एक सपने की खोज में गए थे वे लोग, जो पिछले सप्ताह हथकड़ियां और बेड़ियां पहने देश लौटे अमेरिकी सैनिक विमान में। गरीब भारतीय नहीं थे ये लोग। कई लाख रुपए इंसानों के व्यापारियों को देकर गए थे अमेरिका अवैध तरीके से। रास्ते में हजारों कठिनाइयों का सामना करने के बाद पहुंचे थे अमेरिकी सपने के हिस्सेदार बनने। कुछ तो पहुंचे ही थे कि उनको जबर्दस्ती वापस भारत भेजा गया। उनको देख कर, उनकी कहानियां सुन कर, याद आया मुझे प्रधानमंत्री का वह वादा जो उन्होंने 2014 में किया था पेरिस में, प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए। वादा था कि ऐसा देश बनाएंगे, जिससे भविष्य में किसी को छोड़ कर जाना नहीं पड़ेगा रोजी-रोटी की तलाश में।
नई आर्थिक दिशा में चले होते नरेंद्र मोदी, तो संभव है कि भारत में आज ऐसा बदलाव आ गया होता कि युवाओं के लिए लाखों नए रोजगार के रास्ते खुल गए होते। ऐसा नहीं हुआ, इसलिए आज भी देश छोड़ कर भागने के लिए मजबूर हैं हमारे देशवासी। जिनको अमेरिका जैसे विकसित, संपन्न देशों में जाने के लिए जायज रास्ते नहीं मिलते हैं, वे अवैध तरीकों से वहां पहुंचने की कोशिश करते हैं। अपना जीवन, अपना सारा धन ऐसे लोगों के हाथों में देकर जो इंसानों की तस्करी करते हैं। शर्म आई मुझे देख कर कि पिछले हफ्ते जो लोग हथकड़ियों और बेड़ियों में वापस भेजे गए थे, वे करीब सारे पंजाब, हरियाणा और गुजरात जैसे अमीर राज्यों से गए थे। वापस लौटने के बाद स्वीकार किया कि उन्होंने ‘एजंटों’ को कम से कम 40 से 90 लाख रुपए दिए थे।
नाजायज रास्ता, जिसको ‘डंकी’ रास्ता कहा जाता है, इतना कठिन है कि हजारों लोग अमेरिका पहुंचने से पहले ही मर जाते हैं। इनमें भारतीय कम हैं और दक्षिण अमेरिका के देशों के लोग ज्यादा, लेकिन वह दर्दनाक कहानी याद है आज भी, जिसमें गुजरात का एक पूरा परिवार कनाडा और अमेरिका की सीमा के बीच ठंड से मर गया था। एजंटों ने इस परिवार को अमेरिका की सीमा से पहुंचने से पहले ही छोड़ दिया था। बर्फ और ठंड इतनी थी कि दो छोटे बच्चों की लाशें अलग-अलग जगहों पर पड़ी मिलीं और उनके माता-पिता की थोड़ी दूरी पर।
अनुमान लगाया है प्यू रिसर्च सेंटर ने कि 2022 में 7,25,000 भारतीय बिना कागजात के रह रहे थे अमेरिका में। डोनाल्ड ट्रंप का चुनावी वादा था कि वे अवैध तरीकों से अमेरिका आने वालों को राष्ट्रपति बनते ही बाहर निकालेंगे और ऐसा करने लगे हैं। तो जो दृश्य हमने पिछले सप्ताह देखे, उनको सिर्फ शुरुआत मानिए। मैं जब भी न्यूयार्क में होती हूं, मुझे हमेशा एक दो मिल ही जाते हैं अपने देशवासी जो मानते हैं कि उनके पास सही कागजात न होने की वजह से मजबूर हैं मजदूरी करने के लिए। एक बार मुझे कुछ सिख मजदूर मिले थे जो एक इमारत की मरम्मत करने में लगे हुए थे। मैंने जब उनसे पूछा कि वे रहते कहां हैं, तो उन्होंने बताया कि कई सारे लोग मिल कर एक छोटे से फ्लैट में रहते हैं और बारी-बारी सोते हैं वहां। मैंने पूछा कि क्या बेहतर न होता कि वे पंजाब में ही खेती करते, तो उन्होंने कहा कि खेती में इतना थोड़ा मुनाफा मिलता है आजकल कि न्यूयार्क में उनका जीवन, चाहे जितना मुश्किल हो, उससे बेहतर है।
सच पूछिए तो एक भारतीय होने के नाते मुझे उनका हाल देख कर गहरी शर्मिंदगी महसूस हुई और तब भी याद आया था मुझे नरेंद्र मोदी का वो वादा। तो इस वादे को पूरा कर क्यों नहीं पाए हैं हमारे प्रधानमंत्री? क्या इसलिए नहीं कि नए आर्थिक रास्ते ढूंढ़ने के बदले वो लौट कर वापस उस टूटे, पुराने समाजवादी रास्ते पर चलने लगे थे, जिसने भारत में कभी समृद्धि पैदा होने ही नहीं दिया। विकसित देशों में रोजगार के अवसर इतने बन जाते हैं कि न्यूयार्क जैसे शहर में हर गली में कोई रेस्तरां या कारोबार दिखता है जहां खिड़की पर लिखा रहता है कि यहां नौकरी मिल सकती है।
भारत में ऐसा हो सकता था अगर हमारे शासकों ने ईमानदारी से व्यापारियों के लिए व्यापार करना आसान किया होता और उद्योगपतियों को उद्योग चलाना।
प्रधानमंत्री बातें बहुत करते हैं ‘ईज आफ डूइंग बिजनेस’ की, लेकिन शायद जानते नहीं हैं कि इस देश के सरकारी अफसरों की मानसिकता। ये लोग अभी भी समाजवादी दौर में ऐसा फंसे हुए हैं कि किसी की मदद करना अहसान समझते हैं। किसी के रास्ते में रोड़े डालना उनकी आदत भी है और भ्रष्टाचार करने का मौका भी। इसलिए वे ऐसा ही करते रहे हैं मोदी के दोनों कार्यकालों में। महाराष्ट्र में कुछ साल पहले एक मुख्यमंत्री ने लाखों लोगों को बेरोजगार किया सिर्फ इसलिए कि जिस परियोजना में वह काम कर रहे थे उस परियोजना का विरोध उन्होंने विपक्ष में रहते हुए किया था।
उदाहरण ऐसे अनेक हैं हर राज्य में। सो, आखिरकार हाल यह है कि चुनावों को जीतने के लिए हमारे राजनेता आजकल खैरात बांटने में लग जाते हैं। लाडली बहना योजनाएं हर राज्य में मिलती हैं आज। दिल्ली में कई महिलाओं ने टीवी पत्रकारों से कहा कि उनका वोट केजरीवाल को ही जाएगा, इसलिए कि उन्होंने बसों में यात्रा करना उनके लिए मुफ्त कर दिया है और बिजली-पानी के बिल भी माफ कर दिए गए हैं। यानी वही पुरानी समाजवादी आर्थिक नीतियां आज भी देखने को मिलती हैं जिनका आधार है खैरात बांटना। खैरात गरीबों को राहत पहुंचाती है, लेकिन इसे आधार बना कर देश विकसित और संपन्न नहीं बन सकते हैं। इसलिए आर्थिक शरणार्थी बन कर भारत से लोग भागते हैं विकसित देशों में।