कभी वे दिन थे, जब कांग्रेस अध्यक्ष इतनी अजीब, इतनी रहस्यमयी बातें किया करते थे कि हम राजनीतिक पंडित विश्लेषण कर ही नहीं पाते थे। याद है, जब उन्होंने दलितों को नसीहत दी थी कि उनको आगे अगर बढ़ना है, तो उनको वृहस्पति ग्रह की रफ्तार से चलना होगा! याद है, जब उन्होंने कहा था कि भारत देश नहीं है, मधुमक्खियों का छत्ता है! इस बात को हम तो समझ नहीं पाए, लेकिन नरेंद्र मोदी समझ गए कि यह ऐसा पत्ता फेंका है राहुल गांधी ने, जो 2014 के आम चुनावों में बहुत काम आएगा। सो, ‘शहजादे’ का मजाक जब उड़ाया करते थे चुनाव अभियान में तो हमेशा याद दिलाते थे कि ‘जिस भारत को हम माता समझ कर पूजते हैं, उसको शहजादे मधुमक्खियों का छत्ता समझते हैं।’ फिर जब राहुलजी ने कहा कि गरीबी एक मानसिक अवस्था है, तो इसको मोदी ने तुरुप का पत्ता बनाया 2014 में। राजनीतिक पंडितों के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का यह वक्तव्य इतना रहसमय था कि इसका विश्लेषण करने की तकलीफ ही नहीं किसी ने उठाई।
हाल में राहुलजी में परिवर्तन दिखने लगा है। अपने राजनीतिक और आर्थिक विचारों को अब स्पष्ट तरीके से बयान करने लगे हैं अपने भाषणों में। सो, राजनीतिक तौर पर उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी दृष्टि में भारत के दो हिस्से हैं- एक है अमीरों, धनवानों का भारत, जो नरेंद्र मोदी का भारत है और दूसरा है गरीबों, किसानों, मजदूरों का भारत, जिसकी सेवा उनकी कांग्रेस पार्टी करती आई है और भविष्य में करना चाहती है। इस दूसरे भारत को ध्यान में रख कर उन्होंने पिछले हफ्ते रायपुर की एक आमसभा में ऐलान किया नाटकीय अंदाज में कि उनकी सरकार जब बनेगी तो हर गरीब भारतीय को न्यूनतम आमदनी की गारंटी दी जाएगी, ताकि ‘न कोई भूखा रहेगा हिंदुस्तान में और न कोई गरीब।’
नेक दिल हैं कांग्रेस अध्यक्ष और गरीबों के लिए दर्द भी है उनके दिल में, लेकिन उनके आर्थिक विचार इतने पुराने हैं कि उनका यह भाषण सुन कर मुझे उनकी दादी का दौर याद आया। याद आया वह 1971 वाला आम चुनाव, जिसमें उन्होंने पहली बार ‘गरीबी हटाओ’ का नारा बुलंद किया था। इतना लोकप्रिय हुआ यह नारा कि इंदिराजी के नाम से जुड़ गया। इसके बाद हर चुनाव में इंदिराजी याद दिलाना नहीं भूलती थीं कि ‘वे कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ।’
गरीबी हटाने पर लाखों करोड़ रुपए खर्च हुए इंदिरा गांधी के दौर में, लेकिन गरीबी नहीं हटी। उनके बाद जब उनके बेटे राजीव प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने भी गरीबी हटाने का खूब प्रयास किया, लेकिन पाया उन्होंने कि गरीबों तक हर सरकारी रुपए के सिर्फ पंद्रह पैसे पहुंचते थे। यानी गरीबी हटाने के लिए जिन समाजवादी आर्थिक नीतियों को उन्होंने अपनाया था, वे तकरीबन पूरी तरह नाकाम रहीं। गरीबी तभी कम होने लगी भारत देश में, जब सोनिया गांधी ने नरसिंह राव को प्रधानमंत्री नियुक्त किया और उन्होंने लाइसेंस राज समाप्त करके निजी निवेशकों को आमंत्रित किया अर्थव्यवस्था में निवेश करने के लिए। इसके बाद ही देखने को मिले हैं भारत में संपन्नता और समृद्धि के थोड़े-बहुत आसार। गरीबी हटी तो नहीं है, लेकिन इस हद तक कम हुई कि भारत अति-गरीब श्रेणी से निकल कर आर्थिक महाशक्ति बनने के सपने देखने लगा है।
नरसिंह राव की आर्थिक दिशा लेकिन सोनिया गांधी को पसंद नहीं थी, सो जब उनकी बारी आई, उन्होंने वापस वही आर्थिक रास्ता चुना, जो इंदिरा गांधी ने चुना था गरीबी हटाने का वादा करके। इस रास्ते पर चलने वाले राजनेता लेकिन गरीबी हटाने के नाम पर अक्सर सिर्फ गरीबी बांटने का काम करते हैं, क्योंकि स्पष्ट करते हैं कि धन पैदा करने वाले लोग उनकी नजरों में खलनायक हैं, जो धन पैदा करते हैं सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए, जनता की भलाई के लिए नहीं। सो, धन पैदा करने का काम सरकार को अपने हाथों में ही रखना चाहिए। यही है समाजवादी विचारधारा का बुनियादी सिद्धांत।
समस्या यह है इस सोच में कि सरकारें ज्यादातर पैसा खर्चना जानती हैं, पैसा बनाना नहीं। सो, गरीबी हटाने की जिन विशाल योजनाओं को तैयार करती हैं, उनके लिए पैसा हमेशा कम पड़ जाता है। जो मिलता है उसका भी काफी हिस्सा गरीबों को न जाकर सीधा जाता है भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं की जेबों में। अब जब कांग्रेस अध्यक्ष ने अपनी राजनीतिक और आर्थिक सोच स्पष्ट करने की शुरुआत की है, साफ दिखने लगा है कि वे गरीबी बांटने का काम करेंगे, उसे हटाने का नहीं। हटा कैसे सकेंगे जब उनकी नजरों में धन पैदा करने वाले जो मुट्ठी भर लोग हैं भारत में, वे सब चोर हैं जो इस देश के उस भाग में रहते हैं, जहां रहते हैं नरेंद्र मोदी के ‘सूट-बूट’ वाले दोस्त।
यही सूट-बूट वाले हैं राहुलजी, जिनके पैसों से आपकी न्यूनतम आमदनी वाली योजना के लिए पैसे आ सकते हैं, लेकिन इनको ही आप दुश्मन बना बैठेंगे तो आपको क्यों देंगे आपकी इस महान गरीबी हटाने वाली योजना के लिए पैसा? शायद उनके किसी करीबी दोस्त या सलाहकार ने कुछ इस तरह की बातें कही होंगी उनके भाषण के बाद, क्योंकि अगले दिन ही राहुल गांधी की तरफ से एक दूसरा वक्तव्य आया, जिसमें उन्होंने सफाई देने की कोशिश की। इसमें उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि उनको हर अमीर हिंदुस्तानी से नफरत है, नफरत उनको सिर्फ नीरव मोदी जैसे लोगों से है। जो हो, अच्छा हुआ कि आने वाले आम चुनावों से पहले ही हम जान गए हैं कि राहुल गांधी के राजनीतिक और आर्थिक विचार क्या हैं। अच्छा हुआ कि हम समझ गए हैं कि वे अपने परिवार की गरीबी बांटने वाली परंपरा को कायम रखेंगे।