शर्मसार हो जाते हैं आम लोग, जब बर्बरता और हैवानियत की सीमाएं लांघ कर दरिंदे किसी बच्ची का बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर लाश को जला देते हैं, ताकि उनकी दरिंदगी के सारे सबूत जल जाएं। मगर पिछले सप्ताह हमारे राजनेताओं ने याद दिलाया एक बार फिर कि आम लोगों की नुमाइंदगी करते हुए भी वे किसी और जाति के हैं। दिल्ली के एक श्मशान में नौ साल की बच्ची गई ठंडा पानी लाने। कुछ देर बाद उसकी मां के पास वहां के मंदिर का पुजारी आया और उसे श्मशान में ले गया। उसकी बेटी की लाश को दिखा कर कहा कि उसको जल्दी से जलाना अच्छा होगा, क्योंकि पुलिस अगर आएगी, तो लाश को ले जाएंगी और वे उसके अंग बेच डालेंगे। मां अशिक्षित और गरीब है, लेकिन उसने अपनी बेटी का अंतिम संस्कार करने की इजाजत नहीं दी। इसके बावजूद उसको उस पंडित और उसके तीन साथियों ने जला दिया।

सो, अगर कभी न्याय के लिए किसी अदालत के दरवाजे खटकाए जाएंगे तो साबित करना नामुमकिन होगा कि उस बच्ची के साथ बलात्कार हुआ था या नहीं। बच्ची दलित थी, तो उसके लिए न्याय मांगने कई दलित संस्थाएं पहुंचीं और जब सड़कों पर खूब शोर हुआ तो दिल्ली पुलिस हरकत में आई और चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इस हादसे की खबर जब राजधानी के आला राजनीतिक गलियारों तक पहुंची तो राहुल गांधी गए बच्ची के गरीब माता-पिता का दुख बांटने। दिल्ली के मुख्यमंत्री भी पहुंचे और राहत के तौर पर परिवार को दस लाख रुपए देने का वादा कर आए।

ऐसा करके इन दोनों राजनेताओं ने कम से कम संवेदना तो दिखाई, जिसका गंभीर अभाव दिखा नरेंद्र मोदी के मंत्रियों में।। प्रधानमंत्री ने पिछले सप्ताह कई बार ट्वीट करके भारत की महिला हॉकी टीम का हौसला बढ़ाया। एक ट्वीट में यह भी कहा कि उनसे प्रेरणा लेकर भारत की और भी बेटियां ऊंचाइयों तक पहुंचने की हिम्मत दिखाएंगी, लेकिन एक भी ट्वीट में प्रधानमंत्री ने उस दलित परिवार से अफसोस नहीं जताया, जिसकी छोटी-सी बेटी इतनी बुरी हालत में मारी गई है। उल्टा उनके प्रवक्ता जिस संवेदनहीनता से पेश आए, उससे दिखा कि उनको तकलीफ सिर्फ इस बात की थी कि राहुल गांधी अफसोस जताने क्यों गए।

चिल्ला-चिल्ला कर कहा कि राहुल गांधी राजस्थान क्यों नहीं जाते, जब इस तरह की घटनाएं होती हैं। संबित पात्रा, जो भारतीय जनता पार्टी का चेहरा बन गए हैं टीवी पर, गिनाने लगे राजस्थान में बलात्कार की घटनाएं, इतने संवेदनहीन शब्दों में कि मैं उन शब्दों को यहां दोहराना नहीं चाहती हूं। बाकी भाजपा प्रवक्ताओं ने थोड़ी-बहुत संवेदना जताई, लेकिन उनका भी संदेश यही था कि बलात्कार पर राजनीति हो रही है। एक ही आवाज सुनी मैंने, जिसमें असली दर्द था और वह आवाज थी निर्भया की मां की। उन्होंने टीवी पर कहा कि सारे राजनेताओं की बातें सुन कर उसको समझ में आया सिर्फ यह कि सब अपना पल्ला झाड़ना चाहते थे यह कह कर कि हमारे क्षेत्र में नहीं हुआ या आपके क्षेत्र में इस तरह की घटनाएं ज्यादा होती हैं। पूछा, ‘क्या आप लोगों ने कभी सोचा है कि इस बच्ची के मां-बाप पर क्या गुजर रही होगी।’

असली सवाल यही है और इसलिए कि बलात्कार पर हमेशा रजनीति करते आए हैं हमारे राजनेता। इस तरह की घटनाएं होती रही हैं इस तथाकथित ‘नए भारत’ में और होती रहेंगी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हर साल तैंतीस हजार से ज्यादा बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं, जिनमें पंद्रह फीसद से ज्यादा बच्चियों के होते हैं। ये सिर्फ वे मामले हैं, जो दर्ज होते हैं। बच्चियों के शोषण के अनगिनत मामले हैं, जो चारदीवारी के अंदर होते हैं उनके परिजनों द्वारा और जिनको दर्ज नहीं कराते हैं उनके परिवार शर्म के मारे।

जब तक हमारे राजनेता स्वीकार नहीं करते कि हर घटना के बाद भारत मां का सिर झुक जाता है थोड़ा और, जब तक कानून सख्त नहीं किए जाते, ऐसा होता रहेगा। निर्भया के समय स्मृति ईरानी जैसी भारतीय जनता पार्टी की महिलाओं ने इतना हल्ला मचाया कि सड़कों पर उतर आर्इं अपना रोष जताने। इस बार इस हादसे के बाद भारतीय जनता पार्टी की महिला सांसदों का एक समूह दिल्ली हाट पहुंचा कपड़े खरीदने। क्या थोड़ा-सा समय नहीं निकाल सकती थीं ये औरतें, बच्ची के माता-पिता के साथ अफसोस करने के लिए? स्मृति ईरानी, जो इन दिनों महिला और बाल विकास मंत्री हैं, इतना तो कर सकती थीं कि ट्वीट करके अपना अफसोस जतातीं।

दिल्ली पुलिस आती है गृहमंत्री के मातहत, लेकिन उनसे भी हमने अभी तक अफसोस का एक शब्द नहीं सुना है। सच तो यह है कि इस तरह की घटनाओं का राजनीतिकरण हमेशा होता रहा है और होता रहेगा, जब तक हमारे सारे राजनेता स्वीकार नहीं करते कि उनकी जिम्मेवारी है इस तरह की बर्बर घटनाओं को खत्म करना। ऐसा कहना कि फलां राज्य में फलां दल की सरकार के तहत ज्यादा बच्चियों और महिलाओं का बलात्कार होता है, साबित करता है कि बिलकुल संवेदनहीन हैं हमारे शासक। अफसोस भी जताते हैं तो वह झूठा होता है। नतीजा यह कि भारत की बेटियां इस तरह दरिंदों के हाथों मरती रहेंगी, बवाजूद इसके कि नरेंद्र मोदी ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा दिया है देश को।

अच्छा नारा है, लेकिन बेतमतलब, जब तक देश की हर बेटी अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकेगी। हिंदुत्ववादी है वर्तमान भारत सरकार, सो अच्छा होगा अगर याद रखे चाणक्य की वह बात, जो सदियों पहले उन्होंने कही थी। अच्छे कानून-व्यवस्था की पहचान तब होती है जब एक वेश्या भी निडर और सुरक्षित तरीके से आधी रात को निकल सके देश की सड़कों पर।