संसद के अंदर और बाहर पूरे हफ्ते हंगामा, तमाशा, हल्ला-गुल्ला चलता रहा। सरकार की मांग है कि राहुल गांधी संसद से माफी मांगें, इसलिए कि सांसद होने के बावजूद उन्होंने लोकतंत्र के इस मंदिर के बारे में उल्टी-सीधी बातें कहीं अपने विदेशी दौरे में। प्रधानमंत्री ने खुद कर्नाटक में बिना नाम लिए कांग्रेस पार्टी के वारिस की आलोचना की और फिर वरिष्ठ मंत्रियों की टोली तैयार की, जिनसे कहलवाया कि राहुल गांधी ने न सिर्फ सदन को बदनाम किया, देश को भी बदनाम किया है, यह कह कर कि भारत में लोकतंत्र कमजोर होता जा रहा है।

राहुल संसद के अंदर और बाहर राहुल की तरफदारी में जुट

उधर टीम राहुल संसद के अंदर और बाहर राहुल की तरफदारी में जुट गई। सोशल मीडिया और टीवी पर उनके समर्थन में निकले सलाहकार सैम पित्रोदा और कांग्रेस प्रवक्ताओं की एक पूरी फौज। इतना बड़ा मुद्दा बना रहा पूरे हफ्ते राहुल का विदेशी जमीन पर किया गया भारत का तथाकथित अपमान कि टीवी चर्चाओं में छाया रहा।

जनप्रतिनिधि क्यों भूल जाते हैं कि हमने उनको संसद में चुन कर भेजा है

संसद के बाहर खूब तमाशा दिखा, जब विपक्षी सांसदों ने इकट्ठा होकर प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर तक जाने की कोशिश की, इस संस्था के अफसरों को याद दिलाने कि अभी तक गौतम अडाणी की जांच शुरू नहीं हुई है। उनकी इस कोशिश को रोकने के लिए इतने सिपाही भेजे गए विजय चौक पर कि ऐसा लगा कि संसद पर कोई बहुत बड़ा आतंकवादी हमला होने वाला है। और हम जैसे लोग गालिब को याद करके दूर से ‘तमाशा-ए-अह्ल-ए-जहां’ देखते रहे। मेरे दिल में उदासी बढ़ती रही, यह सोच कर कि हमारे जनप्रतिनिधि क्यों भूल जाते हैं कि हमने उनको संसद में चुन कर भेजा है इस उम्मीद से कि जनता की समस्याओं की बातें करेंगे।

निजी तौर पर मुझे अजीब शर्मिंदगी होने लगी कि हम पत्रकार भी इन तमाशों को जनता की जरूरतों से ज्यादा अहमियत क्यों देते हैं हर बार। ऐसे ही खयाल थे मन में जिस दिन पिछले हफ्ते मैंने फैसला किया आम आदमी पार्टी के स्कूलों और मोहल्ला क्लीनिकों का दौरा करने का। सच यह है कि मैं अरविंद केजरीवाल की न कभी प्रशंसक रही हूं और न ही आज हूं।

मगर मुझे ठीक नहीं लगता है कि दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आप सरकार के स्वास्थ्य मंत्री, सत्येंद्र जैन को जेल में बंद कर दिया गया है। यह भी ठीक नहीं लगता मुझे कि उनके कैद होने के बाद रोज टीवी चर्चाओं में आते हैं भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता उनको दोषी ठहराने के लिए। जब मुकदमा चलेगा, शायद निर्दोष पाए जाएंगे, लेकिन मीडिया की अदालत में उनको दोषी अभी से पाया गया है। इसलिए सोचा कि जाकर उनका काम देख कर आऊं।

पहले पहुंची दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में। प्रिंसिपल साहब ने मुझे कहा कि इजाजत के बिना वे मेरे साथ बात नहीं कर सकती हैं, लेकिन स्कूल दिखाने के लिए मेरे साथ किसी को भेज सकती हैं। मेरे सिर्फ एक सवाल का जवाब दिया उन्होंने ‘पैंतीस अध्यापक हैं छह सौ बच्चों के लिए’। इस जवाब के बाद उन्होंने अपने एक मुलाजिम के साथ मुझे स्कूल का दौरा करने भेजा। साफ-सुथरी कक्षाओं में दिखे साफ-सुथरी वर्दियों में साफ-सुथरे बच्चे और वे सारी सुविधाएं दिखीं, जो निजी स्कूलों में होती हैं।

विज्ञान पढ़ाने के लिए अलग कक्ष और लाइब्रेरी अलग से। छोटे बच्चों की कक्षाओं में रंगीन दीवारें और खिलौने दिखे और खेल मैदान भी दिखे। ये सारी सुविधाएं मुफ्त में दी जाती हैं उनकी शिक्षा के साथ।

इसके बाद मैं गई एक मोहल्ला क्लिनिक में, जो इतना साफ और अच्छा था कि अगर किसी महंगे निजी अस्पताल में होता, तो आश्चर्य न होता। इस क्लिनिक में जो डाक्टर मिले, उन्होंने बताया कि सऊदी अरब में अच्छी नौकरी छोड़ कर दिल्ली आए हैं आम लोगों की सेवा करने। ‘एक साल से यहां हूं और मुझे बहुत खुशी होती है यह जान कर कि मैं गरीबों की सेवा कर सकता हूं। जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं होता है न जी।’

मरीजों का आना-जाना था क्लिनिक में, जिनमें सफाई कर्मचारी थे, रिक्शावाले थे और छोटे दुकानदार। अगले मोहल्ला क्लिनिक में मुझे मिला एक ऐसा डाक्टर, जिसने इस क्लिनिक को संभालने के बाद ऐसा महसूस किया जैसे उनकी नई जिंदगी शुरू हुई है। ‘मुझे कोविड तब हुआ जब डेल्टा का कहर था दिल्ली में और बड़ी मुश्किल से जान बची। उसके बाद मैंने सोचा कि चूंकि मुझे दूसरा जीवन मिला है, मेरा फर्ज बनता है लोगों की सेवा करना। सो, मैंने अपना निजी क्लिनिक अपने बच्चों के हवाले कर दिया और अब यहां काम करता हूं। बहुत शांति मिलती है इस काम में।’

सच तो यह है कि मुझे भी बहुत अच्छा लगा यह देख कर कि पहली बार दिल्ली को ऐसी सरकार मिली है, जो वास्तव में लोगों के लिए वे सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश कर रही है, जो सबसे जरूरी हैं। इस दौरे के बाद मुझे समझ में आया कि अरविंद केजरीवाल क्यों दिल्ली के लाडले हैं। मैं आज भी उनकी कोई प्रशंसक नहीं हूं और शायद उनको वोट भी नहीं दूंगी, लेकिन इसके बावजूद ऐसा कहने पर मजबूर हूं कि केजरीवाल ने वास्तव में कुछ नया करके दिखाया है।

निजी तौर पर बहुत पहले से मेरी मान्यता रही है कि भारत असली तौर पर विकसित देश तब बनेगा जब इस देश के हर बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ने का मौका मिलेगा और जब देश के आम आदमी के लिए ऐसे अस्पताल बनाए जाएंगे, जो वर्तमान भारत में सिर्फ धनवानों को नसीब होते हैं। मैं शर्मिंदा हूं कि हम पत्रकारों को राजनेताओं के झगड़े इन चीजों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण दिखते हैं। शर्मिंदा हूं कि देश के असली मुद्दे नहीं उठाए जाते हैं संसद के अंदर।