जून 2015 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में एक उम्मीदवार ने कहा था, ‘जब मैक्सिको अपने लोगों को भेजता है तो वह अपने सबसे अच्छे नागरिकों को नहीं भेज रहा होता है। वह उन लोगों को भेज रहा है जो कई तरह की समस्याओं का कारण बने हुए हैं। वे नशीली दवाएं ला रहे हैं, अपराध कर रहे हैं, वे बलात्कारी हैं।’ लोग काफी गुस्से में थे, फिर भी छह करोड़ उनतीस लाख चौरासी हजार आठ सौ पच्चीस लोगों ने उन्हें नवंबर 2016 में वोट दिया था। जनवरी 2017 में इस उम्मीदवार ने दुनिया के सबसे अमीर और ताकतवर देश के पैंतालीसवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। ये डोनाल्ड ट्रंप हैं।
मुझे संदेह है कि भारत में ऐसे कई उम्मीदवार होंगे, जो इस वक्त चल रहे लोकसभा चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की तरह ही कुछ करना और सफल होना चाहेंगे। इस साल मार्च और अप्रैल में ढेरों बयान सुनने को मिले और मई में ऐसा और ज्यादा होगा जब नफरत और उग्रता भरे बयान तब तक आते रहेंगे जब तक कि 17 मई को चुनाव प्रचार बंद नहीं हो जाएगा।
अपने को ऐसे भाषण और बयान सुनने के लिए तैयार कर लीजिए, जिनमें जहर उगला जाएगा और जो उग्रता लिए हुए होंगे। मैं एक उदाहरण से शुरू करता हूं, जिसे सबसे नरम माना जा सकता है। अनर्गल प्रलाप करते रहने के लिए मशहूर भाजपा सासंद साक्षी महाराज ने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत इन शब्दों से की- ‘2024 में कोई चुनाव नहीं होगा। मैं संन्यासी हूं और भविष्य देख सकता हूं। देश में यह आखिरी चुनाव होगा।’ लोकसभा चुनाव-2019 की यह ‘शुभ’ शुरुआत थी।
अपशब्द और उपहास
चुनाव प्रचार में पहला हथियार अपशब्द था। यहां इसके कुछ उदाहरण देखिए। केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने 18 मार्च को कहा था- ‘पप्पू कहता है कि वह प्रधानमंत्री बनना चाहता है। इसलिए मायावती, अखिलेश यादव, पप्पू और पप्पू का पप्पी भी इस कतार में खड़े हो गए हैं।’ बलिया से भाजपा के विधायक सुरेंद्र सिंह ने 24 मार्च को कहा था, ‘राहुल की मां (सोनिया गांधी) भी इटली में उसी पेशे में थीं और उनके पिता ने उन्हें अपना बना लिया था। उन्हें (राहुल गांधी) भी अपने परिवार की परंपरा को बढ़ाते हुए सपना को अपना बना लेना चाहिए।’ अगली बेतुकी बात देखिए। महेश शर्मा ने 20 मार्च को मायावती पर निशाना साधते हुए कहा था- ‘मायावतीजी रोजाना फेशियल करवाती हैं और बाल रंगती हैं, ताकि जवान दिखती रहें।’ धमकियां धमकी सामान्य तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार रहा है। इटावा के भाजपा उम्मीदवार रामशंकर कठेरिया ने 23 मार्च को कहा था- ‘प्रदेश और केंद्र में हम सत्ता में हैं। अब जो भी हमारी तरफ उठाएगा उसकी अंगुलियां काट देंगे।’
मेनका गांधी भी ऐसी धमकियां देने से दूर नहीं रहीं। 12 अप्रैल को मुसलिम समुदाय के लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था- ‘मैं यह लोकसभा चुनाव तो किसी तरह जीत ही जाऊंगी, लेकिन अगर बिना मुसलमानों के समर्थन से जीती, तो यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा। बाद में जब कोई मुसलमान कोई काम लेकर आता है, तो मुझे लगता है इसे छोड़ो, क्या फर्क पड़ता है इससे?… मैं मुसलमानों के या बिना उनके समर्थन के जीत तो रही ही हूं।’ एक भाजपा नेता रंजीत बहादुर श्रीवस्ताव ने 19 अप्रैल को यह कहने में कोई हिचक नहीं दिखाई- ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों का मनोबल तोड़ने की कोशिशें की हैं। अगर आप मुसलमानों की नस्ल को खत्म करना चाहते हैं तो प्रधानमंत्री मोदी को वोट दीजिए।’
इसी तरह दूसरी तरह की भी धमकियां थीं। इनके उदाहरण देखिए- महाराष्ट्र में मंत्री सुश्री पंकजा मुंडे ने 21 अप्रैल को कहा- ‘विपक्ष का कहना है कि ये सर्जिकल स्ट्राइक क्या है और किसने की। तब आपको राहुल गांधी में एक बम बांध कर उन्हें दूसरे देश में भेज देना चाहिए। तब उन्हें समझ में आ जाएगा।’
उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया। परमाणु हथियारों को लेकर पाकिस्तान के कथित दावों का जिक्र करते हुए उन्होंने यह कह दिया- ‘तब हमें क्या करना चाहिए? हमने अपने हथियार क्या दीवाली के लिए रखे हुए हैं?’ मोदी से पहले दुनिया के किसी भी नेता (उत्तर कोरिया के किम को छोड़ कर) ने 1945 के बाद परमाणु हथियारों को लेकर इतनी अगंभीर बात नहीं की।
नफरत भरे भाषण
कई नफरत भरे शब्द बोले जा रहे हैं। इसमें सबसे आगे प्रज्ञा ठाकुर रहीं, जिन्होंने 19 अप्रैल को एक भाषण में यह कहा था कि तेरा सर्वनाश होगा और लीजिए, दिल थाम कर सुनिए श्री हेमंत करकरे (जो एक आदर्श और बहादुर पुलिस अधिकारी थे) आतंकवादियों से लड़ते हुए मारे गए थे। मुसलिम समुदाय को लेकर भाजपा ने नफरत भरे भाषणों को हथियार इस उम्मीद में बनाया है कि इससे दो समुदायों के बीच ध्रुवीकरण होगा और लोग बंटेंगे। इस इरादे से जो बयान दिए गए, उन पर गौर फरमाएं-
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने नौ अप्रैल को कहा था- ‘अगर कांग्रेस, सपा और बसपा को अली में भरोसा है तो हमें भी बजरंगबली में भरोसा है।’
कर्नाटक के पूर्व उपमुख्यमंत्री केएस ईश्वरप्पा ने एक अप्रैल को कहा था- ‘हम कर्नाटक में मुसलमानों को टिकट नहीं देंगे, क्योंकि आप लोगों का हम पर भरोसा नहीं है।’
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 11 अप्रैल को यह कह कर भाजपा का इरादा साफ कर दिया था कि ‘बौद्ध, हिंदू और सिखों को छोड़ कर हम एक-एक घुसपैठिए को निकाल बाहर करेंगे।’ विपक्ष के पास भी बोलने वाले थे, लेकिन कहीं से भी ऐसी कोई बात सुनने में नहीं आई, जो अपशब्द या धमकी के करीब हो।
अभी प्रचार के लिए चार चरण बाकी हैं और उन्नीस दिन बचे हैं। कई उम्मीदवार और प्रचारक काफी कुछ शब्द बाण छोड़ेंगे। हर गैर-जिम्मेदार अभिव्यक्ति से भारत लोकतंत्र में नागरिक संवाद के पायदान पर एक कदम और नीचे आ जाएगा। असल में जो खतरा है वह भाषण का नहीं, बल्कि खुद लोकतंत्र का है।