तालिबान आ रहे हैं! तालिबान आ रहे हैं! काबुल से इतने दूर हैं! लीजिए, वे आ गए हैं और काबुल में घुस गए हैं!
कट टू रॉकेट लांचर कंधे पर ताने गाड़ी पर खड़ा तालिबान! सड़कों पर हर तरफ तालिबान! तालिबान! तालिबान! तालिबान!
राष्ट्रपति गनी भागे भागे। फिर कहने लगे भागा भागा! चार गाड़ियां भर डॉलर लेकर भागा! हेलीकॉप्टर से भागा!
कहां भागा? कहां भागा?

कई चैनलों पर लाइन : यूएई भागा। एक चैनल पर पाक पत्रकार हामिद मीर बोले कि वह अफगानिस्तान के आसपास ही है!
साढ़े तीन लाख अफगानी फौज ने बिना लड़े समर्पण कर दिया! क्यों?
‘अमेरिका तो पहले ही हार चुका था।’ सीएनएन पर फरीद जकारिया ने बहुत पहले कह दिया था! हामिद मीर चुटकी लेते हैं : वह तो जूते छोड़ के भाग गया! अमेरिका उसी तरह रातोंरात भागा जैसे कभी वियतनाम से भागा था। चैनल दिखाते हैं।

अमेरिका बहुत कुछ छोड़ भागा है : एक कमरे भर डॉलर, सैकड़ों टैंक, दर्जनों सैन्य जहाज और हेलीकॉप्टर, तोपें, हजारों बंदूकें, अंधेरे में देख सकने वाली दूरबीनें, फौजी कपड़े और जूते!
लंबे-लंबे तालिबान! पठानी सूट, सिर पर स्कार्फ या काली पगड़ी और लंबी दाढ़ी! हाथ में क्लाश्निकोव! एक से एक मर्दवादी ‘माचो’ दृश्य हैं!
कुछ लुटियन स्त्रीत्ववादी तालिबानों की आरती-सी उतारती दिखती हैं। एक भी स्त्रीत्ववादी अफगानी औरतों के दमन-शोषण का विरोध नहीं करती, जबकि दृश्यों में हर तरफ निरी मर्दवादी निरंकुशता फैली है!

और कुछ चारण उनका यशोगान करते हैं : उन्होंने गुलामी की जंजीरें तोड़ी हैं! क्रांतिकारी हैं! दुनिया की सबसे बड़ी ताकत को हराया है!
कुछ बर्क, नोमानी और राना टाइप टीवी पर खबर बनाते हैं। इनको फ्रीडम फाइटर मानते हैं। कुछ सेक्युलर खुशी जताते हैं कि अब आया संघ तालिबानों के नीचे!

एक से एक खौफनाक दृश्य हैं : नेलपॉलिश लगाने के जुर्म में एक औरत की वे उगलियां काट रहे हैं! ब्यूटी पार्लर पर कालिख पोत रहे हैं! बारह बरस से पैंतालीस बरस तक की औरतों से जबरिया निकाह कर रहे हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा जिहादी पैदा कर सकें!
एक चैनल बताता है कि वे तो ‘गजवा-ए-हिंद’ करना चाहते हैं! वे भारत को भी अपने जैसा बनाना चाहते हैं।

कुछ चैनल बताते हैं कि तालिबान सबको ‘माफ’ कर रहे हैं ‘सबकी हिफाजत’ करने की बात कह रहे हैं! लेकिन इन बातों से अधिक उनकी बंदूकें ही बोलती दिखती हैं : लोग डर के मारे हवाई अड्डे की ओर भाग रहे हैं! चलते हवाई जहाज पर चढ़ रहे हैं! उड़ते जहाज से गिर कर मर रहे हैं! दो मरे। उनमें से एक डॉक्टर था, दूसरा फुटबाल खिलाड़ी! वे सफेद मोजे पहनी दो बच्चियों को गोली मार देते हैं। वे समझते हैं कि सफेद मोजे पहन कर वे उनके सफेद झंडे का अपमान कर रही थीं!

पांच दिन से हर खबर चैनल पर खौफ पसरा दिखता है! दो दिन बाद फिर हवाई अड््डे के बाहर भीड़ जमा है और गोलियों की बौछार है तड़ तड़ तड़ तड़! एक बच्ची को एक मां अमेरिकी सिपाहियों की ओर फेंक देती है, ताकि वह तो बच जाए!
कुछ चैनल तालिबानों के खिलाफ बढ़ते विरोध को दिखाते हैं। कुछ अफगानी पुराने झंडे को लंबा करके फहराते हैं और गोली खाते हैं। एक चैनल खबर देता है कि तालिबान गुरुद्वारे में बैठे हिंदू-सिखों को आश्वस्त कर रहे हैं! फिर भी लोग डर रहे हैं और भारत सरकार से गुहार कर रहे हैं कि हमें बचाइए, ले जाइए!

एक्सपर्ट ‘तालिबानों’ को ‘डिकंस्ट्रक्ट’ करते हैं : जिनको जेल से छोड़ा है उनमें अलकायदा है, हक्कानी ग्रुप है। जैश है। लश्कर है। पाकिस्तानी मुजाहिदीन हैं। पाक की आइएसआइ है। आइसिस है।
हामिद मीर : पाक को बहुत खुश होने की जरूरत नहीं कि हिंदुस्तान को ठीक करेंगे। वे पहले पाकिस्तान को ठीक करेंगे। दूसरी लाइन : ये नए तालिबान हैं, इनसे बात करें! तीसरी लाइन : ‘गुड और बैड तालिबान’ नहीं होते! तालिबान तालिबान हैं! चौथी लाइन : हम उनका अमल देख कर तय करेंगे कि क्या करें?
यह ‘इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगास्तिान’ का जलवा है प्यारे!
भारत के साथ आयात-निर्यात बंद! भजो राधे गोविंद! दो अफगानी टीवी एंकर दफ्तर से वापस भेज दी जाती हैं : घर में बैठो। औरतें बाहर काम नहीं करेंगी। एक ट्वीट करती है कि पता नहीं कब तक हम जिंदा हैं! एक खबर चैनल, जो तालिबानों को पहले आतंकी कह रहा था अब ‘लड़ाके’ कह रहा है! दो अंग्रेजी चैनल तालिबानों को बर्बर आतंकी और जंगली कह रहे थे और अब भी कहते हैं!
‘इब्तिदा-ए-इश्क है रोता है क्या!
आगे आगे देखिए होता है क्या!’