साहब बोले: दो हजार के नोट का चलन बंद! तीस सितंबर तक इस सुविधा की खिड़की खुली है… बदल लो बदलना हो तो… तुरंत एक विपक्षी: ये रहा तुगलकी फरमान! ये है नोटबंदी ‘दो’! जवाब में पक्षी बोला: कालेधन पर सर्जिकल! दूसरा विपक्षी पूछा: ये बताओ पहले, दो हजार का चलाया क्यों और अब वापस लिया क्यों? ये मनमानी है। अब ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ लाइन में। करते रहो जमा, बदलते रहो नोट और करते रहो ‘हाय हाय’! हर चैनल पर होती रही ‘हाय हाय’! सच! एक ‘हाय हाय’ बंद होती नहीं कि दूसरी शुरू… क्या करें? अपने सरजी को भी पंगा लेने में मजा आता है। अब कह दिए कि चुनौती को चुनौती देना मेरी आदत है… है न पंगे वाली बात!
एक दिन आता है एक ‘आदेश’ कि दिल्ली सरकार को सब अधिकार कि अगले ही दिन आ जाता है एक ‘अध्यादेश’ और लीजिए निपट गए सारे अधिकार और फिर शुरू हाय हाय! पक्ष कहे: सब कानून के अनुसार हुआ है, फिर भी ‘हाय हाय’ है! विपक्ष और हुआ क्रुद्ध क्षुब्ध और शुरू हुआ नया चीत्कार फूत्कार। फिर, विपक्ष करने लगा ‘मिलन-मिलन’, कि दादा मिले दादा से कि दादा मिले दीदी से कि दीदी मिली दादा से और फिर उठता रहा कोरस कि ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा ताकि चौबीस हो हमारा’। कि ‘हम तुम युग युग से ये गीत मिलन के गाते रहे हैं गाते रहेंगे’ चौबीस तक!
फिर ‘समूह सात’: हम फिर हुए ‘विश्वगुरु’, कि दृश्य गाने लगे: ‘बाइडेन हम पर फिदा हैं हम फिदा-ए-बाइडेन’।
और फिर हुआ: ‘पापुआ हम पर फिदा है हम फिदा-ए-पापुआ’। फिर हुआ: ‘आस्ट्रेलिया हम पर फिदा है हम फिदा-ए-आस्ट्रेलिया’। और फिर चिढ़े हमारे मित्र और फिर शुरू हुई हाय हाय! इस बीच चार-पांच दिन की खींचतान कि ‘आलाकमान-आलाकमान’ और फिर बंगलुरू में नए सीएम, डीसीएम का शपथ समारोह, कि मंच फिर से कुछ विपक्षी दलों के नेताओं की ‘भुज उठाय प्रण कीन्ह’ वाली मुद्रा यानी ‘ये दास्ती हम नहीं छोड़ेंगे…’
कि इस बीच एक इस्लामिक नेता के वचन कि पंचानबे से सौ फीसद मुसलिमों ने वोट देकर कांग्रेस को जिताया है। अगर कर्नाटक जैसी बात कांग्रेस करेगी तो चौबीस में भी…
हाय! ऐसा ‘विभाजनकारी’ ऐलान, लेकिन सब सेक्युलर चुप! तब क्या चौबीस का रास्ता इसी विभाजनकारी राजनीति से जाना है! धन्य धन्य!
फिर एक दिन नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का एलान, कि फिर शुरू हुई हाय हाय। हर चैनल पर हाय हाय, कि ये है ‘निजी आकांक्षी परियोजना’। हाय हाय कि संविधान के प्रमुख एक आदिवासी दलित महिला राष्ट्रपति से उद्घाटन क्यों नहीं कराते। हाय हाय, कि यह है दलितों और महिलाओं का अपमान। हाय हाय, कि हम बीस दल करेंगे बहिष्कार समारोह का!
पक्ष बोला, इंदिरा जी ने जब किया ऐसा ‘उद्घाटन’ तो आपत्ति नहीं, राजीव करें तो आपत्ति नहीं, लेकिन हम करें तो आपत्ति… इनको तो मोदी का ‘फोबिया’ है। मोदी से बैर है… इसका क्या इलाज है? पक्ष पूछे कि इनके लिए अब राष्ट्रपति इतनी आदरणीय कैसे हो गईं, जबकि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान इन्हीं राष्ट्रपति के बारे में विपक्षी नेताओं ने क्या क्या न कहा, कि ‘डमी’ हैं, ‘मूर्ति’ हैं। ‘बुरी विचारधारा’ हैं, ‘राष्ट्रपत्नी’ हैं, ‘चमचा’ हैं…
इसे देख पक्ष बोला कि विपक्ष तो ‘कोपभवन’ का आदी है जी!
फिर गृहमंत्री की प्रेस वार्ता से टूटी खबर ने ‘हाय हाय’ करवा दी कि तमिल के शिवभक्त चोलवंशी राजाओं के सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक ‘मणि माणिक्य खचित स्वर्ण राजदंड’ (सेंगोल), जिसे नेहरू ने राजाजी से रिसर्च कराके खोजवाया-बनवाया, फिर जिसे आजादी की रात माउंट बेटन ने नेहरू को सौंपा था और जो तब से ‘नेहरू की छड़ी’ के नाम से प्रयागराज के ‘संग्रहालय’ में धूल खा रहा था, अब इस अवसर पर उसी ‘राजंदड’ को नए संसद भवन में अध्यक्ष की कुर्सी के पास ससम्मान रखा जाएगा… और पहले से जारी हाय हाय और भी तीखी हो उठी कि ये तो ‘हिंदुत्व’ का ‘चिह्न’ है…
एक मुसलिम नेता कहिन कि सिर्फ हिंदू चिह्न क्यों, यहां इस्लाम, ईसाई, जैन, बौद्ध के चिह्न भी रखिए। कुछ जवाब देते रहे कि यह राजदंड जब नेहरू को हिंदुत्व का प्रतीक नहीं लगा, तो आज के कुछ नेताओं के लिए वही ‘हिंदुत्व’ का ‘प्रतीक’ कैसे हो गया…? फिर एक दिन पक्ष ने यह बता कर बहिष्कार की हवा निकाली कि ‘इक्कीस’ बहिष्कार कर रहे हैं, तो ‘चौबीस’ शामिल भी हो रहे हैं…
इस बीच सिर्फ दो बयान मजेदार रहे। एक ने कहा कि नया संसद भवन विपक्ष के लिए बना है, क्योंकि चौबीस में जाने वाले हैं… दूसरा था कि भाजपा ने मान लिया है कि अब सत्ता सौंपने का वक्त आ गया है…अफसोस कि ऐसे मजेदार कटाक्षों के जवाब में एक भी मजेदार व्यंग्य वाक्य नहीं आया, जो कहता कि सर जी! तब बहिष्कार काहे? मामला इतने पर ही नहीं रुका। कुछ ने तो उद्घाटन के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय से गुहार कर डाली, लेकिन अदालत ने कह दिया कि याचिका सुनवाई के योग्य नहीं! अब फिर होगी हाय हाय… कि सब मिले हुए हैं। सच! जब नफरत, बैर में और बैर क्रोध में बदल जाता है तब ‘हास्य व्यंग्य’ की गुंजाइश कहां? शुक्ल जी ने तो कहा ही है कि ‘बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है’!