नई सरकार, जिसका शपथग्रहण 9 जून, 2024 को हुआ, उसकी कहानी इन चंद शब्दों में बयान की जा सकती है : लोगों ने बदलाव के लिए वोट दिया, मगर नरेंद्र मोदी ने सरकार की निरंतरता का विकल्प चुना।

मतदाता

सहज बुद्धि संपन्न मतदाताओं ने सही फैसला किया। उन्होंने भाजपा के पिछले दस वर्षों के शासकीय ढांचे को खारिज कर दिया, हालांकि वे मोदी को इस शर्त पर एक और मौका देने को तैयार थे कि वे कोई बड़ा सुधार करें। भाजपा ने 303 सीटों के साथ शुरुआत की और अपने लिए 370 और एनडीए के लिए 400 से अधिक सीटों का लक्ष्य रखा। वह दोनों लक्ष्यों से बहुत पीछे रह गई। अंत में, भाजपा अपने लिए केवल 240 और एनडीए के लिए 292 सीटें हासिल कर सकी। भाजपा के लिए लोगों का संदेश स्पष्ट था: वह घटक दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका वाली गठबंधन सरकार बनाए, विभाजनकारी नीतियों का त्याग करे, आर्थिक स्थिति की हकीकत को स्वीकार करे, सामाजिक विभाजन को दूर करे, घमंडी दावों से बचे और सभी भारतीयों को विकास के पथ पर ले जाए। मतदाताओं ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि हालांकि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सत्ता हासिल करने के लिए काफी मेहनत की, मगर इसके लिए वह शायद अभी तैयार नहीं है। उसे नौ राज्यों में अपनी जड़ें फिर से जमानी हैं, जहां लोकसभा की 170 सीटें हैं।

भाजपा

नरेंद्र मोदी को सरकार बनाने के लिए सशर्त जनादेश मिला है, मगर जैसा कि उनका स्वभाव है, उन्होंने अपने निर्णय पर अहंकार को हावी होने दिया। शुरुआती झटके के बाद, मोदी को एहसास हुआ कि उनकी पार्टी में उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं है और किसी अन्य पार्टी के पास सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है। उन्होंने यह भी सही निष्कर्ष निकाला कि चंद्रबाबू नायडू (तेदेपा) और नीतीश कुमार (JDU) मोलभाव करने वाले नेता हैं और दिल्ली में ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाने के बजाय आंध्र प्रदेश और बिहार में अपनी कड़ी मेहनत से जीती गई जमीन को बचाने में उनकी अधिक दिलचस्पी है। जैसा कि हुआ, मोदी उन्हें अपने राज्यों के लिए धन, योजनाओं और किसी प्रकार के ‘विशेष दर्जे’ के निजी आश्वासनों से आसानी से संतुष्ट कर सकते हैं। मगर मोदी ने अपनी ‘कोर टीम’ को दुबारा वापस लाने की गलती की है, जिसके बारे में मैं आगे चर्चा करूंगा।

कांग्रेस

अंकों का गणित सामने है। कांग्रेस ने केवल नौ राज्यों से अपनी 99 सीटों में से 79 सीटें जीतीं। 170 सीटों वाले नौ अन्य राज्यों में कांग्रेस ने केवल चार (पांच राज्यों में शून्य और चार राज्यों में एक-एक) जीतीं। इसका विश्लेषण करना होगा कि कांग्रेस ने पहले के नौ राज्यों में क्या सही किया और बाद के नौ राज्यों में क्या गलत किया। पार्टी ने उदयपुर और रायपुर के अपने सम्मेलनों में तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन ऐसा लगता है कि तैयारी अपेक्षित नतीजों तक आगे नहीं बढ़ पाई है। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड सबसे चमकदार राज्य हैं, जहां कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होंगे। 2024 के लोकसभा चुनावों में जीती गई सीटों के आधार पर, कांग्रेस ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर, तीन राज्यों में बढ़त बना ली है, और राज्य चुनावों में सत्ता पर कब्जा करने का बराबर मौका है। चूंकि तीन राज्यों के चुनाव नतीजे उन राज्यों से परे हैं, इसलिए भाजपा निश्चित रूप से कड़ी टक्कर देगी।

सरकार

जब मोदी ने बदलाव के बजाय निरंतरता को चुना, तो उन्होंने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। मोदी की तीसरी सरकार के ढांचे और विभागों के बंटवारे से कई निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। सबसे पहले, मोदी ने मतदाताओं की चेतावनी को ठुकरा दिया है कि वे अपनी सरकार की प्राथमिकताओं और शैली को बदलें। दूसरे, उन्होंने हठपूर्वक कहा है कि उनकी सरकार की बुनियादी नीतियों, खासकर अर्थव्यवस्था, आंतरिक सुरक्षा और विदेश नीति से संबंधित नीतियों में कुछ भी गलत नहीं है। तीसरे, उन्होंने स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया है कि उनके ‘रैंक’ में प्रतिभा की गंभीर कमी थी। चौथे, उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनके मंत्रिमंडल में केवल उन्हीं लोगों के लिए जगह थी, जो स्वीकार करते थे कि उनकी तीसरी सरकार ‘पीएमओ’ द्वारा संचालित होगी। अंत में, उन्हें विश्वास है कि उनके और अमित शाह पास अपने सहयोगियों को सरकार में सम्मानजनक भूमिका दिए बगैर, साधे रखने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं।

अभी तक किसी भी मंत्री ने अपनी प्राथमिकताओं या नीतियों पर बात नहीं की है। निर्मला सीतारमण यह दावा करती रह सकती हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, चौबीस करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल आए हैं, मुद्रास्फीति कम है, नौकरियां पैदा हो रही हैं और भारत तय सीमा के भीतर पांच ट्रिलियन अमेरिकी डालर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अमित शाह कह सकते हैं कि आतंकवाद को परास्त कर दिया गया है, मणिपुर में संविधान के अनुसार शासन चल रहा है, सीएए और यूसीसी सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और आइपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले तीन कानून थामस बैबिंगटन मैकाले के बाद भारत के लिए सबसे अच्छी चीजें हैं।

जयशंकर दुनिया की राजधानियों में फोटो खिंचवाने के अवसरों का आनंद ले सकते हैं, जबकि चीन चुपचाप भारत के साथ अपनी स्वघोषित सीमा को मजबूत कर रहा और मालदीव, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमा के साथ नए आर्थिक और सैन्य संबंध बना रहा है। राजनाथ सिंह का मानना हो सकता है कि रक्षामंत्री का काम समय-समय पर सैनिकों से मिल लेने और बाकी मामलों को एनएसए और सीडीएस के हवाले छोड़ देने से पूरा हो जाता है। पीयूष गोयल यह विचार बेचना जारी रख सकते हैं कि भारत का उद्योग और विदेशी व्यापार फल-फूल रहा है, जबकि व्यापार घाटा सालाना 200 अरब अमेरिकी डालर से अधिक रहने की संभावना है (जिसमें अकेले चीन का हिस्सा 85 अरब अमेरिकी डालर है)। पीके मिश्रा को प्रमुख सचिव और अजीत डोभाल को एनएसए नियुक्त करने के साथ ही मोदी सरकार के समानता के सिद्धांत की पुष्टि हो गई और उस पर हस्ताक्षर और मुहर लग गई है।

यह तीसरा कार्यकाल नहीं, दूसरे का विस्तार है

लोग अपने जीवन में ‘बेहतरी के लिए बदलाव’ चाहते थे। लोगों ने नौकरियों, मूल्य स्थिरता तथा शांति और सुरक्षा के लिए वोट दिया। अगर फिर उन्हीं पुराने मंत्रियों ने अपने उन्हीं विभागों पर कब्जा जमा लिया है और उन्हीं नीतियों का प्रचार करते हैं, तो यह लोगों के फैसले का क्रूर मजाक होगा। पहले ही कदम- सरकार गठन- में मोदी लड़खड़ा गए और देश को विफल कर दिया। अब लोग उनके दूसरे और तीसरे कदम- राष्ट्रपति के अभिभाषण और बजट- पर नजरें टिकाए हुए हैं।