Sudhish Pachauri Sunday Column Thoughts: एक यात्री विमान ध्वस्त! ‘ब्लैक बाक्स’ की खोज! दुर्घटना का कारण: ईंधन बंद, तेल रुका, इंजन बंद, विमान गिरा… ‘ब्लैक बाक्स’ में एक पायलट: क्या तुमने बंद किया? दूसरा पायलट: मैंने नहीं बंद किया! फिर आई जांच रपट और बहसें दो फाड़। एक कहे कि पायलट दोषी… दूसरा कहे कि जहाज कंपनी, रखरखाव करने वाले दोषी। अब अंतिम रपट का इंतजार। अपने यहां हर कहानी आखिर ऐसे ही ‘पाठ कुपाठ’ में फंस जाती है। फिर, खबर कि पाक की हाकी टीम भारत नहीं आ रही..!
फिर एक दिन, बिहार में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए ‘मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण’ का विरोध करते एक नेता जी ने ‘सूत्र’ की तुक मिलाकर हास्य पैदा किया। विरोधियों को यह ‘बेतुका’ लगा। पूरे सप्ताह विपक्ष का नजला चुनाव आयोग के ‘पुनरीक्षण अभियान’ पर गिरता दिखा। विपक्ष कहता कि यह अभियान कमजोर गरीब और अल्पसंख्यकों को ‘वोट से वंचित’ करने की साजिश है, जो हम होने नहीं देंगे..! बहसों के बावजूद यह सवाल निरुत्तर ही रहा कि ‘पुनरीक्षण’ कराने की ऐसी जल्दी क्या थी?
‘फार्मास्यूटिकल कारपोरेटी’ प्रभुओं को हम गरीबों के मोटापे की चिंता क्यों
फिर आई केरल से ‘गुरु पूर्णिमा’ के अवसर पर कुछ स्कूलों में ‘छात्रों’ द्वारा अपने गुरुजी की ‘पाद पूजा’ और माकपा द्वारा इस कृत्य के विरोध की खबर। वामपंथी कहिन कि ये ‘सामंती संस्कृति’ है। फिर आई जलेबी और समोसे की आफत और ‘फार्मास्यूटिकल कारपोरेटी’ प्रभुओं द्वारा हम गरीबों के मोटापे की चिंता। भारत के ‘देशज फास्ट फूड’ से बढ़ते रोगों की चिंता कि कह दिए, आगे से जलेबी और समोसों के ऊपर यह लिखना होगा कि एक जलेबी और समोसे में इतने फीसद अच्छी या बुरी वसा है, इतनी चीनी, नमक, मिर्च-मसाले हैं और ये इनकी ‘एक्सपायरी तारीख’ है।
गोरों को कौन बताए कि ये हमारे यहां ताजा-ताजा ही खाए जाते हैं, सूंघकर, चखकर खाए जाते हैं। खाने वाले जानते हैं कि जलेबी सिर्फ ताजा खाई जाती है और समोसे उतनी ही मात्रा में बनाए जाते हैं, जितने कि बिक जाएं। फिर एक ताजा जलेबी पर सामग्री में मैदा, ‘वसा’ और ‘तारीख’ आदि लिखोगे कैसे? जलेबी पर प्रिंट कैसे करोगे? जलेबी-समोसे के ‘छपे हिस्से’ को कैसे खाओगे?
ऐसा लगता है कि हमारे स्वास्थ्य की चिंता में दुबले हुए जा रहे ‘उपभोक्ता ब्रांड’ बनाने वाले भूमंडलीय कारपोरेट हमें हमारे परंपरागत भोजन से वंचित कर अपनी चााकलेट, बर्गर, सैंडविच, स्टफ्ड रोल, कोक, पेप्सी, काफी आदि का उपभोक्ता बनाना चाहते हैं।
खबरों के इस ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ एक सकारात्मक खबर आई कि शुभांशु शुक्ला तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ ‘वापसी कैप्सूल’ के जरिए सही-सलामत धरती पर उतर आए हैं।
लगभग सभी चैनलों ने उनके विमान और कैप्सूल के अमेरिकी समुद्र में उतरने का सीधा प्रसारण दिखाया। फिर वे सहायकों द्वारा कैप्सूल से बाहर निकाले जाते, फिर वे अपना बायां हाथ हिलाते और मुस्कुराते आगे जाते दिखे। उनके माता पिता भी भारत में उनको सकुशल वापस आते देखते चैनलों में दिखे। वे ताली बजाते और ईश्वर को धन्यवाद देते दिखे। एक चैनल पर पिता ने कहा कि यह 140 करोड़ देशवासियों का प्यार है। शुभांशु ने भी कहा: भारत सचमुच ‘सारे जहां से अच्छा’ दिखता है।
सुधीश पचौरी का कॉलम बाखबर: मंदिर, राजनीति और मीडिया- बहसों के दो पाटों के बीच फंसा समाज
अपनी राजनीति भी अब पूरी तरह ईर्ष्या-द्वेष में बदल गई दिखती है। वरना भारत के विदेश मंत्री के चीन जाने और शी जिनंपिंग से हाथ मिलाने पर विपक्ष परेशान न होता। इसे देख एक एंकर ने कहा कि आप शी जिनपिंग से मिलकर समझौता करें तो पुण्य और विदेश मंत्री शी जिनपिंग से मिलें तो पाप! ये कौन-सी सैद्धांतिक राजनीति है!
फिर एक किशोर ने गरीबों को गाड़ी से रौंदा..! एक बार फिर ऐसे को जमानत मिली और एंकरों व सामाजिक कार्यकर्ताओं में गुस्सा बढ़ा, लेकिन एक दूसरे मामले में महाराष्ट्र की अदालत ने लगभग छोड़ दिए गए ‘किशोर’ को ‘बालिग’ मानकर मुकदमा चलाने को कहा। कई एंकरों ने इस पर संतोष व्यक्त किया।
यों ‘कांवड़ मार्ग’ पर दुकानों पर ‘क्यूआर कोड’, ‘नेमप्लेट’ लगाने के आदेश पर विवाद जारी रहे और मामला सर्वाेच्च अदालत पहुंचा। ‘कांवड़ पक्ष’ का मानना रहा कि कांवड़ियों को ‘सात्विक भोजन’ जरूरी है। कई ‘गैर हिंदू’ लोग हिंदू देवी-देवताओं के चित्र बनवाकर उनके नाम से रेस्तरां, होटल का नाम रखकर चलाते हैं। इसीलिए शायद उत्तर प्रदेश प्रशासन का आदेश रहा कि दुकानदारों को ‘नेमप्लेट’ लगानी चाहिए, लेकिन विरोधी पक्ष कहता रहा कि यह एक समुदाय को निशाना बनाना है।
फिर एक दिन महाराष्ट्र के ‘विधान भवन’ में एक ‘थप्पड़ लीला’ दिखी। एक विपक्षी नेता ने सत्ता पक्ष के नेता के बारे में कुछ ऐसा कह दिया कि प्रतिक्रिया में थप्पड़ बरसने लगे।