इसी दौरान ‘पांच मिनट में पचास खबरें’ किस्म की एक बुलेटिन में ‘हिट ऐंड रन’ के ऐसे ही दो मामले और दिखे, लेकिन किसी चैनल ने उनको तवज्जो नहीं दी! उनके लिए अंजलि के मामले में जितना दम दिखा, अन्य में न दिखा! कारण कि यह कहानी ‘राजधानी’ को ‘दरिंदगी की राजधानी’ के रूप में दिखाती है! कवरेज ने फिर सिद्ध किया कि कैमरे जहां, जनता वहां और जनता जहां ‘एक्टिविस्ट’ वहां और ‘एक्टिविस्ट’ जहां राजनीति वहां, यानी जनता का गुस्सा जहां चैनलों की टीआरपी वहां! किसी को न्याय मिले न मिले, टीआरपी जरूर मिले! इसीलिए कई चैनल इसमें ‘निर्भया-क्षण’ को तलाशते रहे!

अंजलि की त्रासदी की कहानी भी इसी तरह से ‘ब्रेक’ की गई। आगे की कहानी सीसीटीवी बताते रहे कि वर्षांत की आधी रात का समय, एक होटल से अंजलि का सहेली निधि को पीछे बिठा कर स्कूटी से जाना, एक कार द्वारा स्कूटी को टक्कर मारना, निधि का गिर जाना, लेकिन अंजलि का गाड़ी के नीचे फंस जाना और बारह किलोमीटर घिसटते जाना और उसके शरीर के चिथड़े-चिथड़े हो जाना… निधि का डर जाना और घटना के बारे में किसी को न बताना…

इस कहानी की भयावहता टक्कर में नहीं, एक निरीह लड़की को बारह किलोमीटर तक घसीटे जाने में है। यही वह दृश्य है, जो सबके लिए अनदेखा रहा और जिसकी अब कल्पना ही की जा सकती है। यह कल्पना ही एक दर्शक के रूप में हमें मथती है कि बारह किलोमीटर तक चलती कार के नीचे फंसी अंजलि पर क्या बीती होगी? सोच-सोच कर हृदय दहलता है। घटना की स्पष्ट निर्दयता हमें गुस्सा दिलाती है। अधिकांश चैनल इसे दुहते दिखते हैं।

कइयों का गुस्सा निधि पर फूटा कि वह कैसी दोस्त थी कि उसने इस घटना की पुलिस तक को नहीं खबर दी… इस कहानी के साथ-साथ राजनीति भी घिसटती दिखती रही। एक राजनीति पुलिस को जिम्मेदार ठहराती है, तो दूसरी राजनीति दिल्ली की सड़कों पर अंधेरे को जिम्मेदार ठहराती है!

खबरों और दृश्यों को दिखाते-दिखाते हर एंकर-रिपोर्टर अपने को जांच अफसर की तरह दिखाता रहा और टीआरपी बढ़ाने के लिए नए-नए कोण खोजता रहा। यह टीआरपी की होड़ का ही कमाल है कि छह दिन बाद भी गुत्थी बनी हुई है कि अंजलि हादसे की शिकार हुई कि उसकी हत्या की गई? हां, छठे दिन अंजलि के दोस्त के रूप में एक और किरदार सामने आता दिखा!

चैनलों में सवाल रहा कि यह मौत एक ‘हादसा’ थी या ‘इरादतन हत्या’ थी? कई एंकर चाहते दिखे कि पुलिस इसे ‘इरादतन हत्या’ यानी ‘दफा तीन सौ दो’ का मामला बनाए, जबकि एक बहस में एक पूर्व पुलिस अफसर का कहना रहा कि तीन सौ दो का मामला तभी बनता है, जब हत्या का मकसद स्पष्ट होता है। इसके बाद कई चर्चकों ने उसे बोलने तक नहीं दिया!

कहानी अभी खत्म नहीं हुई है, लेकिन चैनलों में कहानी को सबसे पहले परोसने को लेकर होड़ दिखने लगी है। छठे दिन की सुबह कई एंकर दावा करते दिखे कि सबसे पहले हमने कहानी ‘ब्रेक’ की, कि हम ही घटना स्थल पर पहले पहुंचे…एक बहस तो अपनी ही हद पार कर गई। गुस्साए एंकर और चर्चक कहते रहे कि अगर पुलिस मौके पर होती, तो वह बच जाती… अब उनसे कौन कहे कि न हर एक आदमी पर एक पुलिस तैनात हो सकती है, न हर समय हर जगह पुलिस निगाह रख सकती है…

चैनलों ने इस मामले में पुलिस को शुरू से खल माना, लेकिन आम आदमी पुलिस पर भरोसा न करे, तो क्या चैनलों पर करे, जो सिर्फ टीआरपी के लिए जीते-मरते हैं। इस बीच राहुल की व्यंग्यात्मक उक्ति कि संघ उनका गुरु है, उससे उन्होंने बहुत कुछ सीखा है… ध्यानाकर्षक रही। इसी क्रम में राम जन्मभूमि के निर्माण से जुड़े एक बड़े नेता द्वारा राहुल की यात्रा पर की गई एक सकारात्मक-सी टिप्पणी ने भी भाजपा प्रवक्ताओं को असमंजस में डाला!

इन दिनों राहुल टीम बेहद सजग है। एक कांग्रेसी ने योगी के ‘भगवा वस्त्र’ को पिछड़ेपन की निशानी बताया, तो तुरंत एक कांग्रेसी नेता ने साफ किया कि किसी के पहनावे पर टिप्पणी उचित नहीं। एक चैनल ने बताया कि राहुल के यात्रीपन को देख बाकी सब यात्री बनने लगे हैं। बिहार में तीन तीन यात्राएं हैं, त्रिपुरा, राजस्थान और कर्नाटक में यात्राएं हैं, और एक बंगाल में होनी है! सच! खरबूजे को देखकर खरबूजा बदले रंग!