राजनीति अजीब खेल है। जिस सोनिया गांधी के बारे में कभी कहा जाता था कि वे न होतीं तो कांग्रेस पार्टी शायद बीस साल पहले खत्म हो गई होती, आज उन्हीं सोनिया गांधी के बारे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस के वर्तमान कमजोर हाल की जड़ वही हैं। राजनीतिक पंडित कहते हैं अब कि उनको अपने बच्चों की चिंता ज्यादा है और उस राजनीतिक दल की कम, जिसकी अध्यक्षा वे रही हैं 1998 से। इतना लंबा कार्यकाल कांग्रेस के किसी दूसरे अध्यक्ष का नहीं रहा है।

सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी दो आम चुनाव जीती है। इसको ध्यान में रखते हुए समझना मुश्किल है कि 2014 के चुनाव हारने के बाद कांग्रेस का इतना बुरा हाल क्यों हुआ है। ऐसा क्यों हुआ है कि जिस राजनीतिक दल ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में इतनी अहम भूमिका निभाई थी, वह आज इतनी सीट भी संसद में नहीं ला पाती है कि उसको मुख्य विपक्षी दल घोषित किया जाए।

वैसे तो पिछले सात वर्षों से कांग्रेस की कमजोरियां बढ़ती रही हैं, लेकिन जितना बुरा हाल इस दल का हुआ है नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद, वह वास्तव में हैरान कर देता है। हालत इतनी खराब हुई है कांग्रेस की पिछले दो वर्षों में कि जिन ‘नौजवान’ राजनेताओं को कांग्रेस अपने ताज के सबसे उज्ज्वल जवाहरात मानती थी कभी, वे एक के बाद एक भारतीय जनता पार्टी में भर्ती हो गए हैं।

पिछले सप्ताह कांग्रेस से बिदाई ली आरपीएन (रतनजीत प्रताप नारायण) सिंह ने यह कहते हुए कि वर्तमान स्थिति राजनीति की यह है कि केवल नरेंद्र मोदी देश के लिए कुछ करते दिखते हैं। कांग्रेस से विदा होते हुए उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस अब वह दल नहीं है, जो कभी हुआ करती थी।

इन शब्दों में छिपा है एक बहुत बड़ा सच और वह है कि जिस राजनीतिक दल की बागडोर सोनिया गांधी ने अपने हाथों में ली थी 1998 में वह अब इतनी खोखली हो गई है कि गांधी परिवार के सबसे वफादार लोग भी मानते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष के पुत्रमोह ने कांग्रेस की जान निचोड़ ली है। इस आधार पर कही जाती है यह बात कि सोनियाजी ने कभी ऐसे राजनेताओं को सिर उठा कर चलने नहीं दिया, जो राहुल गांधी के नेतृत्व को खतरा बन सकते थे।

राहुल गांधी ने खुद बहुत बार कहा है कि कांग्रेस का नेतृत्व नई पीढ़ी के हाथों में आना चाहिए, लेकिन जिस नई पीढ़ी की वे बात कर रहे थे, वे सब चले गए हैं अब। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया छोड़ गए और अब मोदी सरकार में मंत्री हैं। असम में हिमंता बिस्व सरमा अब भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री हैं। उत्तर प्रदेश में नई पीढ़ी के दो बड़े राजनेता चले गए हैं- जितिन प्रसाद और अब अरपीएन सिंह। राजस्थान में सचिन पायलट नाखुश हैं महीनों से।

वैसे तो दशकों से कांग्रेस कमजोर होती रही है धीरे-धीरे, लेकिन जिस तेजी से कमजोर हुई है सोनियाजी के दौर में, वास्तव में आश्चर्यजनक है। कारण कई हैं, लेकिन शायद सबसे बड़ा कारण यही है कि सोनियाजी के दौर में दरबारियों को कार्यकर्ताओं से ज्यादा अहमियत दी गई है। इसकी वजह से कांग्रेस देश की सबसे मजबूत राजनीतिक संस्था न रह कर दरबारियों और परिवारवाद के लिए जानी जाती है आज।

उत्तर प्रदेश में इन दिनों प्रियंका गांधी लड़ रही हैं जी-जान से, लेकिन हाल में उन्होंने एक टीवी पत्रकार से बात करते हुए स्वीकार किया कि उनको कांग्रेस की संस्था को जमीन से लेकर ऊपर तक फिर से निर्मित करना होगा। एक वह जमाना था, जब इस देश के तकरीबन हर गांव में मिलते थे कांग्रेस के कार्यकर्ता या सफेद टोपी पहने सेवा दल के लोग। आज कहीं नहीं दिखते हैं ऐसे लोग, जिनके कंधों पर कायम थी इस राजनीतिक दल की असली शक्ति।

एक और कमजोरी है कांग्रेस में, जो पिछले सात वर्षों में साफ दिखने लगी है। यह कमजोरी है विचारधारा की, कांग्रेस के अस्तित्व की। जिस कांग्रेस के आला नेता अपनी ‘सेक्युलरिज्म’ के बारे में बोलते थकते नहीं थे, अब चुप रहते हैं जब राहुल गांधी गुरुद्वारों और मंदिरों में जाकर माथा टेकते हैं, बिलकुल वैसे जैसे भाजपा के राजनेता करते हैं।

पिछले सात सालों में जितनी खोखली दिखने लगी है कांग्रेस, पहले कभी नहीं दिखी है। गांधी परिवार के सदस्यों से हमने राजनीतिक विचारों के बारे में कम सुना है और नरेंद्र मोदी की आलोचना जरूरत से ज्यादा। मोदी को गाली देकर चुनाव नहीं जीता जा सकता है, यह राहुल गांधी को 2019 में मालूम हो जाना चाहिए था, लेकिन लगता है कि उस हार से कुछ नहीं सीखा है उन्होंने। इतना भी नहीं कि उनका हर दूसरे महीने विदेश जाने से उनकी छवि एक ऐसे राजनेता की बन गई है, जिसको गंभीरता से नहीं लिया जा सकता है।

समस्या यह है कि जब वे विदेशों में घूमने निकलते हैं, तो उनकी जगह सिर्फ उनकी माताजी और बहन ले सकती हैं, क्योंकि किसी भी कद्दावर राजनेता को उठने नहीं दिया उनकी माताजी ने। सो, जब कांग्रेस के बारे में कहते हैं लोग कि राजनीतिक दल न रह कर अब एक परिवार की निजी कंपनी बन गई है, तो ठीक कहते हैं।

समस्या यह भी है अब कि उनके सामने एक ऐसा राजनेता है, जिसका कद पिछले सात सालों में इतना ऊंचा हो गया है कि इंडिया टुडे के हाल में किए गए सर्वेक्षण ने पाया कि देश के अधिकतर लोग मोदी को ही देखते हैं प्रधानमंत्री के रूप में। नंबर दो पर राहुल गांधी हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता मोदी से इतनी कम है कि दूसरी जगह पर होना बेमतलब है।