लांग शॉट में कैमरा पैन कर रहा है: एक छात्र के पीछे दो पुलिसवाले लाठी भांज रहे हैं। तीसरा, चौथा, पांचवां और छठा भी अपनी लाठी भांजते आ जाते हैं। दे दनादन हो रहा है। छात्र पिट रहा है। सड़क पर गिरा हुआ है। लाठी पड़ रही है: दे दनादन, दे दनादन! जम्मू-कश्मीर की पुलिस वाकई कुशल है। निहत्थों को अच्छी तरह ठोंकती है। एक छात्र पर तो अठारह लाठियां तोड़ीं। टाइम्स नाउ के एंकर ने गिन कर बताया!

एक-सा फुटेज हर चैनल पर है। जम्मू-कश्मीर में छात्रों की पिटाई को लेकर भाजपा प्रवक्ता डैमेज मैनेज में लगे हैं कि कहीं पीडीपी के साथ उनकी मिलीजुली सरकार न गिर जाय! प्रवक्ता कहते हैं कि सीएम से फोनाफोनी की है, जिनने आश्वस्त किया है और बहिरागत छात्रों की हिफाजत के लिए दिल्ली से अफसर रवाना कर दिए हैं!
एनडीटीवी पर नाक तक रूमाल से चेहरा छिपा एक छात्र कहता है: पुलिस ने हमारा तिरंगा ले लिया है, उसे वापस कराइए! एंकर कहे जा रहा है कि एनआइटी के छात्र कह रहे हैं, हमें वहां से हटाइए! पूरे भारत को ‘भारतमाता की जय’ बोलने को कह रहे हैं और ये छात्र जे ऐंड के के एनआइटी कैंपस में तिरंगा नहीं लहरा सकते!

अगर यह जेएनयू हुआ होता तो सब बावले हो गए होते। कितना बेहतरीन मैनेजमेंट था छात्रों पर किए गए अत्याचार का! कैमरे कैंपस में घुस नहीं सकते और छात्र बाहर जा नहीं सकते! परफेक्ट जनतंत्र जमाया है जे ऐंड के सरकार ने!
सीरियलवालों के साथ टीवी चैनल खुद सौतिया व्यवहार करते दिखते हैं, क्योंकि उनका शायद वह धांसू ग्लैमर और क्लास नहीं होता, जो फिल्मवालों का होता है।

कुछ पुराने हिट सीरियल ‘बालिका बधू’ की पहचान न होती तो प्रत्यूषा की आत्महत्या/ हत्या की खबर शायद ‘सौ फटाफटों’ में ही निपट गई होती। लेकिन इस बार शायद सीरियलवाले ही पीछे पड़ गए कि कहानी डूबते-डूबते ऊपर आ गई। काम्या पंजाबी, स्नेहा और पता नहीं किन-किन दोस्तों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि प्रत्यूषा फाइटर थी, ऐसे मरने वाली नहीं थीं। उसे टार्चर किया जा रहा होगा। नाक पर चोट के निशान थे। उससे पैसा भी लिया जा रहा था। जांच जरूरी है। तीन दिन के दबाव के बाद उसका कथित साथी अंदर हुआ!

मगर सीरियलों की दुनिया मौत के वक्त भी सीरियल छाप बनी रही। शादी के लिए बनवाए जोड़े से सजी मृत प्रत्यूषा को आखिरी विदाई देते वक्त उसकी माता ने गजल तक गाई: ‘आज जाने की जिद ना करो’!
मौत का भी सेलीब्रेशन और वह इस कदर कि दुख गजल में बदल गया! माता ने भी मौका देख अपनी गायकी का परिचय दे दिया! बेचारी प्रत्यूषा! चार दिन की चांदनी और अंत में एक पंखा!

प्रत्यूषा की अचानक मौत पर अपना दुख दिखाने के लिए जब राखीजी सावंत कैमरों के आगे आर्इं तो अपने एक हाथ में सीलिंग फैन लेकर आर्इं और पुरजोर आवाज में मांग करने लगीं कि असली दुश्मन यह सीलिंग फैन है। छत का पंखा हटाओ। हवा चाहिए तो एसी, कूलर, टेबल फैन लगाओ! बस यह दुष्ट पंखा उतरवाओ!
सीरियल के ग्लैमर में जीने वालों का दुख भी इतराता हुआ आता है!

इस सप्ताह ‘भारतमाता की जय’ बुलवाने के लिए दो-दो महानुभावों ने वीरमुद्रा में ताल ठोक दी। एक महानुभाव रहे महाराष्ट्र के सीएम और दूसरे बाबा रामदेव! कहना न होगा कि फडणवीसजी जब बोलते हैं, तो गरज-तरज कर बोलते हैं। चैनलों ने भी उनके भाषण को पूरे दम से दिखाया। फिर उसे काट-काट कर दिखाया और सबसे भड़काऊ लगने वाले अंश को अलग से काट कर विद्वज्जनों के बीच बहसें भी कराई, जैसे कि विद्वज्जन टाइप किसी का कुछ बिगाड़ सकते हैं!

फडणवीस की ललकार चर्चा से बाहर होने ही वाली थी कि आदरणीय बाबा रामदेव ने कुछ ऐसे वीरतापूर्ण वाक्य कह डाले, जिनका मतलब कुछ इस तरह से था कि वे तो संविधान की मर्यादा का खयाल करते हैं, वरना भारतमाता की जय से इनकार वाले लाखों को काट डालते!

बयान पर बहस करने वालों ने खूब चिल्ल-पों की, लेकिन बाबा जमे रहे। बहसने वाले बकबक करते रहते। उधर बाजू के हिस्से चैनल वाले बाबाजी का ‘भस्तिका’ वाला आसन जरूर दिखाते रहते। कई बार उनका ‘कूदासन’ भी दिखाया। ‘कूदासन’ यानी एक ही जगह कूदते रहने का आसन, जिसके मुकाबले शिल्पा शेट््टी का ‘कूदासन’ भी कुछ नहीं दिखता! उत्तेजित बहसों से निर्विकार बाबाजी कई चैनलों पर पातंजलि के अपने प्रोडक्टों को बाजाप्ता बेचते रहे! और हम सब कुछ क्षुब्ध और कुछ शर्मिंदा होते रहे! बाबा का ‘भयासन’ डरावना था!

चैनलों के एंकरों को जब ‘सूडो समाजवाद’ का दौरा पड़ता है। कल तक जिस आइपीएल के विज्ञापन दिखा कर चैनलों ने पैसा बटोरा, उसे ‘सत्तर लाख लीटर पानी बर्बाद करने वाला’ बता कर उसके ऊपर आलोचनात्मक बहस कराते हैं, फिर पानी की बर्बादी के बरक्स पीने के पानी के लिए लंबी लाइनें लगाने वाली जनता के स्टॉक फुटेज दिखा-दिखा कर आइपीएल की विलासिता की आलोचना कराते हैं! लेकिन यह आलोचना भी तब की जाती है, जब बड़ी अदालत आइपीएल से पूछ बैठती है कि बताइए, सूखे के दौर में क्या यह पानी की बर्बादी नहीं है? अगर अदालत आइपीएल को न लताड़ती तो क्या अपने रणबाुंकरे चैनल आलोचनात्मक बहसें भी कराते?

और आखिरी बहसें तो पानी की बर्बादी पर तुलनात्मक अध्ययन करके आइपीएल के अपराध को हल्का करने लग गर्इं। विद्वज्जन बताने लगे कि गोल्फ कोर्स, पार्क, स्कूलों के मैदान और पांचसितारा होटल, सब जगह अतिरिक्त पानी चाहिए ही। क्या उसे भी बर्बादी कहा जाय? एक एंकर सूडो समाजवादी दौरे की गिरफ्त में कुछ ज्यादा था, सो बोला कि आइपीएल वालों को लातूर, बीड और थाणे की पपड़ियाई फटी सूखी जमीन पर एक दिन रहने भेज दिया जाना चाहिए, तब पानी की कीमत मालूम होगी! एक ने कहा कि पानी का यह क्रिमिनल दुरुपयोग है, लेकिन आइपीएल का हिमायती बोला कि हमें पानी को बाहर से टैंकरों में मंगाना चाहिए। एक बहस करने वाले ने मजाक किया- क्यों न इतना पानी इंपोर्ट किया जाय!

लेकिन, आइपीएल का जलवा देखिए कि कई खबर चैनलों पर पानी के दुरुपयोग के लिए विवादित आइपीएल के दो ‘प्रोमो’ भी आते हैं, जिनमें एक ‘हैप्पी वाला इंडिया’ बनाया जाता है। उसमें एक महिला बड़े स्नेह से दर्शकों को समझाती है कि देश की अच्छाई उसकी बुराई करने में नहीं है!
कल्लो, क्या कल्लोगे?