अपने एक किसान नेता का जवाब नहीं! वह जब बोलता है, दैवी-वचन बोलता है! एक दिन प्रेस को बोल दिया कि लखीमपुर में जो हुआ वह ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ थी… क्रिया की प्रतिक्रिया तो होती ही है… इस पर उसकी ऐन बगल में बैठा एक मानवाधिकारवादी नेता उसे न रोकता है, न टोकता है!
और देखते-देखते ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ वाला महावाक्य गुजरात की पुरानी ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ को सही ठहराने लगता है!

धन्य हैं हमारे राजनीतिक न्यूटन!
इन दिनों हर खबर, हर बहस कटखनी है। हर बात बदलेखोरी में बदली जा रही है! एक ओर लखीमपुर में कुछ मृतकों के लिए ‘अरदास’ है, तो दूसरी ओर एक यूपी मंत्री लिंचित मृतकों के घर जाते हैं! सबके अपने-अपने दर्द और अपनी-अपनी हमदर्दियां हैं। हमदर्दियों से कहीं वोट बनाए और कहीं बचाए जा रहे हैं! लखीमपुर की खातिर महाराष्ट्र एक दिन के बंद का ‘व्रत’ रखता है, जैसे महाराष्ट्र में कभी लखीमपुर न हुआ हो और न हो सकता हो!
भाजपा प्रवक्ता पुराने हथियारों से ही जूझते रहते हैं कि राजस्थान में क्यों नहीं जाते राहुल-प्रियंका, जहां एक दलित को लिंच किया गया! कांग्रेसी प्रवक्ता कहिन : आप जाइए न राजस्थान, हम तो जाएंगे लखीमपुर तीर्थ!

एक दिन राजनाथ सिंह सावरकर पर एक किताब का विमोचन करते हुए कह देते हैं कि गांधी के कहने पर सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी… संघ के भागवत कह देते हैं कि सावरकर युग आ रहा है और वाह-वाह, हाय-हाय शुरू हो जाती है और चैनल लाइन लगाते हैं : ‘नेशनल मेल्ट डाउन आन सावरकर’। ‘इतिहास को दुरुस्त किया जा रहा है!’

सावरकर युग आ रहा है!
इस पर ओवैसी की टीप मजेदार रही : अगर ऐसा ही रहा, तो ये एक दिन गांधी की जगह सावरकर को राष्ट्रपिता बना देंगे! ऐसे ही, सावरकर को लेकर होती एक बहस में, शशि थरूर कहते रहे कि अतीत की जगह भविष्य को देखना चाहिए, जबकि सावरकर के इतिहासकार विक्रम संपत कहते रहे कि इतिहास के ‘सत्यकरण’ (ट्रुथीफाई) की जरूरत है और सत्य यह है कि सावरकर ने गांधी के कहने पर माफी मांगी थी! एक निंदक बोला : उन्होंने तो पहले भी कई बार माफियां मांगी थीं! इस पर माहूरकर बोले कि शिवाजी ने औरंगजेब से पांच बार माफी मांगी थी, लेकिन हर बार तोड़ दी, यह ‘टैक्टिकल’ माफी थी! यही सावरकर ने किया! गांधी ने उनको क्रांतिकारी कहा है!

सावरकर की बात चली, तो शिवसेना ने कहा- भाजपा सावरकर को भारत रत्न क्यों नहीं देती? इसे कहते हैं भाजपा की ‘ब्याज निंदा’ जो प्रकटत: तो ‘निंदा’ लगती है, लेकिन असल में ‘स्तुति’ होती है! फिर एक दिन जैसे ही गृह मंत्रालय द्वारा बीएसएफ को सीमावर्ती पांच राज्यों में सीमा से पचास किलोमीटर के भीतर तक कार्रवाई करने का अधिकार दिया गया, वैसे ही पंजाब के सीएम बोले कि यह राज्य के अधिकारों का हनन है। अकाली बोले कि ऐसे में आधा पंजाब तो बीएसएफ के हवाले हो गया… ये क्या बात हुई!

इधर वृहस्पतिवार की शाम बांग्लादेश में पूजा पंडालों को जलाने की खबर आती है, उधर चैनलों मे ‘सीएए, एनआरसी’ की जरूरत बताई जाने लगती है!
लेकिन वाह रे आर्यन खान की किस्मत! ‘नशेड़ी क्रूज केस’ में आर्यन की जमानत की अपील पर सुनवाई हुई और फैसला भी हुआ, लेकिन बीस तारीख को सुनाने की बात हुई!

इस बात पर कई एंकर ऐसे चिंतातुर नजर आए, मानो उनका कोई अपना ही सगा अंदर हो! बहसों में एक से एक वकील जुटाए जाते रहे, जो कहते रहे कि जमानत देने में इतनी देरी क्यों? रिपोर्टरों-एंकरों को फिक्र सताने लगी कि हाय हाय! आर्यन खान कब आएंगे बाहर? अपराधियों से भरी आर्थर रोड जेल में कैसे रहेंगे इतने दिन? क्या उनको आम कैदियों की तरह ही रखा जाएगा? क्या खाएंगे? कैसे सोएंगे?

हाई-प्रोफाइल केस हो, तो सब उसकी बलैयां लेने लगते हैं! ‘सेलीब्रिटी’ हो या ‘नशेलीब्रिटी’ उसकी एक एक हरकत को ऐसे बताते हैं जैसे किसी महापुरुष की लीलाओं को बता रहे हों!

रिपोर्टर बताते रहे कि उनको कैदी नंबर 956 का बिल्ला मिला है और मिले हैं कैदियों की पगार वाले साढ़े चार हजार के कूपन, जिनसे वे खाने की चीजें खरीद सकते हैं! जब बड़े-बड़े नेता कहें कि ‘सरनेम खान’ की वजह से सताया जा रहा है, ‘इस्लामोफोबिया’ हो रहा है और जब मीडिया दिन-रात उसके चरणों में निछावर दिखे, तब क्यों न बने फिल्म ‘कैदी नंबर नौ सौ छप्पन’!