एक चैनल ने पाकिस्तानी हाकी टीम के आने की खबर दी तो एक देशभक्त एंकर बिफर उठा कि ‘आतंक’ और ‘खेल’ एक साथ कैसे? वीजा किसने दिया? इसी बीच एक व्यवसायी महिला ने ‘थप्पड़ लीला’ वालों को सोशल मीडिया पर ‘समझाइश’ देकर गलती कर दी। नतीजा यह कि उनको गरियाया जाने लगा। फिर कार को टक्कर मारी गई। कार में विराजे युवा ने महिला को हिंदी में ही गालियां दीं और धमकाया कि जानती नहीं, कौन हूं… तो महिला ने कहा: वह धमकियों से नहीं डरती! फिर एक दिन एक ‘घूंसा वीर’ नेताजी के भी दर्शन हुए। ‘बासी’ दाल देने पर एक कैंटीन कर्मी को ‘घूंसे’ मारने के बाद यह भी कहते दिखे कि वे कुश्ती, जूडो-कराटे के ‘एक्सपर्ट’ हैं। नेताजी ने हमें यही सिखाया है। सब कुछ वीडियो पर, लेकिन न कोई कार्रवाई, न कोई माफी!

ये धरती फिर भी ‘वीर विहीन’ नहीं दिखी। ‘थप्पड़ लीला’ के जवाब में एक हिंदी नेता ने ऐसे ‘थप्पड़ वीरों’ को सीधे चुनौती दी कि निहत्थे गरीबों को मारते हो… आप उत्तर प्रदेश, दिल्ली आइए तब दिखाते हैं। फिर एक अन्य नेताजी ने भी ऐसी चुनौती दी! लगता है कि इस जनतंत्र और संविधान की रक्षा कुछ लोग ऐसे ‘थप्पड़ तंत्र’ से करने का सपना देख रहे हैं। बहस के बाद उसी चैनल ने आनलाइन सर्वे करके बताया कि पचासी फीसद लोग मानते हैं कि ‘थप्पड़ लीला’ वोटों के लिए है!

जनतंत्र में छांगुर बाबा के भी हिमायती निकल आए

इसके बाद दर्शन हुए उत्तर प्रदेश के बलरामपुर के सौ करोड़ से अधिक की कमाई वाले ‘छांगुर बाबा’ के, जिस पर आरोप लगे कि वह अरसे से अपना असली नाम छिपाकर ‘धर्मांतरण’ करा कर लड़कियों को खाड़ी देशों में भेजा करता था। जाति के हिसाब से ‘कीमत’ तय होती। फिर खबर आई कि ‘छांगुर बाबा’ हिरासत में और उसकी कई ‘अवैध’ इमारतों पर उत्तर प्रदेश वाले ‘बुलडोजर बाबा’ का बुलडोजर चला! मगर अपने जनतंत्र में ऐसे छांगुर बाबा के भी हिमायती भी निकल आए।

इसके बाद कई दिन तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चर्चा में रहा। पहले संविधान से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने के सुझाव पर बवाल कटा, फिर संघ की ‘स्थापना के सौ साल’ ने विवाद आमंत्रित किया। जिन दिनों बड़े-बड़े संगठन ‘ध्वस्त’ होकर ‘मलबा’ हुए पड़े हों, उन्हीं दिनों ‘संघ’ का अपनी शताब्दी मनाना, बाकी के ‘मलबे के मालिकों’ को तो कष्ट देगा ही।

डर बेचता मीडिया, युद्ध लड़ता विश्व, सच्चाई पैनल में नहीं टिकती और बहस TRP से शुरू होकर ट्रंप पर होती है खत्म

इसलिए जैसे ही शताब्दी समारोह के ‘परिवर्तन बिंदु’ सामने आए, वैसे ही संघ के ‘बैरियों’ की ‘आहें-कराहें’ बढ़ीं। संघ कहिन कि शताब्दी वर्ष में संघ देश भर में कुल ‘एक लाख तेईस हजार उन्नीस हिंदू सम्मेलन’ करेगा। उद्देश्य है- ‘समाज’ को जाति, धर्म में न बंटने देना। देश भर में इन ‘पंच परिवर्तन बिंदुओं’ पर चर्चा होगी: स्व, समाज, परिवार, पर्यावरण, नागरिक कर्तव्य! चर्चा में संघ की जो आलोचना आई, वह रिकार्ड की तरह बजी कि संघ ‘सांप्रदायिक’ है, ‘फासिस्ट’ है ‘हिटलरवादी’ है!

इसके बाद एक दिन पटना में एक कारोबारी की घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई। नीतीश विरोधी उनकी निंदा करते रहे कि वे अचेत हैं, बेहोश हैं, बीमार हैं… लेकिन नीतीश ठहरे पुराने उस्ताद। एलान कर दिए कि सरकारी नौकरियों में पैंतीस फीसद महिलाओं को सीधे आरक्षण देंगे।

फिर एक दिन डोनाल्ड ट्रंप को हमेशा नाचते-गाते, मस्का मारते एलन मस्क अचानक ट्रंप से खफा हो गए। फिर भारत की ओर लपके, तभी उनकी ‘स्टारलिंक’ की दुकान को ‘ओके’ मिल गया तो खामोश हो गए।

राजनीति और मीडिया की उठापटक: ‘चिपक राजनीति’ से लेकर ‘कुश्ती बहस’ तक”

फिर चुनाव आयोग द्वारा, चुनाव से पहले, बिहार की मतदाता सूची के ‘सघन पुनरीक्षण अभियान’ की शुरुआत और ‘अभियान’ के विरोध में विपक्षी नेताओं की साझा रैली और उसमें विपक्ष के नेताओं के आयोग पर हमले। एक नेता जी कहिन कि आयोग संघ-भाजपा की भाषा बोलता है… पहले इन्होंने महाराष्ट्र का चुनाव चुराया, अब बिहार का चुराना चाहते हैं। लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे… दूजे नेता जी कहिन कि चुनाव आयोग ‘गोदी आयोग’ है!

फिर एक रैली में कुछ दर्द भरे दृश्य भी दिखे: एक नेताजी ने जब रैली के ‘ट्रक’ पर चढ़ना चाहा तो उनको चढ़ने नहीं दिया गया। फिर विपक्ष के एक युवा साथी ने ट्रक पर चढ़ना चाहा तो उनको भी नहीं चढ़ने दिया। नेताजी ने अपने ‘पैर की पीर’ का हवाला देकर अपना दर्द कम किया, लेकिन दूसरा साथी इस उपेक्षा से बिसूरता दिखा।

उधर सर्वोच्च न्यायालय ने भी चुनाव आयोग के काम में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। और फिर आई पुराने ‘दिल्लीपति’ की ‘एक नोबेल इधर भी’ वाली कामना। कामना कामना है। वे चाहे मजाहिया ही क्यों न हो! जब ट्रंप कह सकते हैं कि ‘एक नोबेल इधर भी’ तो कोई और क्यों नहीं कह सकता कि ‘एक नोबेल इधर भी’!

हर दिन एक नया बवाल, कहीं टीका तो कहीं वक्फ, धर्मनिरपेक्षता से लेकर कथा तक, राजनीति ने सबमें घुसपैठ की है

ट्रंप कहिन, मोदी सुनिन, विपक्ष भड़क उठा और तेजस्वी छा गए; व्यंग्य में साप्ताहिक सियासी महाभारत