दिवाली के दिन भगवान राम की नगरी को बारह लाख दीयों से सजा देख कर अच्छा भी लगा और बुरा भी। ऐसा लगा जैसे दीयों की रोशनियों के पीछे एक उदासी छिपी हुई थी। यादें ताजा हुईं उन चिताओं की, जो उत्तर प्रदेश के शमशानों में दिन-रात जल रही थीं कुछ महीने पहले। याद आया कि जिस घर में किसी की मौत होती है, उस साल दिवाली नहीं मनाई जाती है।
याद यह भी आया कि अभी तक इस प्रदेश के मुख्यमंत्री ने स्वीकार तक नहीं किया है कि उनकी सरकार की लापरवाही के कारण इस राज्य के अस्पतालों में लोग आक्सीजन की कमी से तड़प-तड़प कर मरे थे। याद आया कि कितने लोगों ने अस्पताल के दरवाजों पर दम तोड़ा था सिर्फ इसलिए कि बिस्तरों का सख्त अभाव था। फिर याद आईं वे अध-दफनाई हुई रेतीली कब्रों में लाशें गंगाजी के किनारे और याद यह भी आया कि योगी आदित्यनाथ ने इस सच्चाई को छिपाने के लिए कहा था कि कुछ हिंदू लोगों की परंपरा है ऐसा करना।
एक बार अगर योगीजी ने स्वीकार किया होता कि कोविड की दूसरी लहर में उनके प्रदेश में बहुत लोग सिर्फ सरकारी लापरवाही के कारण मरे थे, तो शायद अयोध्या में सरयू किनारे लाखों दीये देख कर मुझे खुशी होती। शायद यह भी भूलने की कोशिश हो सकती थी कि ये लाखों दीये जब बुझने लगे देर रात को, योगीजी के दिवाली जश्न के बाद, तो नजारा बिल्कुल बदल गया।
नंगे पांव बच्चे और महिलाएं दिखीं, फटे कपड़ों में उन बुझे हुए दीयों का तेल बोतलों में इकट्ठा करती हुईं, ताकि उनके घरों में चूल्हे जल सकें। मेरी समस्या यह है कि बहुत सालों से राजनीति और शासन पर लिखने के बाद मैंने सीखा है कि जब राजनेता सत्य से अपना मुंह फेर लेते हैं तो न उनका लाभ होता है और न देश का।
अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि सत्य को छिपाने का काम न सिर्फ योगी ने किए हैं करोड़ों रुपए अपने प्रचार में लगा कर, ऐसा प्रधानमंत्री ने भी किया है। कोविड की दूसरी लहर जब कम होने लगी तो प्रधानमंत्री वाराणसी गए किसी उद्घाटन के लिए और अपने भाषण में उन्होंने कहा कि कोविड को रोकने के लिए जितना अच्छा काम योगी सरकार ने किया है, किसी दूसरी राज्य सरकार ने नहीं किया है। यह सच नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव अब कुछ ही महीने दूर हैं, सो अगर सच कड़वा है तो उसको झूठ में बदलना शायद जरूरी हो जाता है, इस उम्मीद से कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है।
योगी की चुनावी रणनीति शुरू से हिंदुओं और मुसलमानों में नफरत फैला कर उनके वोट हासिल करने की रही है। सो, दिवाली के अपने आलीशान जश्न में उन्होंने अपने भाषण में इशारा किया कि अबकी बार भी ऐसा होने वाला है। मिट्टी के दीयों की विशाल चादर के बीच जब उन्होंने अयोध्या में छोटी दिवाली पर अपना भाषण दिया, तो उसमें यह कहना नहीं भूले कि उनसे पहले जो सरकारें होती थीं, वे जनता का पैसा खर्चती थीं कब्रिस्तानों पर और एक वही हैं जो जनता का पैसा खर्चते हैं मंदिरों पर, सभ्यता पर।
इशारा उनका वैसा ही था जैसा उन्होंने दिया था उस भाषण में, जब उन्होंने कहा था कि उनसे पहले राशन हड़प लेते थे अब्बाजान कहने वाले लोग। क्या पांच साल शासन चलाने के बाद भी योगी आदित्यनाथ को दिखा नहीं है कि उत्तर प्रदेश के सबसे गरीब लोग या तो मुसलमान हैं या दलित? देखा तो होगा, लेकिन इस यथार्थ को अनदेखा करना जरूरी हो गया है, वरना हिंदू-मुसलिम नफरत कैसे मुख्य मुद्दा बन सकता है आने वाले चुनावों में?
शायद मतदाता देख सकेंगे कि योगी के प्रचार और उत्तर प्रदेश के यथार्थ में फासला कितना बड़ा है, लेकिन इस पर भरोसा कैसे किया जा सकता है? योगी का प्रचार युद्धस्तर पर शुरू हुआ कोविड के दूसरे दौर के बाद। पहले इश्तिहार आए अखबारों में पूरे पन्ने के, जिनमें योगी जी के मुस्कुराते चेहरे के नीचे लिखी थीं उनकी तारीफें। फिर टीवी पर दिखने लगे विडियो, जिनमें चमकते, उजले, विकसित उत्तर प्रदेश की तस्वीरें इस तरह पेश की गई थीं, जैसे किसी पत्रकार ने उत्तर प्रदेश से कोई रिपोर्ट भेजी हो। इन दिनों दिल्ली के हर दूसरे बस अड्डे पर दिखते हैं योगी के इश्तिहार और बड़े-बड़े बोर्ड, जिनमें “नए” उत्तर प्रदेश का प्रचार है।
इस प्रचार पर जो हजारों करोड़ रुपए खर्चे गए हैं, वह जनता का पैसा है। इस बात को याद रखना जरूरी है। सवाल यह है कि इस खर्चे से योगी क्या लोगों की बुरी यादें मिटाने में सफल होंगे या नहीं? क्या भूल जाएंगे लोग कि हाथरस की उस दलित बच्ची की लाश को किस तरह पुलिसवालों ने रात के अंधेरे में जला डाला था, ताकि बलात्कार के सारे सबूत मिट जाएं? क्या भूल सकेंगे उत्तर प्रदेश के मतदाता कि किस तरह योगी ने अपने आलोचकों को जेलों में बंद किया है उन कानूनों के तहत, जो बनाए गए थे आतंकवाद और राजद्रोह को रोकने के लिए?
क्या भूल जाएंगे उत्तर प्रदेश के मतदाता कि विकास के नाम पर बातें ज्यादा और काम कम हुआ है योगी के दौर में? जाहिर है कि इसी उम्मीद से योगी सरकार ने अपने प्रचार में पैसा पानी की तरह बहाया है। जाहिर है कि इस उम्मीद से बारह लाख दीये जलाए गए थे अयोध्या में दिवाली के दिन। कुछ ही महीनों में मालूम हो जाएगा कि व्यापक प्रचार और अयोध्या में लाखों दीये किस हद तक छिपा सकते हैं यथार्थ को। यथार्थ यह है कि अभी रामराज्य न आया है नए उत्तर प्रदेश में न उसकी झलक क्षितिज पर दिखती है।