पिछले सप्ताह उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री ने कहा कि एक दिन आएगा, जब नरेंद्र मोदी को भगवान माना जाएगा भारत में। श्रीराम और श्रीकृष्ण के साथ उनकी तुलना की। मुख्यमंत्री के इस भाषण पर इतना ध्यान नहीं दिया गया, इसलिए कि उन्होंने एक दूसरे भाषण में फटी हुई जीन्स पहनने वाली महिलाओं की बड़ी बेवकूफी से आलोचना की। उनका यह बयान महिलाओं को इतना दकियानूसी और बुरा लगा कि इसको ट्रेंड करवाया सोशल मीडिया पर उन्होंने मिल कर। ऐसा होना ठीक भी था, इसलिए कि तीरथ सिंह रावत को कोई अधिकार नहीं है आज की भारतीय महिलाओं के लिबास को लेकर प्रवचन देने का। फटी जीन्स पहनना पसंद नहीं उनको, तो न पहनें। बस।
मेरी राय में लेकिन उनके उस दूसरे बयान पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है, इसलिए कि उन्होंने नरेंद्र मोदी को भगवान कह कर साबित किया है एक बार फिर कि भारतीय जनता पार्टी में आगे बढ़ने के लिए जरूरी हो गया है प्रधानमंत्री की इस तरह चापलूसी करना। पश्चिम बंगाल में इन दिनों जो भारतीय जनता पार्टी के नेता निकले हैं प्रचार करने, उनका शायद ही कोई भाषण मिलेगा जिसमें प्रधानमंत्री की प्रशंसा न की गई हो घुटने टेक कर। कई तो ऐसे भाषण हैं, जिनको सुन कर ऐसा लगता है कि मोदी अब प्रधानमंत्री न रह कर देश के लिए एक मसीहा बन गए हैं। शर्म की बात यह भी है कि इस तरह के चापलूसी भरे भाषण उनके मंत्री भी देते हैं आजकल।
ऐसे भाषण अलोकतांत्रिक हैं और असंवैधानिक भी। जिन महापुरषों ने हमारा संविधान बनाया था उन्होंने ऐसे समय में हर भारतीय को वोट करने का अधिकार दिया था, जब देश की अधिकतर आबादी आशिक्षत थी, गरीब थी, पुराने वहमों में उलझी हुई थी। यह वह समय था, जब भारत का तकरीबन आधा हिस्सा राजा-महाराजाओं के शासन के अधीन रहा था और इन शासकों को आम लोग भगवान मानते थे। इन पुरानी आदतों और विचारों से छुटकारा पाने के लिए हमारे संविधान में हर भारतीय को वोट डालने का अधिकार दिया गया था। शायद ही कोई दूसरा लोकतांत्रिक देश है दुनिया में, जहां ऐसा किया गया हो। अमेरिका में महिलाओं को वोट का हक लड़ कर लेना पड़ा और इंग्लैंड में एक समय था जब गरीब और अशिक्षित लोगों को वोट करने का अधिकार नहीं होता था।
हमारे संविधान को इसलिए कई राजनीतिक पंडित क्रांतिकारी पहल मानते हैं। आज अगर लोकतंत्र की जड़ें हमारे देश में मजबूत हैं, तो इसलिए कि लोकतंत्र की आदत हो गई है आम भारतीय को और इस पर हमें गर्व होना चाहिए। लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र नाजुक चीज है। कुदरती और मजबूत जड़ों को भी उखाड़ लेते हैं ऐसे राजनेता जो चुनावों को जीतने के बाद अपने आप को राजनेता नहीं, भगवान समझने लगते हैं। यह नहीं कह रही हंू मैं कि हमारे प्रधानमंत्री को यह जानलेवा रोग लग गया है, लेकिन ऐसा जरूर कहना चाहती हूं मैं कि उनको अपने आप को ऐसे लोगों से दूर रखना चाहिए, जो उनकी झूठी प्रशंसा करते हैं।
सच तो यह है कि मोदी की असली प्रशंसा करने के लिए बहुत सारी चीजें हैं। उन्होंने असली नेतृत्व दिखा कर देश की कश्ती को एक अति-मुश्किल दौर से निकाल कर दिखाया है। पिछले सप्ताह उन्होंने स्पष्ट फैसले किए हैं, जिनसे कई सरकारी कार्यों और सेवाओं का निजीकरण किया जाएगा। निजी निवेशकों को मौका दिया जाएगा कई रेल और विमान सेवाओं में निवेश करने का। कई सरकारी कंपनियों को बेचने की तैयारी हो रही है पिछले सत्तर वर्षों में पहली बार। ऐसा करके मोदी अपने उस बयान पर अमल करते दिख रहे हैं, जो उन्होंने लोकसभा में दिया था और जिसमें उन्होंने कहा था कि ऐसा सोचना बेवकूफी है कि इन सेवाओं को सिर्फ आईएएस के अफसर चला सकते हैं।
निजीकरण की काफी आलोचना शुरू हो गई है उन राजनीतिक दलों की तरफ से, जो अब भी अटके हुए हैं उन समाजवादी विचारों में, जिनके कारण देश गरीब रहा है। उन नीतियों के कारण अजीब हाल पैदा हुआ है, जिसमें दुनिया की सबसे आधुनिक सेवाएं शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में भारत में मिलती हैं और सबसे रद्दी भी। दुनिया के सबसे कामयाब उद्योग भारत में हैं और सबसे असफल भी।
मोदी इस स्थिति को बदलने में सफल होते हैं तो भारत की शक्ल बदल कर दिखाएंगे। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने स्वच्छ भारत को एक जनआंदोलन का रूप देकर जनता की सबसे गंदी आदत को तकरीबन पूरी तरह समाप्त करके दिखाया है। अपने इस दूसरे कार्यकाल में उन्होंने जल शक्ति मिशन शुरू किया है, जिसका लक्ष्य है कि हर भारतीय के घर में नल से जल मिले। ऐसा करना आसान नहीं होगा, लेकिन असंभव नहीं है। असंभव होता तो ऐसा क्यों है कि भारत सिर्फ उन मुट्ठी भर पिछड़े देशों में है, जो जीवन की सबसे जरूरी चीज को आम लोगों को दे नहीं पाया है? दीक्षिण-पूर्व के कई हमसे गरीब देशों में पानी की समस्या समाप्त हो गई है।
मोदी की उपलब्धियां और भी हैं। ग्रामीण भारत में उन्होंने दूर-दराज गांवों तक इंटरनेट की सेवाएं पहुंचाई हैं और गैस उन गरीब घरों में उपलब्ध करवाने का काम किया है, जो सपने में नहीं सोच सकते थे कि उनके पास गैस का चूल्हा होगा। इन चीजों की जितनी तारीफ की जाए कम होगी, सो क्या जरूरत है झूठी प्रशंसा करने की? क्या जरूरत है चापलूसी की, जब असली तारीफ हो सकती है? समाप्त करती हंू हबीब जालिब के एक शेर से, जो हर राजनेता को याद रहना चाहिए- ‘तुझसे पहले जो वो एक शख्स यहां तख्तनशीं था/ उसको भी अपने खुद होने पे इतना ही यकीन था।’