एक के बदले ‘दो-दो दिवाली’ लीजिए। कई पंडित और बाजार एक की जगह ‘दो-दो दिवाली’ मनवाने के लिए मचलते रहे! हर शहर जगर-मगर! खबरें खुशियां बरसाती हुईं: धनतेरस के दिन 102 टन सोना बिका। कई हीरो-हीरोइनें कई दिनों से एक से एक ब्रांड के महंगे गहने बेचते दिखे। कौन कहता है कि अपन गरीब हैं! इस बार अयोध्या की दिवाली ने कई नए कीर्तिमान बनाए। एक तो यही कि राम मंदिर के निर्माण के बाद पहली दिवाली मनी। इसी शाम सरयू के पचासों घाटों पर एक साथ पच्चीस लाख से ज्यादा दीपक प्रज्वलित किए गए। इसमें डेढ़ हजार बटुक सक्रिय रहे। पंद्रह मिनट तक सरयू आरती हुई। लेकिन कुछ लोगों ने इतने दीपकों के ‘प्रज्वलन’ को भी ‘प्रदूषण’ से जोड़ दिया तो जवाब में उनको ‘सनातन विरोधी’ के नाम से पुकारा जाने लगा। गिनीज बुक वालों ने भी दो नए रेकार्ड दर्ज किए। कई संवाददाता भी इस जगर-मगर ‘अयोध्या’ पर लहालोट दिखे! उधर प्रधानमंत्री ने इस बार की दिवाली भी सैनिकों के साथ मनाई। सैनिकों को मिठाई खिलाई। कई चैनलों ने अपने संवाददाताओं के जरिए इस अवसर पर सैनिकों को नाचते-गाते भी दिखाया।

पटाखे से लेकर एक्यूआई तक छाए रहे

मगर कई चैनलों पर कुछ ‘विशेषज्ञ’ चेताने लगे कि पटाखे चलाए, तो दिल्ली की हवा में जहर घुलेगा… कि पटाखे न फोड़कर अपने पर अहसान करें! ऐसे घुमावदार वाक्य आम आदमी कैसे समझे? इसी ‘पटाखा विरोध’ में एक अल्पसंख्यक नेताजी ने भी यह कह कर अपना ‘विनम्र योगदान’ दिया कि दिवाली रोशनी का त्योहार है, पटाखों का नहीं। फिर क्या था… सनातनियों ने तुरंत इसे ‘सनातन के विरोध’ के ‘घाट’ पर दे मारा। दिवाली की अगली सुबह कई जगहों से कई संवाददाता दिल्ली की ‘एक्यूआइ’ यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक को खतरनाक व जहरीला बताते दिखे… यारो, हवा इतनी जहरीली थी तो आप लोग कैसे तरोताजा दिख रहे थे?

दिवाली के एक दिन को छोड़ लगभग हर शाम ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ बरक्स ‘बाटेंगे तो पिटेंगे’ की ‘जालिम तुकबंदी’ चैनलों की बहसों में भी छाई रही। दिवाली के अगले रोज इस तुकबंदी में एक नई लाइन जुड़ी कि ‘जुड़ेंगे और जीतेंगे’। लेकिन ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे ने हरियाणा के चुनावों से लेकर महाराष्ट्र के चुनाव तक को फिर से सुर्खियों में ला दिया। इतना ही नहीं, झारखंड के आदिवासी बहुल संथाल परगना में बांग्लादेशियों की ‘गैरकानूनी घुसपैठ’ और प्रशासन द्वारा ‘आधारकार्ड’ और ‘राशनकार्ड’ की सुविधाओं के ‘आरोप’ लगाने वालों ने यह कहकर कि ‘ऐसा ही रहा तो एक दिन झारखंड ‘मिनी बांग्लादेश’ बन जाएगा…’ इसे झारखंड के चुनाव से जोड़ दिया और इस तरह ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के नारे को और हवा दे दी।
लगभग दैनिक भाव से दोहराई जाती चैनल चर्चा में कई एंकर बार-बार पूछते दिखते रहे कि ‘बंटेगा कौन’ और ‘कटेगा कौन’ कि ‘बांटेगा कौन’ और ‘काटेगा कौन’। ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के पक्षधर कहते रहे कि कुछ विपक्षी नेता और कई विदेशी एजंसियां हिंदू समाज को जातिवाद, भाषावाद और क्षेत्रवाद में बांटना चाहती हैं। आलोचक चेताते रहे कि ये नारा ‘विभाजनकारी’ है।

इस बीच ऐसी खबरें भी आती रहीं कि ‘आज विपक्षी सांसदों ने वक्फ समिति का बहिष्कार किया’। कई चैनलों ने ऐसे ‘वक्फ बोर्डों’ की मार्फत कुछ ऐसी खबरें भी दीं, जैसे कि कर्नाटक में किसानों की पंद्रह हजार एकड़ जमीन वक्फ ने अपनी घोषित कर दी। वहां के किसान हलकान परेशान और कोई सुनने वाला नहीं… कि केरल में एक पुराने चर्च समेत उसकी चार सौ एकड़ जमीन पर वक्फ ने दावा किया… कि लखनऊ के एक ढाई सौ साल पुराने मंदिर से जुड़ी ढाई सौ एकड़ जमीन पर वक्फ ने दावा ठोका… कि 2016 में मुख्तार अंसारी की पत्नी ने उसे वक्फ के नाम किया था… कि हैदराबाद की दस हजार एकड़ जमीन पर वक्फ ने अपना दावा ठोका! एक चर्चक ने कहा भी कि ऐसी खबरों से साफ है कि वक्फ कानून में सुधार की जरूरत क्यों है!

बहरहाल, इस बीच कई चैनलों पर आई नौ बरस के एक लड़के की ‘भक्ति’ की कहानी ने बड़े-बड़े भक्तों को चकित कर दिया, लेकिन जब स्वामी रामभद्राचार्य ने उस बालक को उसके बचकानेपन पर डांटा और मंच से उतार दिया तो उसे भी इस बालक ने आचार्यश्री का आशीर्वाद बताया। आरोपकर्ता लाख कहते रहे कि कि यह नकली भक्त है, लेकिन जब इसी उम्र के आसपास के कई बालक-बालिका, किशोर-किशोरी इन दिनों ‘पहुंचे हुए’ भक्त/ संत बनकर अपने भक्तों पर ‘भगवत कृपा’ कराते हुए उनका तरह-तरह से ‘उद्धार’ करते दिखते हैं, तो फिर इस बालक ने किसी का क्या बिगाडा है? कहा भी गया है: ‘राम नाम की लूट है, लूट सके सो लूट! अंत काल पछताएगा, प्राण जाएंगे छूट!’ और लीजिए!

अमेरिका की राजनीति भी अपनी राजनीति के रास्ते पर दौड़ पड़ी है। अमेरिका के आसन्न चुनावों में उनके नेताओं की भाषा वहीं पहुंच गई है, जहां हमारे नेताओं की रोज पहुंचती है। वहां भी दो नेताओं के बीच एक से एक आला अंग्रेजी गालियों की बरसात हो रही है। कोई किसी को ‘ड्रैकुला’ कह रहा है, तो कोई किसी को ‘हिटलर’ कह रहा है।