लगातार वीडियो दिखाए जाते हैं। एक सैलानी ‘जिपलाइनर’ पर हंसते हुए हवा में तैरता है। नीचे मैदान में गोलियां चलने की आवाज आती है। एक आदमी गोली खाकर गिरता दिखता है! कैसी विडंबना है कि बरसती गोलियों के बीच भी एक सैलानी बेखबर है, दूसरा नीचे गोली खाकर गिरता है और हम बेहद बेचैन होकर इस वीडियो को देखते हैं। आह! वह पहलगाम में आतंकियों द्वारा किया गया बर्बर हमला, रोती-बिलखती महिलाओं, बच्चों और परिवारों का बार-बार प्रसारण..!

सब मिलकर इतना कारुणिक दबाव बनाता है कि वक्फ के विरोध की खबर हवा हो जाती है और सर्वदलीय बैठक में पूरा विपक्ष एक सुर में कहता दिखता है कि सारा देश एकजुट है… हम सरकार के साथ हैं! लेकिन अगले ही दिन कुछ विपक्षी नेताओं के सुर बदल जाते हैं।

प्राथमिक जांच कहती रहती है कि इसके पीछे पाकिस्तान की आइएसआइ पालित आतंकियों का हाथ है, लेकिन अपने विपक्ष के कई नेताओं के मिजाज का जवाब नहीं। एक दिन कहते हैं कि सरकार के साथ हैं, लेकिन अगले ही पल सरकार को कठघरे में खड़ा करने लगते हैं कि हमले के वक्त कहां थी सरकार? दूसरे कहते हैं कि यह अनुच्छेद 370 हटाने की प्रतिक्रिया है..! विपक्षी दल का नेतृत्व कहता है कि सावधानी से बयान दें, लेकिन बयान नहीं रुकते। अकेले थरूर का कहा संतुलित लगता है कि पहले सरकार की कार्रवाई का इंतजार करो, जिम्मेदारी बाद में भी देखी जा सकती है।

कई चैनल हर दिन ‘बदला लो, बदला लो’ का राग अलापते रहे

कई चैनल, एंकर और संवाददाता हर दिन ‘बदला लो, बदला लो’ का राग अलापते रहते हैं और फिर पाकिस्तान और भारत की सामरिक क्षमता की तुलना करने लगते हैं कि वहां खाने के लाले हैं, यहां हम दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था हैं। पाकिस्तान के मुकाबले भारत के पास दो-तीन गुना लड़ाकू जहाज, टैंक, फौज, मिसाइलें और एटम बम हैं। उनकी अर्थव्यवस्था ‘डूम डूम’ है, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था ‘बूम बूम’ है और इस बार पाकिस्तान के चार टुकड़े हो जाने हैं।

अधिकतर चैनल ‘भड़क’ मारते दिखते हैं। उनकी हर लाइन जोशीली और ‘युद्ध शुरू करने’ की है। लगभग सभी चैनलों पर एक जैसी लाइनें नजर आती है कि ‘कुछ बड़ा’ होने वाला है… पाक देखता रह जाएगा… वह थर-थर कांप रहा है… रफाल-सुखोई की गरज ने पाकिस्तानियों की नींद उड़ा दी हैं… गृहमंत्री कहते हैं कि हर एक को चुन चुनकर मारेंगे..!

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सुरक्षा सचिव समेत मंत्रिमंडल के साथ बैठकें… सीडीएस के साथ बैठक… फौजी अधिकारियों को पूरी छूट दे दी गई है! खबरें आती हैं कि पाकिस्तान द्वारा संघर्षविराम का उल्लंघन किया जा रहा है और भारत इसका मुंहतोड़ ‘जवाब’ दे रहा है… और पहलगाम में ‘जांच’ के लिए एनआइए गई हुई है।

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इस बीच, कश्मीर विधानसभा में एक दिन पक्ष-विपक्ष में भारी टकराव होता है, लेकिन अगली बैठक में सब एक होकर केंद्र के साथ होने की बात कहते हैं। उमर अब्दुल्ला का भाषण बेहद संवेदनशील महसूस होता है। चैनलों में फिर से नई लाइन आने लगती है: 36 घंटे का इंतजार करें… 36 घंटे में कुछ बड़ा होने वाला है… देखा, ‘पानी रोका’ तो पाक एक-एक बूंद को तरसा!

फिर भी कुछ विपक्षी नेता संसद का एक दिन का आपात सत्र बुलाने की मांग करने लगते हैं। कई एंकर कहते हैं कि जब अमेरिका पर हमला हुआ, तब वहां के विपक्ष ने जिम्मेदारी की बात नहीं उठाई, लेकिन अपना विपक्ष अक्सर सरकार की जिम्मेदारी तय करने पर तुल जाता है।

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एक चैनल की लाइन है: देश का मिजाज बहुत गुस्से में है, लेकिन होता कुछ नहीं! चैनल गुस्से में उबलते-उबालते रहते हैं। क्या चैनलों में ऐसे एलान करके युद्ध लड़े जाते हैं कि जल्दी ही होने वाला है कुछ बड़ा..? फिर भी जनता सांस रोकर इंतजार करती है कि अब बदला लिया कि अब बदला लिया और हम सब तुरंत बदले के इंतजार में उबलते रहते हैं कि अब मरा पाकिस्तान..!

अपनी ऐसी भड़काऊ लाइनों से चैनलों ने दर्शकों को बेहद उत्तेजित कर दिया। वे इंतजार करते रहते हैं कि अब कुछ बड़ा हुआ कि अब कुछ बड़ी खबर आई, लेकिन आती है तो ‘जाति जनगणना कराने’ के सरकारी फैसले की खबर। फिर मीडिया द्वारा बढ़ाई गई उत्तेजना जाति गणना के ‘गणित’ में बदल जाती है और विपक्ष में तुरत ‘श्रेय’ की लड़ाई शुरू हो जाती है। हम सब एकदम भ्रमित कि कहां तो बम बरसने वाले थे और कहां होने लगी ‘जाति गणना..!’

एक चैनल एक सर्वेक्षण के हवाले से ‘देश का मिजाज’ बताते हुए कहता है कि पचहत्तर फीसद लोग चाहते हैं पुलवामा से भी बड़ा बदला लिया जाना चाहिए..! फिर ‘गंगा एक्सप्रेस वे’ पर युद्धक विमान रफाल, सुखोई, जगुआर के ‘युद्धाभ्यास’ की खबरों का सीधा प्रसारण आने लगता हैं।