पिछले सप्ताह तक तकरीबन तय था कि महाराष्ट्र में इस बार नरेंद्र मोदी का जादू नहीं चलने वाला है। मैंने ऐसा देहातों में सुना था और मुंबई शहर में भी। लेकिन इस लेख को लिखने बैठी थी कि मैंने एक जान-पहचान के ‘मराठी मानुस’ से पूछा कि अब चुनावी हवा किसके पक्ष में चल रही है, तो हैरान रह गई जब उसने कहा ‘अब तो लगता है कि भारतीय जनता पार्टी जीतेगी’। यह व्यक्ति मुंबईकर है, लेकिन अपने गांव की खबर रखता है। पत्रकार नहीं, लेकिन राजनीति में जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी लेता है। मैंने जब उससे आगे पूछा कि मोदी का जादू फिर से कैसे चलने लगा है तो उसका जवाब था, ‘मेरी पत्नी के बैंक में तीन हजार रुपए जमा हो गए हैं लाडली-बहना योजना के तहत, इससे फर्क पड़ेगा’।
महिलाओं की नजर में महायुति सरकार ने अच्छा काम किया
इस योजना के तहत महाराष्ट्र की महिलाओं को पंद्रह सौ रुपए दिए जाएंगे अगर उनकी आय के हिसाब से उनको लायक पाया जाता है। आनलाइन वेबसाइट पर जाकर महिलाएं मालूम कर सकती हैं कि उनको ये पैसे मिल सकते हैं कि नहीं। थोड़ी और पूछताछ के बाद मुझे मालूम हुआ कि देहातों में भी कई महिलाओं को यह पैसा मिलने लगा है और अब उनकी नजरों में महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने इतना अच्छा काम किया है कि दोबारा इसको जिताने के लिए कई महिलाओं ने मन बना लिया है। यहां याद दिलाना चाहती हूं आपको कि कुछ ऐसी ही योजना मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने शुरू की थी विधानसभा चुनावों से पहले और विश्लेषक मानते हैं कि उनकी जीत का अहम कारण यह योजना बन गई थी।
राहुल गांधी के ‘खटाखट वादे’ से मोदी को नहीं मिला बहुमत
ऐसी योजनाएं बनाई जाती हैं समाज कल्याण के नाम पर, लेकिन कड़वा सच यह है कि ये वास्तव में मतदाताओं को रिश्वत देकर उनके वोट हासिल करने का काम करती हैं। पांच साल जब आम लोगों के जीवन में शासक कोई ठोस परिवर्तन नहीं ला पाते हैं, तो अचानक इस तरह की योजनाएं बन जाती हैं। याद कीजिए वह भाषण, जो राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों से पहले दिए थे। इनमें वादा किया महिलाओं से कि ‘उनकी सरकार अगर बनती है तो उनके बैंक खातों में हर महीने आठ हजार रुपए जमा किए जाएंगे खटाखट, खटाखट’। सरकार उनकी बेशक न बनी हो, लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि मोदी को पूर्ण बहुमत न मिलने का कारण थे विपक्ष के ऐसे वादे।
अब अगर आप कहें कि ऐसा करके हर्ज क्या होता है इस गरीब देश का, तो जवाब यह है कि नुकसान इस खैरात से होता है असली विकास की योजनाओं को। जैसे एक बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था ‘पैसा आखिर पेड़ों पर तो नहीं उगता है’। उसको लाया जाता है कहीं न कहीं से। जब खैरात बांटने पर लगाया जाता है मतदाताओं के वोट हासिल करने के लिए तो वह पैसा जो लगना चाहिए सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों, शहरों की सफाई, बिजली, पानी पर, वह खर्च होता है वोट हासिल करने पर। भ्रष्टाचार के दौर में होता यह है कि कुछ पैसा आम लोगों की जेबों में भी चला जाए, लेकिन देश की गाड़ी फिर थोड़ा धीरे चलने लगती है विकसित भारत के उस चमकते लक्ष्य की तरफ।
सबूत चाहिए तो दूर जाने की जरूरत नहीं है। अपने घर के बाहर निकल कर थोड़ी दूर पैदल चलने की तकलीफ करेंगे आप तो आपको दिखेंगी गंदी नालियां, सड़ते कचरे के ढेर या बदहाल स्कूल और अस्पताल। इन चीजों की मरम्मत के लिए अक्सर हमारे शासकों के पास पैसे नहीं होते हैं। कुछ इसलिए कि काफी हद तक पैसा जाता है भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं की जेब में, लेकिन कारण यह भी है कि वास्तव में पैसा इतना है नहीं कि खर्च किया जाए मरम्मत के कार्यों पर। नतीजा यह कि भारत माता के दर्शन करने जब विदेशी पर्यटक आते हैं तो गंदगी और बेहाल बस्तियों को देखकर तय यही करते हैं कि अभी तक भारत की गिनती दुनिया के सबसे गरीब देशों में ही है।
जबसे मोदी प्रधानमंत्री बने हैं उनकी कोशिश रही है आम जनता को विकास और समृद्धि के सपने दिखाने की। हाल में जब अपने विदेशी दौरे पर उन्होंने प्रवासी भारतीयों के एक सम्मेलन को न्यूयार्क में संबोधित किया था तो गर्व से उनसे कहा था कि वे दिन दूर नहीं, जब भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में तीसरे नंबर पर आ जाएगी- अमेरिका और चीन के बाद। अच्छा लगा इस बात को सुनकर और उस बड़े मजमे में खूब तालियां बजीं। बाद में जब पत्रकारों ने कुछ श्रोताओं से बात की, तो उन्होंने कहा कि जबसे मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, उनको भारतीय होने पर गर्व होने लगा है। सवाल यह है कि इतना गर्व है इनको, तो वापस वतन क्यों नहीं लौट आते?
सवाल यह भी है कि लाखों रुपए दलालों को देकर हजारों की तादाद में भारतवासी क्यों ‘डंकी’ रास्ते से निकल पड़ते हैं विदेशों में हर साल? घर, परिवार, जमीन-जायदाद सब छोड़ कर जाते हैं ये लोग अमेरिका, कनाडा जैसे संपन्न देशों में नया जीवन शुरू करने। वहां पहुंचकर इनमें से मुट्ठी भर ही ऐसे हैं, जो अमीर बन जाते हैं। बाकी बेहाल जीवन ही बिताते हैं, लेकिन खुश हैं इस बात से कि बुनियादी सुविधाएं तो कम से कम उन देशों में होती हैं। बिजली, पानी, इंटरनेट, सफाई का कोई अभाव नहीं होता है। न ही अभाव है अच्छे स्कूलों और अस्पतालों का, तो जैसे-तैसे उनका जीवन बेहतर बन जाता है। इनमें से बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो भारत छोड़ने के बाद कभी वापस आते हैं इसलिए कि वहां चाहे दिन-रात मेहनत, मजदूरी करनी पड़े, विकसित देशों में रहने के कई फायदे मिलते हैं जो भारत में नहीं हैं।
