग जाता है। पिछले सप्ताह तो भारतीय जनता पार्टी के एक प्रवक्ता ने मीडिया पर चीन के लिए जासूसी करने का आरोप लगा डाला। मोदी के दौर में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर सवाल उठाना और भी मुश्किल हो गया है, इसलिए कि उनके समर्थक मानते हैं कि उनकी तरफ से कभी कोई गलती नहीं हो सकती है।
सो, आज तक हम नहीं जानते कि पुलवामा में हमारे जवानों को मारने वाले आतंकवादी के पास आरडीएक्स कहां से आया था। न ही हम जानते हैं कि कश्मीर घाटी में कड़ी सुरक्षा के बावजूद वह आत्मघाती हमलावर हमारे सीआरपीएफ जवानों के इतने पास पहुंचा कैसे। न ही हम पूछ सकते हैं कि अनुछेद 370 हटाए जाने के बाद भी कश्मीर घाटी में हर दूसरे दिन जिहादी हमले क्यों हो रहे हैं।
कांग्रेस के राजनेता आजकल बहुत सारे सवाल पूछ रहे हैं, लेकिन जब प्रधानमंत्री उनके अपने दल के हुआ करते थे, तो राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल करना उतना ही मुश्किल हुआ करता था। अगर हम 26/11 वाले हमले को ही उदाहरण मानें तो ऐसा क्यों है कि इस हमले की पूरी जांच कभी क्यों नहीं हुई। हुई थी तो क्यों नहीं हम जानते हैं आज तक कि हमारे सुरक्षाकर्मी क्यों इतने लाचार दिखे हमला शुरू होने के बाद। दिल्ली से कमांडो टुकड़ी को आने में क्यों चौबीस घंटे लगे। सच तो यह है कि चूंकि सवाल पूछे ही नहीं गए थे, हमारे महानगर आज भी उतने ही असुरक्षित हैं, जितना मुंबई था 2008 में।
पाकिस्तान हमसे कहीं ज्यादा कमजोर और गरीब देश है, सो युद्ध करता है जिहादी आतंकवाद का भेस धर कर। आज तक हम इस अघोषित युद्ध को नहीं रोक पाए हैं। क्यों?
चीन हमसे कहीं ज्यादा शक्तिशाली है आर्थिक और सैनिक तौर पर, सो पिछले सप्ताह जिस दिन हमारी सरकर ने कहा था कि गलवान घाटी में अब बातचीत करने पर राजी हो गया है चीन, उसी दिन चीनी सैनिकों की कई नई टुकड़ियां एलएसी के इस पार आती दिखीं सेटेलाइट से खींची तस्वीरों में। क्या हमको सवाल नहीं पूछने चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है कि जहां हमारे बीस जवान शहीद हुए थे, वहां अब चीन ने अपने तंबू गाड़ दिए हैं और पूरा का पूरा शिविर दिखाई दे रहा है उन तस्वीरों में, जो हर टीवी समाचार चैनल ने दिखाई हैं?
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ताओं के तेवर आक्रामक हैं इन दिनों, सो हर सवाल का जवाब देते हैं 1962 की याद दिला कर। याद कराते हैं कांग्रेस पार्टी को कि उनके दौर में किस तरह चीन ने हमको हराया था और हमारी कितनी सारी जमीन हड़प ली थी। कहते हैं आगे कि अब भारत उतना कमजोर नहीं है, क्योंकि मोदी प्रधानमंत्री हैं और वे जवाहरलाल नेहरू की तरह कमजोर नहीं हैं। जो मोदी की कूटनीति या रणनीति पर सवाल उठा रहे हैं, उनको गद्दार और चीन का एजेंट कहते हैं। सो, हम यह भी नहीं पूछ सकते कि जो आज हो रहा है लद्दाख में, क्या साबित नहीं करता है कि मोदी की न कूटनीति सफल रही है न रणनीति।
राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर लापरवाही सबने दिखाई है। पिछले सप्ताह मालूम हुआ कि 2005 में जब सोनिया गांधी अघोषित प्रधानमंत्री थीं, उनके राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन की सरकार ने तीन लाख डॉलर दान किए थे। इसके बाद कांग्रेस सरकर ने चीन की तरफ जरूरत से ज्यादा दोस्ती दिखाई। क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं था?