वरिष्ठ पत्रकार होने का सबसे बड़ा फायदा है कि हम जैसों ने कई प्रधानमंत्रियों के दौर देखे हैं, सो जब कोई नई नीति बनती है जो किसी बीते दौर की बुरी यादें दिलाती है, तो हम खतरे को पहचान सकते हैं। पिछले सप्ताह खतरे की घंटी तब बजने लगी मेरे लिए जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जनसंख्या को काबू करने के लिए अपने नए कानून का ऐलान किया। इस नए कानून के तहत जिन लोगों के दो से ज्यादा बच्चे हैं, उनको न सरकारी नौकरियां मिलेंगी, न सरकारी समाज कल्याण योजनाओं का लाभ। योगी आदित्यनाथ ने इस कानून की घोषणा क्या की कि कतार लग गई भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्रियों की योगी की नकल करने की। मालूम यह भी हुआ कि भारतीय जनता पार्टी के एक राज्यसभा सांसद ने ऐसा कानून राष्ट्रीय स्तर पर लाने के लिए पहल की है।
सांसद का नाम राकेश सिन्हा है और उन्होंने इंडिया टुडे चैनल पर स्पष्ट किया कि ऐसा करने की प्रेरणा उन्होंने इंदिरा गांधी से ली है। राहुल कंवल के शो पर चर्चा में भाग लेते हुए उन्होंने कहा कि उनको अच्छी तरह याद हैं वे दिन, जब उनके गांव की दीवारों पर ‘हम दो, हमारे दो’ लिखा रहता था पीले रंग के पोस्टरों पर। मुझे भी वे दिन याद हैं अच्छी तरह। इमरजेंसी का दौर था और इंदिराजी ने अपने लाडले बेटे संजय गांधी के हवाले भारत का शासन कर दिया था।
संजय की राजनीतिक समझ के मुताबिक भारत की गुरबत का सारा दोष जाता था आबादी के बेकाबू तरीके से बढ़ने पर। सो, भारत सरकार की नरमदिल परिवार नियोजन नीति को कूड़ेदान में फेंक करके संजय ने नई नीति बनाई, जिसके तहत सरकारी अफसरों को आदेश दिए गए थे नसबंदी के ‘टारगेट’ पूरे करवाने के। तानाशाही का दौर था और तानाशाह के बेटे का हुक्म मानना लाजमी, सो इस आदेश के बाद शुरू हुई जबर्दस्ती नसबंदी की मुहिम।
पुरानी दिल्ली के फुटपाथों पर से गरीब, बेघर मर्दों को रात के अंधेरे में उठा कर ले जाती थीं काले शीशों वाली सफेद गाड़ियां। अगले दिन उनको सड़क किनारों पटक दिया जाता था नसबंदी करने के बाद। इनमें कई ऐसे थे, जिनको बाद में ही पता चलता था कि उनके साथ हुआ क्या था। याद है मुझे कि गुस्से की ऐसी लहर फैल गई थी पुरानी दिल्ली की बस्तियों में कि 1977 में जब वोट करने का समय आया, तो लोगों ने ‘जय नसबंदी, जय बुलडोजर’ चिल्लाते हुए अपने वोट डाले। बुलडोजर इसलिए कि संजय गांधी ने उनके घरों पर बुलडोजर चलवाए थे दिल्ली को खूबसरत बनाने के बहाने।
संजय की इन हरकतों के बाद परिवार नियोजन का जिक्र तक बंद कर दिया था राजनेताओं ने, लेकिन इसके बावजूद जनसंख्या की वृद्धि दर जो 1994 में 3.4 थी 2015 में 2.2 तक गिर गई। समझदार लोग इससे समझ गए हैं कि बेकाबू आबादी की वृद्धि की समस्या अब कम हो गई है और कम होती जाएगी, जैसे-जैसे गुरबत और जहालत कम होगी। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जो लोग प्रेरणा लेते हैं उनको विश्वास है कि मुसलमानों की आबादी हिंदुओं से ज्यादा अगर बढ़ती गई, तो एक दिन फिर से मुसलमानों का राज आ सकता है या बंटवारे की फिर से नौबत। सो, आम जनता की असली समस्याओं से ध्यान भटका कर योगी जैसे लोग फिर से उठाने लगे हैं आबादी की वृद्धि ‘विस्फोटक’ होने की बात।
इतिहास में ये लोग कमजोर होते हैं, सो उससे सबक या तो लेते ही नहीं या गलत सबक लेते हैं। राकेश सिन्हा गर्व से कहते हैं कि उनका आरएसएस से रिश्ता करीब का है, तो उन्होंने उन कई बैठकों में भाग लिया होगा, जिनमें संघ के तथाकथित बुद्धिजीवी इकट्ठा होकर मुसलमानों की बढ़ती आबादी की बातें करते हैं। शायद सच है कि कई मुसलिम बहुल जिलों में मुसलिम परिवारों में हिंदुओं से ज्यादा बच्चे होते हैं। लेकिन इसका असली इलाज है लड़कियों के लिए युद्ध स्तर पर स्कूलों का निर्माण और लोगों को छोटे परिवारों के लाभ समझाना।
कानूनी तौर पर ज्यादा बच्चे वाले परिवारों के साथ भेदभाव करना नासमझी है। ऐसा हो सकता है सिर्फ चीन जैसे तानाशाही वाले देशों में। उन देशों में नहीं, जहां लोकतंत्र है। चीन की बात आई है, तो याद दिलाना जरूरी है कि हाल में हमारे इस दुश्मन देश ने इजाजत दी है, दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपने लोगों को। ऐसा करना इसलिए जरूरी हो गया था, क्योंकि उस देश में अब नौजवानों की गंभीर कमी महसूस होने लगी है।
दशकों तक उन लोगों को दंडित किया जाता था, जो एक से ज्यादा बच्चे पैदा करते थे। तानाशाही वाले देशों में दस्तूर है जबर्दस्ती, सो लाखों महिलाओं के गर्भपात करवाए जाते थे। मजे की बात है कि अब महिलाओं से चीन की सरकार मिन्नतें कर रही है तीन बच्चे पैदा करने की। लेकिन अब औरतें शिक्षित हैं और दो से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करना चाहती हैं।
इस तरह के कानून बनने लगेंगे भारत में तो ऐसी नौबत यहां भी आ सकती है भविष्य में। हमारी समस्याएं वैसे भी गंभीर हैं, गुरबत और अशिक्षा के कारण। इस महामारी ने दिखाई है दुनिया को हमारी स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोरियां, हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का असली हाल। उनकी लाचारी, गरीबी और उनकी मजबूरियां अब किसी से छिपाई नहीं जा सकती हैं। इन चीजों का हल ढूंढ़ने के बदले अगर हमारे राजनेता ऐसे कानून बनाने लगेंगे जो तानाशाह देशों में बनते हैं, तो भारत को कमजोर करने का काम होगा, सशक्त नहीं। समाप्त करती हंू इस दुआ के साथ कि योगी आदित्यनाथ के नक्शे-कदम पर न चल पड़ें अन्य भाजपाई मुख्यमंत्री, जैसे लव जिहाद के कानून उन्होंने बनाए थे योगी कि नकल करके।