साध्वी साध्वी हैं। एकदम प्रांजल हिंदी में जब उन्होंने कहा कि ‘मैंने कहा, जा तेरा सर्वनाश हो और वह आतंकियों की गोली से मारा गया’, तो सचमुच डर लगा कि कहीं यह श्राप हम दर्शकों को न लग जाय!  क्या तेज था! क्या ओज था! एक ओर एक ‘अत्याचारित’ साध्वी के देशप्रेम की अटूट कथा थी। दूसरी ओेर आततायी थे, जिनने तोड़ना चाहा, लेकिन वाह रे तप, कि टूटने नहीं दिया।… यह चुनाव नहीं, धर्मयुद्ध है। साथ बैठे एक भाई इस करुणकथा को सुनते-सुनते अश्रु पोंछने लगते हैं। अरे कलजुगी एंकरो! इतने पर भी मेरे उस श्राप का बुरा मानते हो? कहते हो कि यह करकरे का अपमान है। करकरे आतंकियों से लड़ता हुआ शहीद हुआ और कहा जा रहा है कि वह अत्याचारी था। लेकिन एक चर्चा को सुन ऐसा लगा कि करकरे को आतंकियों ने नहीं मारा, साध्वी के श्राप ने मारा। देखी साध्वी के श्राप की ताकत! अरे एंकरो, अब भी डरो! मिरर नाउ की पफे डिसूजा जी, क्या आपको श्राप का डर नहीं? जब उनकी प्रवक्ता ने कह दिया कि साध्वी ने खेद प्रकट कर तो दिया, तब भी कहे जाती हो ‘नॉट एनफ’ यानी इतना काफी नहीं, इतना काफी नहीं!’

हे शिकायत करने वालो! श्राप के मामले में आयोग क्या करेगा? कहेगा कि ऐसा नहीं बोलो, लेकिन उससे क्या? तपस्वियों के श्राप का बल आयोग से भी उंचा होता है। लेकिन श्राप-कथा सिर्फ भोपाल में नहीं कही गई, इससे पहले पहली श्राप-कथा यूपी में कही गई!  बड़े-बड़े तपस्वियों का तप हरने वाले और जनता से अगाध प्रेम करने वाले एक महाराज जी एक दिन प्यारी जनता को समझाते हुए कुछ इस तरह से बोल उठे कि ‘…संन्यासी हूं… वोट न दिया तो श्राप दे दूंगा!’
एंकरों को लगा कि उन्हीं को धमकाया जा रहा है। सो, चीखने लगे कि यह क्या हो रहा है और आयोग आयोग चिल्लाने लगे!

बताइए, श्राप जैसी आध्यात्मिक कार्रवाई में चुनाव आयोग का क्या काम?  कल को अगर स्वामी जी ने आयोग को ही श्राप दे दिया, तो क्या कर लोगे?  सो, कलजुगी एंकरो-रिपोर्टरो! सावधान! तपस्वियों के श्राप के माहात्म्य को समझो और डरो! जिन तपस्वियों ने भारत के कल्याण के लिए सब कुछ त्याग दिया, उनको क्रोध न दिलाओ। उनके पास देने को श्राप के अलावा कुछ नहीं, जबकि पाने के लिए संसद और सरकार पड़ी है।

एक भिन्न किस्म की ब्लैकमेल की अगली कथा दिल्ली में बनी! एक सुबह एक चैनल ने लाइन दिखाई : ‘चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया पर सेक्सुअल हेरासमेंट’ का आरोप लगा!  अपना तो दिल ही कराह उठा! देश भर के यौन उत्पीड़न के मामलों को सुनने वालों पर भी यौन उत्पीड़न का आरोप! सच, इस कलजुग में देवता तक सुरक्षित नहीं। पहले लगा कि यह तो शुद्ध ब्लैकमेल है, लेकिन इस दुष्टात्मा को तसल्ली हुई कि चलो अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे! अब तक सबकी सुनवाई कर फैसला देते थे, अब कराओ ‘मी लॉर्ड’ अपनी सुनवाई!

खल कहां बख्शने वाले, सो शिकायत करने लगे कि महामहिम अपने खिलाफ शिकायत सुनने स्वयं कमेटी में क्यों बैठे? यह कानून का उल्लंघन है! मामला अदालत में लंबित है। पर अपने राहुल भइया का जवाब नहीं! अभी तक ‘चौकीदार चोर’ बोल बोल कर आनंद’ ले रहे थे अब कह दिए कि ‘मर्डर एक्यूज्ड’ यानी कत्ल का अरोपी अमित शाह! यह क्या उचार दिए प्रभु! अभी ‘चौकीदार चोर’ का मामला नहीं निपटा था कि दूसरा पंगा ले लिया! जरा भी न सोचा कि : ‘जाको प्रभु दारुण दुख देही/ ताकी मति पहले हर लेही!’

अब झेलो केस। मांगते रहो माफियां। कहते रहो कि मेरा मतलब यह नहीं था, वो नहीं था कि मुझे खेद है! सच ही कहा है : ‘बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताय/ काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाय!’ और भइए! जब यों ही बिना फाइट दिए हटना था, तो चैनलों में ‘प्रियंका वाराणसी से लड सकतीं हैं’ का तूमार क्यों बंधने दिया! क्या यह भी भाजपा को तंग करने के लिए और मजा लेने के लिए नहीं था?  इधर ‘आइडिया आॅफ इंडिया’ खतरे में दिखता है, उधर इस खतरे से लड़ने के लिए ‘प्रियंका वाराणसी से लड़ सकती हैं’ जैसा अर्ध-संदेह अलंकार चिपकाने का आनंद लेते हैं! अब झेलिए भाजपा का कटाक्ष कि प्रियंका हार के डर से मैदान छोड़ कर भाग गर्इं!