आजाद ठहरे आजाद। गुरुवार को चैनलों ने उनको हाथों-हाथ लिया। वे आजादहिंद भाव से बोले कि मैंने तो उनकी वजह से छोड़ा… कि वे किसी को नहीं जिता सकते… फिर एक दिन ‘सुपारी’ ने एक बड़ी खबर बनाई कि… ‘मेरी हत्या की सुपारी दी है।’ तो एक विपक्षी कहिन कि नाम बताओ, किसने दी… हाय! कथित ‘मुहब्बत की दुकान’ में ऐसी बेमुरौव्वती! इसके बाद एक दिन भैया जी की सदलबल सूरत कूच, फिर सूरत की अदालत में जमानत की अपील और जमानत का सीधा प्रसारण। फिर कुछ चैनलों ने लाइन लगाई कि ‘बड़ी राहत’, तो कई चर्चक बोले कि राहत कहां, मुकदमा तो जारी है सर जी!

यह ‘इनका इलाका’ और ‘उनका इलाका’ क्या होता है?

फिर बंगाल में ‘रामनवमी’ की ‘शोभायात्रा’ पर आए कुछ सेक्युलर विचार कि इस महीने कोई ऐसा वैसा नहीं करता… कि, उस इलाके में न जाएं… कि इनको चाहिए कि उनकी रक्षा करें…कई एंकर औेर चर्चक बोले कि यह ‘इनका इलाका’ और ‘उनका इलाका’ क्या होता है? यह तुष्टीकरण है, वरना सभी इलाके सबके हैं। फिर भी बहसों में जारी रहा कि, ये इनका इलाका वो उनका इलाका…

फिर हावड़ा… हुगली में रामनवमी के जुलूस का सीधा प्रसारण, कि अगले ही पल पत्थर बरसते दिखते हैं और कुछ दूरी पर आगजनी दिखती है, फिर एक ओर भगवा अंगवस्त्र और झंडे दिखते हैं, तो दूसरी ओर टोपियां…

जब उनका राज था, तब होता था, अब इनका राज है तो भी होता है…

वीडियो में सब कुछ स्पष्ट दिखाते, फिर भी आरोप-प्रत्यारोप बरसते कि यह सब ‘वो’ करवा रहे हैं कि यह सब ‘ये’ करवा रहे हैं, वरना हम सब ठहरे शांतिप्रिय, कि बाहर से गुंडे लाए… जवाब आया कि सिर्फ एक बहिरागत पकड़ा, बाकी तो यहीं के…एक बहस में एक ज्ञानी ज्ञानवर्धन करते हैं कि इस बार बंगाल में दस हजार यात्राएं निकली हैं, तो दूसरी बहस में दूसरे ज्ञानवर्धन करते हैं कि रामनवमी पर तो तीन सौ बरस से हमला होता आया है। जब उनका राज था, तब होता था, अब इनका राज है तो भी होता है…

एक बोले कि वे हथियार लेकर क्यों निकले और रूट से क्यों नहीं निकले, तो कहा कि रूट से ही तो निकले… फिर चर्चक ने बताया कि यों परंपरा से लोग रामनवमी पर हथियार लेकर ही निकलते हैं। एक बोला, इनके पास टिन की तलवारें थीं… फिर एक बोला, अगर कोई निकला था तो पुलिस तुरंत पकड़ती, लेकिन वह तो मूक दर्शक बनी रही?

इसके बाद की खबरों में कर्फ्यू ही कर्फ्यू थे, लेकिन कर्फ्यू के बावजूद तीन दिन तक हिंसा होती दिखी। फिर एक दिन महामहिम राज्यपाल जी ‘दंगाग्रस्त’ इलाकों में ‘मौका मुआइना’ किए और कहा कि फिलहाल शांति जरूरी है… इस बार की ‘रामनवमी’ बिहार के सासाराम और झारखंड से लेकर संभाजी नगर तक ‘उपद्रवग्रस्त’ दिखी!

सावरकर विरोधी ने सावरकर को भी फिर से दैनिक विमर्श का हिस्सा बनवा दिए!

इसी बीच मुंबई में सावरकर के ‘अपमान’ के विरोध में एक ही दिन में दो-दो बड़ी शोभायात्राएं भी निकलती दिखीं। धन्य हैं वे सावरकर विरोधी, जिन्होंने सावरकर को भी फिर से दैनिक विमर्श का हिस्सा बनवा दिए! फिर एक दिन एनसीईआरटी द्वारा माध्यमिक पाठ्यकमों में ‘कतर ब्योंत’ की खबर ने बड़ी बहसें पैदा कीं। खबरें बतातीं कि इतिहास से गजनी, मुगल, नक्सल और गुजरात 2002 प्रसंगों को काटा-छांटा गया।

हर सत्ता अपना इतिहास लिखाती है, पहले वे लिखवाते रहे, अब ये लिखवा रहे हैं

कई चैनलों पर एनसीईआरटी के चेयरमैन ने साफ किया कि कोरोना की विशेष स्थिति में काम का बोझ कम करने के लिए विशेषज्ञ समिति ने ये बदलाव किए, लेकिन इतने से कौन माने, सो ‘झगड़ा’ शुरू। फिर एक इतिहासकार ने कहा कि हर सत्ता अपना इतिहास लिखाती है। पहले वे लिखवाते रहे, अब ये लिखवा रहे हैं, इस पर रोना क्या?

फिर एक दिन कन्नड फिल्मों के सुपर स्टार किच्चा सुदीप ने भाजपा के पक्ष में प्रचार करने की बात कह कर विपक्ष का हमला आमंत्रित कर लिया और फिर ले-दे शुरू! फिर एक दिन तेलंगाना के भाजपा अध्यक्ष को प्रश्नपत्र लीक पर छात्रों को उकसाने के आरोप में आधी रात गिरफ्तार और फिर इस पर हाय हाय!

फिर एक दिन ‘बिदरी कला’ को आगे बढ़ाने वाले राशीद अहमद कादरी जी को मिला पद्म, तो उन्होंने दिया पीएम को धन्यवाद। इस पर भी हाय हाय, कि एक चैनल पर आकर कादरी जी कहिन कि मैंने कांग्रेस के राज में भी अर्जी दी, थी लेकिन मिला मुझे अब… फिर एक दिन खबर टूटी कि पुत्र गया, फिर अगले दिन टूटी कि एक पूर्व सीएम भी भाजपा में गया!

पुत्र के इस निर्णय पर पिताश्री अंग्रेजी में दुखी, तो पुत्र जी संस्कृत-हिंदी में सुखी, कि ‘धर्मो रक्षति रक्षित:’, कि परिवार की सेवा करने की जगह राष्ट्र की सेवा बेहतर…

हाय! छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला छोड़ गए… इस बीच भाजपा के स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री का एक नया रणनीतिक संबोधन कि नफरत भरे लोग झूठ बोल रहे हैं… कुछ मेरी कब्र खोदने की तैयारी कर रहे हैं… कि लोग अभी से कह रहे हैं कि 2024 में भाजपा को कोई हरा नहीं सकता, लेकिन हमें हर आदमी का दिल जीतना है…

और फिर हनुमान जयंती पर कुछ बेहद मानीखेज संबोधन कि भारत बजरंगबली की तरह आगे बढ़ रहा है… कि, बजरंग बली का जीवन समाज के लिए है… कि, हनुमान दुष्टों का संहार करते हैं और भाजपा भ्रष्टाचारियों का… सिर्फ एक चर्चक ने स्पष्ट किया कि अब तक ‘भारतमाता’ थी, अब ‘बजरंगबली’ आ गए। ऐसा ‘बजरंगी आख्यान’ विपक्ष के पास कहां? अंत में हनुमान जयंती को लेकर एक जोशीले एंकर ने ‘हैशटेग’ मारा: ‘हिंदू प्राइड: एक यथार्थ’, कि हनुमान जंयती कितनी शांति से गुजर गई। क्या कोई हिंसा हुई?