संयोग से जिस दिन पिछले सप्ताह भारतीय जनता पार्टी के महारथी प्रवक्ता टीवी चर्चाओं में अरविंद केजरीवाल की शिक्षा नीति को घोटाला कह रहे थे, उस दिन मेरी बात हुई एक दिल्लीवासी से। मैंने उससे जब पूछा कि उसके बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं या प्राइवेट में, तो उसने कहा, ‘प्राइवेट में पढ़ा रहा था अपने बेटे को, लेकिन कोविड के दौर में कमाई बहुत कम हो गई थी, तो अब सरकारी स्कूल में पढ़ रहा है, लेकिन इतना अच्छा है यह स्कूल कि प्राइवेट से कम नहीं।’
मैंने जब पूछा कि सरकारी स्कूलों में सुधार क्या आम आदमी पार्टी की शिक्षा नीति के कारण हुए हैं, तो उसने हां में जवाब दिया। फिर पूछा मैंने कि क्या वह केजरीवाल का भक्त है, तो उसने कहा कि भक्त वह मोदी का है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की जब दिल्ली में सरकार थी, तो उन्होंने कोई काम नहीं किया दिल्ली के लिए। स्कूलों को सुधारने के अलावा क्या किया है आम आदमी पार्टी ने, मैंने पूछा और याद दिलाया उसे कि इस शहर की सड़कें अब भी गंदी हैं और अब भी दिखते हैं कूड़े के बड़े-बड़े ढेर सड़कों के हर दूसरे कोने पर।
उसने इस पर सहमति जताई, लेकिन मुझसे पूछा कि मैंने कभी मोहल्ला क्लिनिक में इलाज करवाया है क्या? मैंने ना में जवाब दिया तो उसने कहा, ‘जी आपको शायद जाने की जरूरत भी नहीं मोहल्ला क्लीनिकों में, लेकिन हम जैसे मिडिल क्लास लोगों की जिंदगी बदल गई है इनके बनने के बाद।
जो मेडिकल जांच का हम सपना नहीं देख सकते थे, वह सब हमको मिलता है मोहल्ला क्लिनिक द्वारा। साफ-सुथरे हैं ये अंदर और बाहर से और वहां जो डाक्टर होते हैं उनके कहने पर हम सीटी स्कैन जैसी जांच करवा लेते हैं मुफ्त में।’
यहां स्पष्ट कर दूं कि मैं खुद आम आदमी पार्टी की न तब मुरीद थी जब पहली सरकार बनी केजरीवाल की दिल्ली में और न अब हूं। बल्कि एक दिल्लीवासी होने के नाते मुझे बहुत बुरा लगा था जब केजरीवाल मुख्यमंत्री पहली बार बनने के बाद प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने लगे थे और दिल्ली छोड़ कर वाराणसी पहुंच गए थे नरेंद्र मोदी को हराने।
मेरी नजर में न दिल्ली में प्रदूषण कम हुआ है आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद और न ही यमुना नदी के पानी में गंदगी कम हुई है। मेरे लिए ये दोनों मुद्दे बहुत अहमियत रखते हैं, लेकिन केजरीवाल के दुश्मन भी इनकार नहीं करते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में जो सुधार हुआ है, उनको सराहा जाना चाहिए।
क्या यही वजह है कि इन दिनों भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े प्रवक्ता रोज दिखते हैं टीवी पर केजरीवाल कि इन नीतियों में ‘घोटालों’ की बातें करते हुए? या शायद नरेंद्र मोदी की समस्या यह है कि पंजाब जीतने के बाद अब केजरीवाल का ध्यान टिक गया है गुजरात जीतने में? बहुत बार दौरे कर चुके हैं इस राज्य के और वहां पहुंच कर कई आम सभाओं को संबोधित किया है दिल्ली के मुख्यमंत्री ने, जिनमें वह दोहराते हैं इस एक बात को, ‘हम दंगे नहीं करवा सकते, लेकिन हम स्कूल बना सकते हैं।’
इस बात से खास तकलीफ होने लगी है शायद आदरणीय प्रधानमंत्रीजी को इसलिए कि उनके ‘गुजरात माडल’ में कई सारे सुधार बेशक उन्होंने लाए हों, लेकिन न स्कूलों में सुधार ला पाए न स्वास्थ्य सेवाओं में। इन कमियों पर जब कोई बार-बार ध्यान आकर्षित करता है गुजरात के मतदाताओं का, तो मोदी को परेशानी तो होती होगी।
भारतीय जनता पार्टी की समस्या यह भी है कि जिस तेजी से सुधार लाए गए हैं दिल्ली में इन सेवाओं में उस किस्म का सुधार किसी भी भाजपा शासित प्रदेश में देखने को नहीं मिलता है। भाजपा मुख्यमंत्रियों की प्राथमिकताएं और हैं। उनका ध्यान ज्यादा वक्त लगा रहता है हिंदू-मुसलिम मुद्दों को उठाने में ताकि देश की इन दोनों सबसे बड़ी कौमों में दरारें बनती रहें, नफरत बढ़ती रहे।
न समाज का इससे कोई लाभ होने वाला है और न देश का, लेकिन चुनावों में अगर हिंदुओं का वोट बैंक बन जाता है तो लाभ बहुत होता है भारतीय जनता पार्टी को। जिस राजनीतिक दल को आजकल चुनाव जीतने की मशीन माना जाता है उसका ध्यान हमेशा क्यों न टिका रहे चुनावों पर।
वही लोग जो वोट बैंक की राजनीति का आरोप लगाया करते थे कांग्रेस पार्टी पर आज कांग्रेस की नकल करके वोट बैंक तैयार कर रहे हैं अपने लिए। फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस ने मुसलमानों के दिल में डर पैदा करके उनको दशकों से समझाया है कि कांग्रेस को अगर अपना वोट नहीं देते हैं तो सेक्युलरिज्म नाम की कोई चीज नहीं रहेगी और भारत एक हिंदू राष्ट्र बन जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ताओं को टीवी चर्चाओं में सुनने का कष्ट करेंगे आप तो जान लेंगे बहुत जल्दी कि इन लोगों को हिंदुओं को डराने का काम सौंपा गया है। सो, जब भी उतरते हैं चर्चाओं की इस युद्धभूमि में ये लोग याद दिलाना नहीं भूलते हैं दर्शकों को कि दुश्मन इस देश का इस्लाम है और मुसलमानों की देशभक्ति पर हमेशा शक करना चाहिए, इसलिए कि उनके लिए उनका मजहब भारतमाता से कहीं ज्यादा अहमियत रखता है।
इस तरह की बातें नफरत फैलाती हैं। कांग्रेस पार्टी आत्महत्या करने में न व्यस्त होती तो इस दुष्प्रचार का खंडन करती। कांग्रेस का इतना बुरा हाल है इन दिनों कि विचारों की लड़ाई लड़ने के काबिल नहीं है। उसकी जगह ले ली है ‘आप’ ने। इसलिए ‘घोटालों’ को ढूंढ़ने में दम लगा के लग गई है भारतीय जनता पार्टी, ताकि उसको मामूली चुनौती भी केजरीवाल न दे सकें।