कई चैनलों में आई ‘हिंडनबर्ग’ की नई रपट और फिर विपक्ष की मांग कि ‘सेबी’ अध्यक्ष इस्तीफा दें, अडाणी को फायदा पहुंचाया, ये है सदी का सबसे बड़ा ‘घोटाला’, सरकार जवाब दे, एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट इसका ‘स्वत: संज्ञान’ ले, जांच करे।

बांग्लादेश में ‘हिंदू संहार’ की खबरों पर कुछ कथित उदारवादियों का एक आंसू न गिरा। एक ‘फिरंग’ ने एक लेख के जरिए इसका ‘सामान्यीकरण’ किया कि हिंदुओं से ‘बदला’ लिया जा रहा है। एक ओर ‘हमदर्दी’ की जगह ऐसी ‘बेदर्दी’ और दूसरी ओर अपने नेताओं का ऐसा ‘छुई-मुई’ का भाव कि नाम लेते ही बिफर जाएं कि मेरा नाम कैसे लिया? मेरा अपमान किया। फिर एक ‘नाम’ लिया गया, फिर एक नाम लेने पर विरोध हुआ, फिर बात ‘भाव भंगिमा’ पर आई, फिर ‘स्त्रीद्वेषी-स्त्रीद्वेषी’ हुआ, फिर ‘वाकआउट’ हुआ, फिर बात निंदा प्रस्ताव तक पहुंचने लगी कि सत्र स्थगित हो गया वरना, फिर एक ‘वाकयुद्ध’ छिड़ता। एक बहस में एक कहिन कि ये जो चाहे बोलें, कोई जरा-सा बोले तो आफत। दूसरे कहिन कि कोई बताए कि किसको किस नाम से पुकारें कि कोई ‘अपमानित’ महसूस न करे।

‘हिंडनबर्ग’ की नई रपट और विपक्ष की मांग कि ‘सेबी’ अध्यक्ष इस्तीफा दें

एक बोला कि दोस्तों के बीच होड़ चल रही है कि कौन कितनी बड़ी खबर बना सकता है। फिर कई चैनलों में आई ‘हिंडनबर्ग’ की नई रपट और फिर विपक्ष की मांग कि ‘सेबी’ अध्यक्ष इस्तीफा दें, अडाणी को फायदा पहुंचाया, ये है सदी का सबसे बड़ा ‘घोटाला’, सरकार जवाब दे, एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट इसका ‘स्वत: संज्ञान’ ले, जांच करे। इसके जवाब में सत्ता के ‘पक्ष प्रवक्ता’ बताते रहे कि इस रपट के पीछे फिर उसी ‘शार्टसेलर’ सोरोस का हाथ है जो पहले किसी कंपनी को गिराता है, फिर गिरे दाम पर उसके शेयर खरीदता है और फिर महंगा कर बेचता है।

‘हिंडनबर्ग’ की नई रपट में आरोप और इस्तीफे की मांग

पक्ष प्रवक्ता कहे कि ऐसे ही आरोप कुछ महीने पहले लगे थे, जिनको ‘जांच’ में असत्य पाया गया। निशाने पर लिए जाते अडाणी ने कहा कि ‘सेबी’ ने हमारे यहां पैसा नहीं लगाया। यही बात ‘सेबी’ की अध्यक्ष ने कही कि ‘सेबी’ ने पैसा निवेश नहीं किया, कि एक प्रवक्ता ने कहा कि यह सब भारत के बाजार को अस्थिर करने की साजिश है… कुछ लोग भारत का विकास नहीं चाहते। एक बहस में एक पूर्व ‘सेबी’ अधिकारी ने दो टूक कहा कि ये रपट रद्दी की टोकरी के लायक है। इस पर एक पत्रकार कहिन कि कुछ तो है, जिसकी पर्दादारी है। फिर पता नहीं क्या हुआ कि ‘सेबी’ को लेकर आए सारे आरोप-प्रत्यारोप चैनलों से ऐसे गायब हो गए, जैसे गधे के सिर से सींग।

फिर एक भयानक खबर आई कोलकाता से, जहां एक अस्पताल में आधी रात को एक महिला डाक्टर का ‘सामूहिक बलात्कार’ किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। इसके बाद लगभग हर खबर चैनल इस जघन्य अपराध की रपटों से भर गया। एक ओर प्रशासन का ‘डैमेज कंट्रोल’ चला, दूसरी ओर इसके विरोध में डाक्टरों की दो ‘आल इंडिया एसोसिएशनों’ के ‘धरने’ व ‘प्रदर्शन’ चले। पुलिस द्वारा जांच में की गई कोताही की खबरों ने पीड़ित के घर वालों को अस्पताल द्वारा इसे ‘आत्महत्या’ बताने, लेकिन पोस्टमार्टम रपट में इसे ‘बर्बर सामूहिक बलात्कार और नृशंस हत्या’ बताने ने इस सारे दुष्कांड की ‘क्रूर सचाई’ को सामने ला दिया। फिर भी कुछ प्रवक्ताओं द्वारा देर तक ‘विक्टिम शेमिंग’ की जाती रही। खबरें बताती रहीं कि इस मेडिकल कालेज के प्राचार्य को तुरंत दूसरे कालेज में स्थानांतरित किया गया।

फिर एक दिन हाई कोर्ट द्वारा इस घटना की जांच के लिए मुकदमा सीबीआइ को सौंपा गया। जाहिर है कि डाक्टरों के लगातार विरोध प्रदर्शनों ने इतना दबाव बनाया कि शासक दल के एक नेता तक को कहना पड़ा और (और तुरंत प्रवक्ता पद खोना पड़ा) कि जांच में कोताही हुई है। एक रात उन्मादी भीड़ ने अस्पताल पर हमला कर जम कर तोड़-फोड़ की और धरने पर बैठे डाक्टरों को मारा-पीटा। भीड़ इस कदर आक्रामक दिखी कि पुुलिसवाले तक जान बचाकर भागे। एक एंकर ने कहा कि यह ‘भीड़ तंत्र’ है। लेकिन यही तो है अपना ‘जनतंत्र प्रेम’ और ‘संविधान प्रेम’ सर जी!
फिर एक दिन एक चैनल पर ट्रंप के साथ ‘एक्स’ पर एलन मस्क की एक ‘बातचीत’ तक ऐसे ही ‘जनतंत्र’ में ‘प्रतिबंधित’ कर दी गई। एक कहे कि बातचीत ‘आपत्तिजनक’ है, दूसरे कहे कि कुछ भी ‘आपत्तिजनक’ नहीं है। एक कहे कि ट्रंप ‘जन्मजात झूट्ठा’ है। एक देसी भी कहे कि ट्रंप ‘झूठा’ है, ‘जाली’ है, ‘ध्रुवीकरण’ करता है।

फिर आया ‘अठहत्तरवां स्वतंत्रता दिवस’! एक बार फिर वही प्रधानमंत्री और उनका लालकिले से संबोधन और एक-एक कर भविष्य का एजंडा खोला जाता हुआ। बहुत सी घोषणाओं के साथ यह भी घोषित किया गया कि अब तक हम एक ‘सांप्रदायिक नागरिक संहिता’ में रहते आए हैं, हमें चाहिए ‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता’, जिसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है। इस तरह आगे का एजंडा दे दिया गया। इसके साथ ही एक बड़े विपक्षी दल की शिकायत आई कि विपक्ष के नेता को लालकिले पर पीछे की सीट पर क्यों बिठाया गया… जवाब आया कि ओलंपिक खिलाड़ियों को आगे बिठाने के कारण उनको पीछे बिठाया गया… और फिर इस दिन के इंतजाम की जिम्मेदारी ‘रक्षा मंत्रालय’ की होती है!