आइपीएल 2023 के शीर्ष पांच गेंदबाजों में से चार फिरकीबाज यानी स्पिनर हैं- राशिद खान, वाई चहल, पीयूष चावला और वरुण चक्रवर्ती। एक सामान्य व्यक्ति के लिए यह हैरानी की बात हो सकती है, क्योंकि टी-20 की शुरुआत ही उन धुआंधार बल्लेबाजों को ध्यान में रख कर की गई थी, जिन्हें फिरकी गेंदबाजों के छक्के छुड़ाने में मजा आता है।

शायद आइपीएल से ही प्रेरणा लेते हुए मौजूदा भाजपा सरकार और उसके शासन में चल रहे संस्थानों में फिरकीबाजों की मांग बढ़ गई है। इनकी ताजा पैदावार आरबीआइ और अर्थशास्त्रियों में उतरी है, जो सरकार के लिए गेंदबाजी करते हैं। इसका एक स्वर्गिक अवसर आया 19 मई, 2023 को, जब आरबीआइ ने घोषणा की कि वह दो हजार रुपए मूल्यवर्ग के नोटों को वापस ले रहा है। फिरकीबाजों ने तर्क दिया कि यह ‘विमुद्रीकरण’ नहीं है। याद कीजिए कि 2016 में भी ‘नोटिफिकेशन’ और ‘सर्कुलर’ में ‘वापसी’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था, नोटबंदी का नहीं।

हमारा दिमाग 8 नवंबर, 2016 की तरफ दौड़ने लगा। उस दिन माननीय प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर नाटकीय रूप से घोषणा की थी कि पांच सौ रुपए और एक हजार रुपए के नोट अब वैध मुद्रा नहीं हैं। चलन में मौजूद छियासी फीसद नोटों को एक झटके में अवैध घोषित कर दिया गया। परिणाम अराजक था। हालांकि अब उन भयानक दिनों को याद करने का कोई मतलब नहीं रह गया है।

तर्क दरकिनार

8 नवंबर, 2016 को सरकार ने चुपचाप दो हजार रुपए के नोट जारी करने का फैसला किया था। फिरकीबाजों ने उस निर्णय को ‘पुनर्मुद्रीकरण’ कहा। लोगों ने विमुद्रीकरण के बाद एक नया शब्द सीखा- ‘पुनर्मुद्रीकरण’। उनका दिमाग चकरा गया। आखिर सरकार पांच सौ रुपए और एक हजार रुपए के नोटों को बंद क्यों कर रही है और फिर दो हजार रुपए के नोट क्यों जारी कर रही है? पुराने नोटों को उसी मूल्य वर्ग के नए नोटों से बदलने के बजाय अलग रंग, आकार और नई विशेषताओं के साथ क्यों जारी किया गया?

दो हजार के नोटों से, विमुद्रीकरण के तीन घोषित उद्देश्यों में से, कोई उद्देश्य पूरा नहीं हो सका: नकली नोटों को खत्म करना, काले धन का पता लगाना, और नकली नोटों के माध्यम से हो रहे मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकना। जमाखोरों, मादक पदार्थों के तस्करों और आतंकवादियों ने दो हजार रुपए के नोटों का खुशी से स्वागत किया, क्योंकि इससे उनका काम आसान हो गया।

लोगों ने दो हजार रुपए के नोट से किनारा कर लिया। यह ‘विनिमय के माध्यम’ के रूप में बिल्कुल बेकार था। कुछ ही दुकानदार और सेवा प्रदाता दो हजार के नोट स्वीकार करने को तैयार थे। कुछ ही हफ्तों में, दो हजार के नोट व्यावहारिक रूप से दैनिक नियमित लेनदेन से गायब हो गए। फिर भी आरबीआइ ने 2018 तक दो हजार रुपए के नोट छापना जारी रखा। अब पता चला है कि दो हजार रुपए के नोटों का बड़ा हिस्सा बैंकों के मुद्रा कोष या तिजोरियों में पड़ा रहा। उन लाखों लोगों के हाथों में नहीं पहुंचा जो नकदी लेनदेन करते हैं, बल्कि आबादी के एक छोटे से हिस्से के हाथों में बना रहा। दो हजार रुपए का नोट क्यों जारी किया गया, इसका अब तक कोई तार्किक जवाब नहीं मिला है।

वापसी 2023 में क्यों?

अब दो हजार रुपए के नोट को लेकर इस तार्किक प्रश्न को भी झुठलाया जा रहा है कि इसे 2023 में वापस क्यों लिया गया? आरबीआइ ने पत्र लिख कर बैंकों को बताया कि ‘‘अर्थव्यवस्था की तात्कालिक मुद्रा आवश्यकता को पूरा करने’’ के लिए दो हजार रुपए का नोट जारी किया गया था और वह उद्देश्य पूरा हो चुका है! अब भारत के आम लोगों को व्यावहारिक रूप से बेकार दो हजार रुपए के नोट की ‘‘आवश्यकता’’ नहीं है। वे कम मूल्यवर्ग के नोटों और पांच सौ रुपए के नोटों का इस्तेमाल करके अपनी जरूरतें पूरी करते हैं, जो विमुद्रीकरण के तुरंत बाद अनिवार्य रूप से, फिर से जारी किए गए थे।

इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि दो हजार रुपए के इतने करोड़ रुपए के नोट क्यों छापे गए, जबकि लोगों ने इन नोटों से किनारा कर लिया था? आरबीआइ का तर्क है कि दो हजार रुपए के नोट की मियाद केवल चार-पांच साल थी। अगर ऐसा है, तो कम मूल्यवर्ग के नोटों (10, 20, 50 और 100 रुपए) की मियाद तो और कम होनी चाहिए। जिस तरह समय-समय पर उन्हें नए नोटों से बदला जाता है, उसी तरह दो हजार रुपए के नोटों को भी समय-समय पर बदला जा सकता है। इस कहानी को जितना घुमाने का प्रयास किया जा रहा है, उतना ही फिरकीबाज अपने झूठ के जाल में फंसते जा रहे हैं। और इस प्रक्रिया में, भारतीय मुद्रा की अखंडता में भरोसा कमजोर हो रहा है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत के नामित कार्यकारी निदेशक केवी सुब्रमण्यन ने सबसे दिलचस्प स्पष्टीकरण दिया: यह एक चाल थी, ताकि काला धन जमा करने वाले दो हजार रुपए के नोटों में अपना बेहिसाब धन जमा करें और फिर सात साल बाद झपट्टा मार कर उस काले धन को जब्त कर लिया जाए। इस गढ़ी गई विचित्र कहानी पर तो नोबेल पुरस्कार बनता है। सुब्रमण्यन की सही जगह तो विज्ञान-कथा लेखक के रूप में हो सकती है।

जमाखोरों के लिए लाल कालीन

दुर्भाग्य से, जैसे ही सुब्रमण्यन ने अपना विचित्र सिद्धांत प्रस्तुत किया, वैसे ही एसबीआइ ने घोषणा कर दी कि बिना कोई पहचानपत्र, बिना कोई फार्म भरे और स्रोत का प्रमाण दिए, कोई भी व्यक्ति दो हजार रुपए के नोटों को बदल सकता है! कई बैंकों ने इस नियम का पालन किया।
अब यह पूरी तरह तय है कि जिस तरह 2016 में पांच सौ रुपए और एक हजार रुपए के 99.3 प्रतिशत नोट वापस आ गए थे, उसी तरह ‘चलन’ वाले दो हजार रुपए के लगभग सारे नोट आरबीआइ के पास वापस आ जाएंगे।

फिरकीबाजों की जमात इस कहानी को आगे बढ़ाएगी कि सात साल के कठिन प्रयासों के बाद, भारत की सर्वशक्तिमान सरकार ने सफलतापूर्वक देश में सारे काले धन का पता लगा लिया है, भ्रष्टाचार को समाप्त कर दिया और मादक पदार्थों के तस्करों, आतंकवादियों और उनके वित्तपोषकों को खत्म कर दिया है!

फिरकीबाज अपने होठों पर जीभ फिरा रहे हैं और यह साबित करने के लिए अगले शानदार मौके का इंतजार कर रहे हैं कि शहर में उनका कारोबार सबसे अच्छा है।