लोकतंत्र का एक साधारण, बुनियादी, महत्त्वपूर्ण यथार्थ है, जो मोदी के अंधभक्तों को समझ नहीं आया है। यह कि अगर कानून-व्यवस्था को कमजोर किया जाता है किसी तरह, तो लोकतंत्र भी कमजोर होता है। कई देश हैं, जहां कानून तानाशाह शासकों की मर्जी से चलता है। कई देश ऐसे भी हैं, जहां कोई शाह या अयातुल्ला अपने आप को ईश्वर का दूत मान कर फैसला करता है कि किसको दंडित किया जाएगा और किसको रिहा किया जाएगा। ऐसे देश अक्सर मजहब के पहरेदारों को शासक बनाते हैं। फिर चीन और रूस जैसे देश हैं, जहां कानून वही होता है, जो शी जिनपिंग या व्लादिमीर पुतिन कहते हैं। उनका मकसद है अपनी तानाशाही को सुरक्षित रखना। हाल में पुतिन ने फैसला किया कि वाल स्ट्रीट जर्नल का एक पत्रकार जासूसी कर रहा है और उसको जेल में बंद कर दिया गया, गैरजमानती धारा के तहत।
विदेशी मानते हैं कि तमाम दिक्कतों के बावजूद भारत ने लोकतंत्र को बचाए रखा
माना कि ऐसे देश कई तरह से भारत से ज्यादा विकसित हो गए हैं। माना कि उनके लोग हमारे लोगों से ज्यादा खुशहाल हैं, लेकिन उन देशों में भी स्वीकार किया जाता है कि भारत चाहे जितना गरीब और अविकसित हो, उसने लोकतंत्र को सुरक्षित रख कर दिखाया है दुनिया को कि गरीब देश भी लोकतांत्रिक हो सकते हैं। मुझसे जब कोई विदेशी पूछता है कि भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या रही है, तो मैं हमेशा कहती हूं कि लोकतंत्र को कायम रखा है हमने। लोकतंत्र हमारे ताज का सबसे चमकता गहना है। सो, जब भी मुझे दिखता है कि लोकतंत्र को चोट पहुंचाने की कोशिश हो रही है, तो मैं अपनी आवाज उठाती हूं उन शासकों के खिलाफ, जो ऐसा कर रहे हैं। ऐसा करती आई हूं दशकों से।
पिछले सप्ताह मैंने आवाज उठाई योगी आदित्यनाथ शासन के खिलाफ, इसलिए कि जो जश्न मना रहे हैं भक्त लोग अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस हिरासत में गैरकानूनी हत्या को लेकर, मैं उसे गलत मानती हूं और खतरनाक भी। इत्तेफाक से मैं उत्तर प्रदेश में घूम रही थी जब इन हत्याओं की खबर आई और जिनसे भी मिली उनका कहना था कि बहुत अच्छा काम किया है पुलिस ने। उनका कहना था कि अपराधियों के इस परिवार ने ताकतवर राजनेताओं का संरक्षण लेकर दशकों से आम लोगों की जमीनें छीनी हैं और डरा-धमका कर पीड़ितों को चुप कराया है। सो, जो हुआ अच्छा हुआ।
यही बात सुनने को मिली टीवी की चर्चाओं में और सोशल मीडिया पर। योगी आदित्यनाथ इन लोगों की नजरों में बहुत बड़े नायक बने हैं, माफिया राज को खत्म करके। जब कहते हैं कि मिट्टी में मिला देंगे इन माफियाओं को, तो तालिया बजाती है उनकी प्रजा। मेरी राय में बिलकिस के दरिंदों को जल्दी रिहा करके गुजरात सरकार ने बहुत बड़ी गलती की है, क्योंकि इतना घिनौना अपराध करने के बाद ये दरिंदे अब आराम से अपना जीवन गुजार रहे हैं।
लोकतंत्र भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण पहचान है और लोकतंत्र का आधार है कानून व्यवस्था
जब छोटी बच्चियों का बलात्कार किया जाता है और उनको तड़पा-तड़पा कर मारा जाता है, तो मेरे दिल में इतना गुस्सा भर आता है कि मैं खुद सोचने लगती हूं कि हमारी अदालतें, हमारी कानून प्रणाली इतना धीमा न्याय दिलाती है कि ऐसे दरिंदों के लिए विशेष अदालतें बनाई जानी चाहिए, ताकि बरसों तक मुकदमे न चलें। कई बार तो ऐसा भी लगता है कि शायद इलाज यही है कि इनके साथ वही होना चाहिए, जो अतीक अहमद और उसके परिवार के साथ हुआ था। मगर फिर याद आता है कि लोकतंत्र भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण पहचान है और लोकतंत्र का आधार है कानून व्यवस्था।
अगर हम सब कानून को अपने हाथों में लेने लगेंगे, तो सबसे बड़ा नुकसान अपराधियों का नहीं, लोकतंत्र का होगा और इसका परिणाम यही होगा कि भारत और पाकिस्तान या अफगानिस्तान जैसे देशों में जो फर्क है, वह मिट जाएगा। जब जंगलराज कायम होता है किसी देश में, तो पहला शिकार होता है लोकतंत्र।
अफसोस कि इस बात को हमारे देश में बहुत कम लोग समझ पाए हैं, सो ट्विटर पर अगर आप आवाजें सुनने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि लोग चाहते हैं कि अपराधियों के साथ वही किया जाए, जो अतीक अहमद और उसके परिवार के साथ किया जा रहा है। दंडित करने का यह छोटा रास्ता जरूर है, लेकिन इसका खमियाजा बहुत महंगा पड़ता है। असली समाधान यही है कि हम अपनी अदालतों और कानून-व्यवस्था को मजबूत करें, ताकि न्याय मिलने में इतनी देर न लगे और अपराधियों के दिलों में कानून का डर पैदा हो।
आखिर क्या कारण है कि हमारी अदालतों का इतना बुरा हाल है कि कंप्यूटरों के इस जमाने में भी जज साहब अपने फैसले किसी क्लर्क से लिखवाते हैं? उनकी क्या मजबूरियां हैं कि आतंकवादियों को भी दंडित करने में कई दशक लग जाते हैं? इतने लंबे-लंबे फैसले क्यों लिखवाते हैं और वह भी ऐसी भाषा में, जो हम आप समझ न सकें? ऐसा नहीं होता है अन्य लोकतांत्रिक देशों में। विकसित, पश्चिमी देशों में लोग जानते हैं कि लोकतंत्र की बुनियाद है मजबूत कानून-व्यवस्था।
सो, न्यायालय देरी नहीं करते हैं न्याय देने में। हमारे आला न्यायाधीश ऊंचे विचार व्यक्त करते फिरते हैं और लोकतंत्र पर प्रवचन देते नहीं थकते हैं, लेकिन अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखते हैं, जहां लाखों मुकदमे फंसे रहते हैं अदालतों में और बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर अपराध भी लटके रहते हैं सालों तक। इस लेख के अंत में यही पूछना चाहती हूं कि हमारे प्रधानमंत्री को जब इतना गर्व है भारतीय लोकतंत्र पर, तो क्यों नहीं असली सुधार लाते हैं कानून प्रणाली में?