सय्यद मुबीन ज़ेहरा
लोगों ने बहुत सोच-समझ कर एक ऐसी पार्टी को सरकार चलाने की जिम्मेदारी सौंपी है, जो दिल्ली की तकदीर बदलने का दावा करती रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में कसर रह गई थी, लेकिन इस बार पांच साल केजरीवाल को दे दिए गए हैं। अब या तो काम करेंगे और अन्य राज्यों में अपने काम की बदौलत जगह बना लेंगे या फिर यहीं अपने वादों के साथ बिखर जाएंगे। इस चुनाव में महिलाओं ने बिना किसी दबाव या प्रभाव के, अपने सोच के मुताबिक मताधिकार का प्रयोग किया। मीडिया में काम करने वाले एक साथी के अनुसार उनके घर से तीन पीढ़ियां वोट देने निकलीं और हर पीढ़ी ने दूसरी पीढ़ी से अलग वोट दिया। यह इस बात का सबूत है कि हमारे यहां लोग अपने अधिकार का महत्त्व समझने लगे हैं और लोकतंत्र अपनी जड़ें जमाने लगा है।
वह पल दिल्ली की महिलाओं के लिए बहुत प्रेरणादायक था, जब आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अपनी पत्नी को जीत के समारोह में समर्थकों के सामने ले आए। उन्होंने न केवल अपनी पत्नी का सबसे परिचय कराया, बल्कि यह कह कर कि जब से मैंने नौकरी छोड़ी है, घर तो यही चलाती हैं, महिलाओं के महत्त्व को रेखांकित किया। इस तरह उन्होंने कामकाजी महिलाओं को भी सम्मान दिया। उन्होंने जिस प्रकार अपनी पत्नी के बारे में बताया, उससे साफ झलक रहा था कि वे ऐसा दिल से कह रहे हैं। यह कोई चुनावी चाल नहीं थी। ऐसा करके केजरीवाल ने यह इशारा तो कर ही दिया कि उनकी सरकार के दौरान महिलाओं के महत्त्व को कम नहीं समझा जाएगा। यही नहीं, उन्होंने अपने पिता को भी सामने लाकर उनके आशीर्वाद का उल्लेख करते हुए यह संदेश दिया कि वे परिवार को कितना महत्त्व देते हैं।
अरविंद केजरीवाल ने अपनी जीत को अपनी पत्नी की जीत बता कर उनकी मेहनत और तपस्या को सलाम किया। हर महिला की ख्वाहिश होती है कि जो व्यक्ति उसका पति बने वह उसे सम्मान दिलाए और खुद भी उसका सम्मान करे। कुछ लोग इस दृश्य को किसी और के जीवन से जोड़ कर राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसा करना सही नहीं है। सबका अपना निजी जीवन होता है और उसका सम्मान किया जाना चाहिए।
महिलाओं को तैंतीस प्रतिशत आरक्षण देने की बात करने वाले दलों में से किसी ने भी इस चुनाव में इस अनुपात में महिलाओं को टिकट नहीं दिया था। लेकिन आम आदमी पार्टी की सभी महिला प्रत्याशी भारी मतों से जीत कर आई हैं। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भाजपा के तीन विधायकों में से एक भी महिला नहीं है। इस लिहाज से केवल आम आदमी पार्टी की महिला विधायक दिल्ली विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती नजर आएंगी। भाजपा ने आठ और कांग्रेस ने पांच महिलाओं को मैदान में उतारा था, जबकि आम आदमी पार्टी ने छह महिलाओं को टिकट दिया था। ये सभी महिलाएं सफल हुई हैं।
अब यह उम्मीद भी जगी है कि दिल्ली में महिलाओं को लेकर सरकार का सोच बदलने का समय आ गया है, क्योंकि महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को लेकर आम आदमी पार्टी ने बड़ा आंदोलन छेड़ा था। इस लिहाज से महिला विधायकों की भूमिका इस मुद्दे पर मुख्य रहने की उम्मीद है। समझा जा सकता है कि महिलाओं के लिए सरकार को जब-जब मार्गदर्शन की जरूरत महसूस होगी, ये महिला विधायक इसमें विशेष भूमिका निभा सकती हैं। इसलिए अगले पांच साल इन महिला विधायकों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, ताकि वे दिल्ली की महिलाओं के लिए कुछ खास काम कर सकें। देखना है कि ये इसमें कितना सफल हो पाती हैं।
अगर देखा जाए तो आम आदमी पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज कराने वाली महिलाओं में शक्ति कम नहीं थी। अलका लांबा, वंदना कुमारी, सरिता सिंह, राखी बिड़लान, प्रमिला टोकस और भावना गौड़ ने रात-दिन की मेहनत के बाद यह जीत हासिल की है। ये महिलाएं राजनीतिक रूप से कहीं अधिक मजबूत पुरुषों से उलझी थीं और उन्हें लोकतांत्रिक जंग में मात देने में सफल हुई हैं। अगर जीत का अंतर देखा जाए, तो इससे इनकी जबरदस्त जीत का अनुमान लगाया जा सकता है। भावना गौड़ तीस हजार से भी अधिक वोटों से जीती हैं। इसी तरह राखी बिड़लान ने कांग्रेस के मजबूत नेता राजकुमार चौहान को मंगोलपुरी से बाईस हजार छह सौ निन्यानबे वोटों से हराया है। प्रमिला टोकस ने उन्नीस हजार से अधिक मतों से जीत हासिल की है। अलका लांबा अठारह हजार से अधिक मतों से जीती हैं। वंदना कुमारी ने करीब ग्यारह हजार वोटों से जीत हासिल की है, जबकि सरिता सिंह रोहतास नगर सीट सात हजार आठ सौ चौहत्तर वोटों से जीती हैं।
इन महिला उम्मीदवारों की जीत यह भी दर्शाती है कि महिलाओं को लेकर हमारे समाज के सोच में कुछ बदलाव जरूर आ रहा है। मतदाताओं ने जिस प्रकार अच्छे-खासे अंतर से आम आदमी पार्टी की महिला उम्मीदवारों को जिताया है, उससे पता चलता है कि अगर कोई बेहतर पार्टी महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारे, तो मतदाता उन्हें सफल बनाने को तैयार हैं। ऐसे में कांग्रेस और भाजपा की उन महिला उम्मीदवारों के बारे में जरूर सोचना होगा, जिन्हें हार मिली है। इनमें किरण बेदी, किरण वालिया और कृष्णा तीरथ विशेष रूप से शामिल हैं। किरण बेदी और कृष्णा तीरथ तो चुनाव पूर्व भाजपा में आर्इं और किरण वालिया ने अपना क्षेत्र बदल दिया था। इनकी हार के बारे में जरूर सोचना होगा।
जो लोग दिल्ली विधानसभा के इतिहास से परिचित हैं उनके अनुसार यह महिलाओं की दूसरी सबसे बड़ी विधानसभा है। इससे पहले यहां महिला विधायकों की संख्या दस रह चुकी है। लेकिन यह संख्या फिर भी इतनी नहीं है कि आधी आबादी का पूरा प्रतिनिधित्व कहा जा सके। यह पहले केवल चौदह प्रतिशत थी और अब नौ प्रतिशत के आसपास है। देखना है कि इस कमी को आम आदमी पार्टी कैसे दूर करती है।
एक और महत्त्वपूर्ण कदम, जिसका इंतजार महिलाओं को रहेगा, वह सीसीटीवी कैमरों को लेकर है। हर गली और मोड़ पर कैमरा लगाने से खर्च बहुत बढ़ सकता है। मैंने अपने क्षेत्र में देखा कि लोग अपनी दुकानों और मकानों पर सीसीटीवी कैमरा लगाते हैं। अगर सरकार ऐसा करने वालों को कुछ सुविधा दे तो उनकी संख्या में अपने आप वृद्धि हो जाएगी। इससे अपराध रोकने में सहायता मिलती है, तो ऐसा करना चाहिए। निश्चित रूप से अगर समाज महिलाओं को लेकर अपने सोच में बदलाव लाना शुरू कर दे तो सरकार का काम आसान हो जाएगा। दिल्ली विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान होना चाहिए।
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