एक राष्ट्र एक कानून’ का विचार सुनते ही भैया जी की बांछें खिल गर्इं और बहस लेकर आ बैठे कि कितना सुंदर हो जब ‘एक राष्ट्र हो, एक कानून हो’। जब अदालत ने कह दिया तो वैसा कानून बनाने में देर कैसी?
और देखते ही देखते बहस दो फाड़ हो गई। हिंदू बोले हिंदू की सी! मुसलिम बोले मुसलिम की सी! एक कहे ‘यह देश को एक करने का मौका है’, दूसरा कहे कि ‘यह निजता और आजादी पर हमला है!’ एक बोले कि ‘सत्तर बरस हो गए एक देश एक कानून नहीं’, दूसरे बोले ‘ये हिंदुत्व है’! फिर बहस यूपी के चुनाव से जुड़ गई और जम के लठ्ठमलठ्ठा हुआ! सारी बहस में तीन बार भैया जी ने हस्तक्षेप किया। एक की आवाज बंद की और फिर सबको धन्यवाद दिया!
खबर चैनल तीसरी लहर को रोज आता दिखाते हैं। एक जगह ‘कप्पा वेरिएंट’ दिख गया है! यूरोप में फुटबाल भीड़ तीसरी लहर को ला रही है, तो कोई कहता है कि बहुचर्चित ‘केरल मॉडल’ फेल हो गया है! खबर चैनल हर रोज टीकाकरण की धीमी रफ्तार पर टीका करते-कराते हैं। सब कहते हैं कि टीका ही तीसरी से एकमात्र बचाव है, लेकिन टीका हो तो बचाव हो! मुंबई में लाइनें लगी हैं, लेकिन टीका नहीं हैं! विपक्ष कहता है कि टीके की पर्याप्त आपूर्ति नहीं, तो जवाब आता है कि आप लगाएं ही नहीं, तो केंद्र क्या करे? टीका अभियान ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ की गति से चल रहा है!
‘भीड़ न बनाओ, सावधनी बरतो’- नसीहतबाज नसीहत देते रहते हैं, लेकिन भीड़ें हैं कि हर नसीहत को मुंह बिराती रहती हैं! टीवी में हर बंदा ‘सावधान’ करता रहता है, लेकिन जब बोलता है, तो मास्क हटा कर बोलता है! अरे भैये! मास्क लगा कर बोलो तो शायद लोग प्रेरित हों! लेकिन यहां तो सभी अपना-अपना मुखड़ा दिखाने को लालायित रहते हैं!
प्रधानमंत्री ने सच कहा कि लहर आती नहीं है, लाई जाती है! भीड़ ही लहर लाती है, लेकिन भीड़ें कहां नहीं हैं? जगन्नाथ यात्रा की भीड़, राजस्थान में एक जनाजे की भीड़, हैदराबाद में ईद की भीड़! चैनलों में अपनी-अपनी भीड़ को लेकर कुश्ती शुरू!
एक कहता है कि कांवड़िए भीड़ बनाते हैं, तो दूसरा कहता है कि ईद भीड़ बनाती है। फिर किसानों की भीड़ को क्यों छोड़ देते हो! एक कहता है कि ‘मेरी भीड़ नहीं, तेरी फैलाती है’ तो दूसरा कहता है : ‘अबे, मेरी नहीं तेरी फैलाती है’। फिर मेरी-तेरी होने लगती है : मेरी भीड़ सेक्युलर तेरी कम्युनल! नहीं, मेरी सेक्युलर तेरी कम्युनल! सब अपनी-अपनी भीड़ को पुचकारते रहते हैं! भीड़ यानी वोट! भीड़ को कौन नाराज करे?
कांवड़ियों को लेकर भाजपा में ही दो लाइनें हैं : यूपी कहती है कि कांवड़ ‘ओके’! उत्तराखंड कहता है : ‘नॉट अलाउड’! भक्तों में ऐसा मतवैभिन्य! सब ऊपर वाले की लीला! यूपी के भक्तों की ‘हां’, लेकिन उत्तराखंड की ‘ना’! एक बोला : यह धार्मिक भावनाओं का मामला है। आरटीपीसीआर टेस्ट पास करने वाले ही जा सकेंगे। आगे जो करे, सो अदालत करेगी और अदालत की बात सिर माथे!
यानी, हमारी भी जै जै तुम्हारी भी जै जै!
प्रधानमंत्री ने वाराणसी जाकर ‘रुद्राक्ष परिसर’ के साथ कई योजनाओं का उद्घाटन किया। दूरी बनाए बैठे लोगों को संबोधित किया और योगी की जम के तारीफ की! खबर पंडितों ने मुंडी हिलाई कि यूपी का चुनाव अभियान शुरू है और अगले सीएम योगी हैं!
यों भी योगी का जवाब नहीं। एक के बाद एक पैंतरा दिखाते हैं : एक दिन कर दिया ‘आबादी नियंत्रण’ का आह्वान यानी ‘हम दो हमारे दो’! कर लो क्या कर लोगे!
उधर असम में पशुधन कानून के साथ जुड़ा मांस कानून, कि पूजा स्थल से पांच किलोमीटर तक न कोई मांस बनाएगा न न खाएगा! विपक्ष कहता रहा कि यह हिंदुत्ववादी एजेंडा है, सत्ता पक्ष कहता रहा कि यह सबका एजेंडा है! किसी ने न पूछा कि ऐसे में कामाख्या का क्या करेंगे सर जी?
पीके आते हैं। पीके जाते हैं। वे जब भी आते हैं सनसनी फैला जाते हैं। पीके शरद पवार से मिले! पीके सोनिया, राहुल, प्रियंका से मिले! पीके अमरिंदर से मिले!
पीके को खबरों में रहने की ब्याधि लग गई है! चुनाव सलाहकार से अधिक वे ‘एक्टिविस्ट’ नजर आते हैं! पीके बंगाल जीते। पीके दिल्ली जीतेंगे! पीके का शौक पीके ही जानें। हमें तो सिर्फ इतनी चिंता है कि अपने खुर्रांट नेता लोग कहीं उनके संग ‘पुनर्मुषको भव’ वाली बात न कर दें!
वृहस्पति को बड़ी अदालत ने ‘राजद्रोह कानून’ को हटाने का सुझाव दिया। मानवाधिकारिवादियों में जान पड़ी और भाजपा प्रवक्ता रक्षात्मक नजर आए! अदालत ने माना कि सत्ता इस कानून का दुरुपयोग करती है। मामूली ‘असहमति’ को भी राजद्रोह की तरह देखती है। जनतंत्र के लिए यह ठीक नहीं। अंग्रेजों के जमाने के इस कानून को हटा क्यों न दिया जाय? सरकार का कहना रहा कि हटाने की जगह ‘इसका दुरुपयोग न हो’ ऐसी व्यवस्था की जा सकती है! इस पर भक्त एंकर चहका कि देखा! भाजपा ने उदारता दिखाई है!
सच! ऐसौ को उदार जग माहीं!