सिर्फ न्यूज एक्स ने कुछ न्याय किया, बाकी चैनलों ने उतना भी नहीं किया! न्यूज एक्स ने स्क्रीन को तीन हिस्सों में बांटा। एक में सरदार पटेल, दूसरे में मोदीजी पटेल जयंती पर बोलते हुए और तीसरे में इंदिरा गांधी के कुछ पुराने फुटेज! यही उचित था। इकतीस अक्तूबर: सरदार पटेल का जन्मदिवस और उधर इंदिरा का शहादत दिवस! दिखाने को तो दोनों अवसरों को कायदे से दिखाया जा सकता था, लेकिन पटेल जयंती के लाइव कवरेज के दौरान बाकी किसी को इंदिरा की सुध नहीं आई! सीन में कभी इंदिरा ही इंदिरा होती थीं, अब एक चित्र तक नहीं! वारी जाऊं ऐसी सेल्फसेंसरशिप पर!

सरजी! इस बार की दीवाली बड़ी मनहूस दिखी! पहले तो चैनलों ने अपनी स्क्रीनों में दीये जलाए। स्क्रीनों वाली फुलझड़ी चकरी चलार्इं, हैप्पी दीवाली कहने की रस्म निभाई!और अगले ही दिन एंकर बिसूरने आ गए कि हाय दिल्ली की हवा जहरीली हो गई है, सामान्य से इतना प्रतिशत ज्यादा जहरीला धुआं है। जहरीले कण हवा में घुले हैं। ये देखो अक्षरधाम, ये देखो इंडिया गेट, ये देखो एअरपोर्ट। इतना धुआं कि कुछ दिखाई नहीं देताा! डाक्टर बुलाए गए। वे समझाते रहे कि इस जहरीले धुंए से खासी अस्थमा होती है, फेफड़े बर्बाद होते हैं, किडनी मारी जाती है और सबसे ज्यादा बच्चे बीमार होते हैं! अरे नाजुक एंकरो और उनसे भी नाजुक डाक्टरो! सीन में कुछ खांस भी देते, तो यकीन हो जाता कि आप पर भी असर हुआ है! दीवाली को इतना डरावना क्यों बनाते हो महाराज!

इधर दीवाली डराती हुई आई, तो उधर वह ताल ठोंकती हुई आई। देखते-देखते वह वीरगाथाकालीन हो गई। हर चैनल ‘संदेश टू सोल्जर्स’ दिखाता रहा। हीरो-हीरोइनें ‘संदेश टू सोल्जर्स’ भेज कर टीवी चैनलों पर देशभक्ति का पुण्य लूटते रहे। दीवाली सेलीब्रिटीज की देशभक्ति का मंच बन गई। लक्ष्मीजी की जगह वीरता बरसी। सात दिन में दो सौ करोड़ कमाने वाले हीरो-हीरोइनें परम देशभक्त हो गए! हाय! कश्मीर में स्कूल जलाए जाते रहे। एक के बाद एक पच्चीस स्कूल जलाए गए। अलगाववादियों के बच्चों को पढ़ाने वाले स्कूल सुरक्षित रहे। जले स्कूलों के छात्र कहते रहे कि हमें पढ़ना है, जलाने वालों को सजा दो, हमें पढ़ाओ! लेकिन यह अब तक साफ नहीं हुआ कि आग लगाने वाले कौन हैं? न किसी ने इसकी परवाह ही की!

पाकिस्तान से लड़ाई चैनलों के लिए अब एक दैनिक ‘आइटम’ है। मरना-मारना ही वीरता है। सीमांत के गांवों के निवासी उन गोलों को हाथ में लेकर कैमरों को दिखाते खड़े रहते हैं। कहते हैं कि यहां रहना एकदम असुरक्षित है। ‘वे सीमाओं पर पहरा देते हैं, ताकि हम सुरक्षित सो सकें’ वाला अमोघ वाक्य इन सीनों के आगे अपने निरर्थक होता दिखता है। हर रोज एक-दो शहादतें और शहीदों को सलामी! अब ऐसे दुहरते सीनों को देख किसी का दिल नहीं दुखता, न गर्व होता है। शहादत अब एक सीन भर है!  ‘कट टू’ भोपाल और असली/ नकली ‘एनकांउटर’ कहानी खुल जाती है: हर चैनल पहले दिन एनकाउंटर का एनकाउंटर करता रहा। एनकांउटर इतना मौलिक था कि उसके एक-दो नहीं चार-चार वीडियो दिखने लगे।

हर चैनल एक-दो-तीन-चार वीडियो दिखाता और कहता जाता कि ‘इनका वेरीफिकेशन नहीं है’! सो, एमपी की पुलिस पर सवाल दगने लगे। मंत्रीजी कुछ बोले, एटीएस अधिकारी कुछ। कन्फ्यूजन शुरू: जेल से भागे सिमी के आतंकियों के पास बर्तनों से बनाए हथियार थे। …जी नहीं, उनके पास हथियार थे उनने पुलिस पर फायरिंग की थी। जवाबी फायरिंग में मारे गए। वे आठों खंूखार थे। एक गार्ड को गला रेत कर मार कर और एक को बांध कर तीस फुट ऊंची तीन दीवारों को चादरों से लांघ कर भागे थे, नौ घंटे बाद दस किलामीटर दूर खेतों में पाए गए थे। एक वीडियो कहता कि अफसर कह रहा है, वे बात कर रहे हैं सरेंडर करना चाहते हैं, दूसरा वीडियो बताता कि पुलिस वालों ने एक गिरे हुए को पास से गोली दागी है और क्या क्या?

इसके बाद खबरों का बंदोबस्त होने लगा। अगले दिन तक संदेह गायब हो गए, आॅफिसियल कहानी सबकी कहानी बन गई। जेल मंत्री ने बताया कि जब यह सब हुआ तब सीसीटीवी खराब हो गए! हाय कमबख्त सीसीटीवी भी आतंकियों के मददगार बन गए! प्रवक्ताओं ने बार-बार यही स्थापित किया कि वे दुर्दांत और खूंखार आतंकी थे, वे बहुत ही खतरनाक थे, कहीं हमले की तैयारी में हो सकते थे। कहीं बड़ा हमला कर देते तो देश का क्या होता? उनकी हिमायत करने वाले आतंकवाद के साथ हैं। ‘देश की बर्बादी’ के साथ हैं। गार्ड की शहादत पर एक आंसू नहीं और आतंकियों से इतनी हमदर्दी! सवाल उठाने वाले देश के दुश्मन हैं, शहीदों के दुश्मन हैं। विपक्ष फिर भी सवाल उठाता रहा!

तभी भोपाल जेल में शहीद हुए गार्ड की कहानी को भिवानी के पूर्व सैनिक रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या ने आउट कर दिया। जंतर मंतर पर जहर खाकर गे्रवाल की आत्महत्या ने सैनिकों के प्रति सम्मान के पापुलर भाव को चारों खाने चित्त कर दिया। शहीदों का अपमान करने के लिए कंडम कर दिया गया। विपक्ष खबरों में छा गया। हर चैनल लोहिया अस्पताल, जंतर मंतर, हार्डिंग अस्पताल, मंदिर मार्ग, तिलक मार्ग थाने तक लाइव कवरेज करता रहा। इंडिया टुडे ने ग्रेवाल को फोन पर बेटे से कहते सुनाया कि उसने जहर खा लिया है।… वह सैनिकों के हित के लिए लड़ रहा है।… ‘एक रैंक एक पेंशन’ नहीं मिला है!

यह एक लोमहर्षक और विडंबनात्मक लाइव कहानी रही। जहर खाकर एक पूर्व सैनिक कह रहा था कि मैं न दी गई पेंशन के लिए लड़ रहा हूं! हाय हाय! धिक्कार बरसता था। लोग पूछते थे कि पेंशन देने के वे सरकारी वादे क्या हुए सरजी! मनीष सिसोदिया, केजरीवाल, सर्वाेपरि राहुल गांधी। ऐसा मौका फिर कब मिलता? राहुल हीरो! प्रशासन जीरो! दिल्ली के सीएम को मिलने नहीं जाने दिया! हाय हाय! शहीद के परिजनों को पुलिस ने पीटा। हाय हाय! पुलिस ने कहा कि वे ‘प्रिवेंशन डिटेंशन’ में हैं, वे गिरपफ्तार नहीं हैं। लेकिन पीटा क्यों? क्या यही है आपके दिल में सैनिकों, शहीदों का सम्मान? भाजपा प्रवक्ता डैमेज कंट्रोल करने लगे: आत्महत्या पर राजनीति न करें!लेकिन राजनीति न करने की भी तो एक राजनीति होती है सरजी!