कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल, 2025 को चुनिंदा पर्यटकों पर हुए आतंकवादी हमले के लिए एक प्रभावी और साफ संदेश देने वाली निवारक प्रतिक्रिया की जरूरत थी। सवाल यह था कि वह किस स्तर की प्रतिक्रिया हो? ‘बदला’ और बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई के लिए राष्ट्रवादी आह्वान किए गए। बहुत कम लोगों को एहसास हुआ कि इसका जवाब भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण युद्ध नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस-यूक्रेन संघर्ष के शुरुआती दिनों में हस्तक्षेप किया था और 16 सितंबर, 2022 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था, ‘यह युद्ध का युग नहीं है’। इन शब्दों ने नरेंद्र मोदी को पूरी दुनिया में गर्मजोशी से भरी तालियां दिलाई थीं; भारत में भी उन्होंने अपने लिए एक राजनेता और शांतिदूत के रूप में प्रशंसा हासिल की।

दुनिया के कई देशों ने इन शब्दों को याद किया और निजी तौर पर भारत को इसी मुताबिक सलाह दी। युद्ध शुरू न करने के अन्य कारण भी थे: पहला, रूस-यूक्रेन संघर्ष या इजराइल-हमास संघर्ष के विपरीत, भारत-पाकिस्तान टकराव में दोनों पक्ष परमाणु शक्ति से लैस थे और उनके पास परमाणु हथियार थे। दूसरा, दुनिया युद्ध के प्रति असहिष्णु हो गई है। मौजूदा दौर में चल रहे दो बड़े युद्धों में यूक्रेन में अब तक 13,000 और गाजा में 50,000 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है, जबकि रूस और इजराइल में सैकड़ों लोग हताहत हुए हैं। दो परमाणु शक्तियों के बीच एक और बड़ा युद्ध दुनिया की स्थिरता और अर्थव्यवस्था को विनाश के कगार पर ला सकता था।

बुद्धिमानी भरा फैसला

प्रधानमंत्री मोदी ने इन बाधाओं को समझा और बुद्धिमानी से चुनिंदा लक्ष्यों तक सीमित सैन्य प्रतिक्रिया का विकल्प चुना। मंगलवार, 7 मई, 2025 को भारतीय सेना ने नौ लक्ष्यों (पाकिस्तान में चार और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में पांच) को निशाना बनाकर मिसाइल और ड्रोन छोड़े और आतंकवादी समूहों के मुख्य बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया। यह सोच-समझ कर चलाया गया सीमित अभियान था- पैमाने और समय दोनों के लिहाज से- और इसने अपने उद्देश्यों को हासिल किया। यह एक पीड़ित देश की वैध प्रतिक्रिया थी।

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भारत की प्रतिक्रिया ने नागरिक बस्तियों या संपत्ति को निशाना नहीं बनाया। न ही इसका लक्ष्य पाकिस्तान का सैन्य बुनियादी ढांचा था। इसके बाद जैसा अपेक्षित था, पाकिस्तान ने सेना के जनरलों और आइएसआइ के प्रभाव में एकमात्र तरीके से जवाबी कार्रवाई की- नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार गोलीबारी। अगर पाकिस्तान ने पूर्ण पैमाने पर युद्ध शुरू किया होता, तो उसे ओआइसी सहित अन्य देशों की निंदा का सामना करना पड़ता। हालांकि यह मान लेना भोलापन होगा कि पाकिस्तान में सैन्य आका आने वाले दिनों और हफ्तों में ज्यादा आक्रामक तरीके से जवाबी कार्रवाई नहीं करेंगे।

इसके अलावा, यह मान लेना भी उतना ही भोलापन होगा कि तीन लक्षित आतंकवादी संगठन- द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ), लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) सात मई की प्रतिक्रिया में खत्म हो गए थे। उनका नेतृत्व अभी भी बरकरार है और अतीत में उन्होंने दिखाया है कि वे मारे गए नेताओं की जगह लेने के लिए नए नेताओं को खड़ा करने में सक्षम हैं। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान में ऐसे युवा हैं जो भारत में आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने के लिए भर्ती होने, प्रशिक्षित होने और प्रेरित होने के लिए तैयार हैं। इसमें अपनी जान कुर्बान करना भी शामिल है। जब तक पाकिस्तान के सैन्य आका और आइएसआइ का राज रहेगा, तब तक भारत के लिए खतरा खत्म नहीं होगा।

नुकसान अपरिहार्य

किसी भी संघर्ष में यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि केवल किसी एक पक्ष को ही जान या सैन्य उपकरणों का नुकसान होगा। भारत सरकार ने स्वीकार किया है कि सीमा पार से गोलीबारी में कुछ भारतीय नागरिक मारे गए हैं। यह दुखद और दर्दनाक है, लेकिन लंबी सीमा/एलओसी को देखते हुए, कुछ लोगों की जान जाना अपरिहार्य है। यह भी संभव है कि भारत ने कुछ सैन्य साजो-सामान खो दिया हो। पाकिस्तान ने विमान मार गिराने के बारे में बेकार के दावे किए हैं, लेकिन बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री इसके समर्थन में कोई सबूत नहीं दे पाए और हकलाते हुए एक दयनीय आंकड़ा पेश किया। अगर एहतियाती उपायों के बावजूद सीमा पार से गोलाबारी का दायरा फैलता है, तो भारतीय पक्ष को और अधिक नुकसान होगा। युद्ध निर्दयी है।

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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कश्मीर में आतंकवाद की तीन बड़ी घटनाएं हुई हैं- उरी, पुलवामा और पहलगाम। प्रत्येक घटना के बाद सरकार ने सतर्क तरीके से प्रतिक्रिया दी। ऐसा लगता है कि सरकार ने अधिक स्पष्ट और पारदर्शी तरीके से बोलना और काम करना सीख लिया है: सात मई की प्रतिक्रिया के बाद सरकार ने नक्शे और दृश्य जारी किए। एक चतुर चाल में सरकार ने दो युवा महिला अधिकारियों को, एक सेना से और एक वायु सेना से, टेलीविजन पर सीधा प्रसारण के तहत मीडिया को जानकारी देने के लिए उतारा।

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देश ने देखा। एकमात्र खटास वाली बात यह थी कि प्रधानमंत्री 24 अप्रैल और सात मई को आयोजित सर्वदलीय बैठकों में अनुपस्थित थे। लोगों ने यह भी देखा है कि नरेंद्र मोदी ने पहलगाम हमले के बाद कश्मीर का दौरा नहीं किया है; न ही वे पीड़ितों के किसी भी परिवार से मिलने गए। यह यात्रा न करने की तुलना 3 मई, 2023 से संघर्ष प्रभावित मणिपुर का दौरा करने से उनके बेवजह इनकार से की जा रही है।

पाकिस्तान की दुविधा

आठ मई को पाकिस्तान ने अपना रुख बदला और मिसाइल, ड्रोन और विमान तैनात करके जवाबी कार्रवाई की। इस पर भारत ने जवाबी हमला किया और पाकिस्तान में कई जगहों पर वायु रक्षा प्रणाली को निशाना बनाया। भारत ने अपनी कार्रवाई को नपी-तुली और नियंत्रित बताया, लेकिन पाकिस्तान ने इसे अलग तरह से देखा। मुझे लगता है कि भारत सरकार ने चतुराई से गेंद पाकिस्तान के पाले में डाल दी है और संकेत दिया है कि ‘अगर आप युद्ध चाहते हैं, तो हम तैयार हैं’। पाकिस्तान के लिए समझदारी भरा कदम यही होगा कि वह पहलगाम और उसके परिणामों को पीछे छोड़ दे, आतंकवादियों पर लगाम लगाए और भारत के साथ असहज युद्धविराम करे।

सवाल यह है कि पाकिस्तान की सत्ता किसके हाथ में है? क्या यह प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (नवाज शरीफ के भाई) के अधीन बदहाल नागरिक सरकार है, या पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ? अनिश्चित भविष्य, तनावपूर्ण सीमा, युद्ध की चेतावनी, उच्च तीव्रता वाले संघर्ष, सीमा पार से गोलीबारी के साथ-साथ सैन्य और नागरिक हताहतों के लिए खुद को तैयार रखें। मुश्किल दिन आने वाले हैं।