एक से एक ‘विचित्र किंतु सत्य’ दृश्य दिखते हैं:
– शिवपुरी के गांव की औरतें कहती हैं : इंजेक्शन से मौत हो रही है। हम नहीं लगवाएंगे और ‘टीका-टीमों’ को डंडों से खदेड़ देती हैं!
– ‘टीका-टीम’ देखते ही यूपी के गांव के लोग नदी में कूद जाते हैं!
– कई शहरों में कोरोना को भगाने के लिए यज्ञ किए जा रहे हैं!
– एक आइएएस अफसर मास्क लगा कर दवा लेने जा रहे किशोर को थप्पड़ मारता है। फिर टीवी में माफी मांगता है।
– एक पुलिसकर्मी एक लड़के पर डंडे बरसाता है!
– एक लड़के के हाथ और पैर में कील ठोंक दी गई है!
– यूपी के कुशीनगर और तमिलनाडु के एक नगर में कोरोना देवी की पूजा की जा रही है।
– पांच नगरों में कोरोना को भगाने के लिए लोग यज्ञ कर रहे हैं!
– एक चैनल पर एक लाइन तीन मास्क पहनने को कहती है!
– गाजियाबाद के एक डॉक्टर ‘यलो फंगस’ की खबर देते हैं। पहले ‘ब्लैक फंगस’ फिर ‘वाइट फंगस’ अब ‘यलो फंगस’! यह मारक है। डॉक्टर दर्शकों की मेडिकल क्लास शुरू कर देते हैं कि फंगस कहीं भी हो सकता है! यानी ‘बच के रहना रे बाबा बच के रहना रे’!

– फिर एक चैनल पर एक डॉक्टर ‘कॉकटेल’ नाम की दवा देने लगता है कि कोरोना के शुरू में ही दी जाए, तो यह उसकी मारकता को कम करती है! परीक्षण की इजाजत चाहिए!
हर रोज एक नई बीमारी और नई दवा बताई जा रही है! अपना देश बड़ी दवा कंपनियों की एक दैनिक प्रयोगशाला बना जा रहा है!

चैनल खबर देते हैं कि डॉक्टर लोग रामदेव से नाराज हंै कि उन्होंने एलोपैथी को ‘स्टूपिड’ कैसे कहा और रामदेव को डॉक्टरों से शिकायत है कि वे आयुर्वेद को ‘क्वैकरी’ क्यों कहते हैं! दो चैनल रामदेव बरक्स डॉक्टरों की बहस कराते हैं, जो अंतत: तू तू मैं मैं में बदल जाती है। फिर रामदेव पर एफआइआर की खबर आती है!
हम तो दोनों से कहेंगे कि सर जी! पहले मिलजुल कर महामारी से लड़ लो, बाद में तय कर लेना कि कौन-सी विद्या उत्तम है!

राज्यवार बंदियों से कोरोना संक्रमण काफी कम हुआ है। यह राहत की बात है, लेकिन कोरोना से सुरक्षा देने वाला टीकाकरण अभियान ढीला है! टीकाकरण अभियान की खबरें हताशाजनक हैं। जगह-जगह लिखा दिखता है : टीका खत्म! टीकाकरण बंद!

केंद्र कहता है कि टीके हैं और राज्य सरकारें राजनीति कर रही हैं, लेकिन विपक्षी कहते हैं कि टीका हो तो लगाएं! विपक्ष के हमले वही हैं कि टीके विदेशों को क्यों दिए। अगर वे छह करोड़ टीके होते तो दिल्ली, मुंबई में सबको लग गए होते! भाजपा प्रवक्ता भविष्यवादी-सा जवाब देते हैं : टीके बन रहे हैं। टीके आ रहे हैं। जून के अंत तक इतने करोड़, जुलाई में इतने करोड़ और दिसंबर तक दो सौ करोड़ आ जाएंगे! लेकिन सर जी! मई, जून तो गए न!

‘का बरखा जब कृषी सुखाने!’
एक एंकर को मानसिक स्वास्थ्य की चिंता है। सभी विशेषज्ञ कहते हैं कि लोगों को चाहिए कि वे परिजनों और मित्रों के संपर्क में रहें। आन लाइन रहें। बातचीत करते रहें। योग करें! मन को सकारात्मक रखें! गांवों, शहरों की जो गरीब जनता ‘आॅनलाइन’ नहीं, वे क्या करें एंकर जी? आपकी चिंता भी सिर्फ मध्वर्गीय है!
एक दिन चैनल बड़ी खबर ‘बे्रक’ करते हैं : ओलिंपिक का एक गोल्ड मेडलिस्ट पहलवान हत्या के आरोप में गिरफ्तार! फिर एक चैनल में वीडियो दिखता है, जिसमें पहलवान हॉकी या डंडा लेकर खड़ा है और एक आदमी उसके कदमों में बेदम-सा पड़ा है!

एक चैनल पर, एक पुराने पहलवान ने पहलवानों के मनोविज्ञान सरल भाषा में समझाया कि हर बड़ा पहलवान अंतत: डॉन बनना चाहता है। ‘प्रापर्टी माफिया’ को चाहिए ‘मसल पावर’ और ‘मसल पावर’ होती है पहलवानों के पास! यह पहलवान भी ‘डॉन’ बनना चाहता था। यह मामला भी ‘प्रापर्टी और मसल पावर’ का है!
इस बीच एक अंग्रेजी एंकर ‘कोरोना वायरस’ के लिए चीन की ‘वुहान लैब’ को जिम्मेदार ठहराता हुआ और डब्लूएचओ की भूमिका पर शक करता हुआ बहसें कराता है और बहसों में साफ होता जाता है कि इस वायरस के जरिए चीन एक ‘जैविक विश्व युद्ध’ चला रहा है, जिसने दुनिया के देशों की जनता और अर्थव्यवस्था को तबाह करके रख दिया है! वुहान लैब की दोबारा जांच जरूरी!

सबसे विवादी खबर ट्विटर के तेवरों ने बनाई!
‘सोशल मीडिया’ संबंधी नए कानून के अनुसार काम करने की तिथि के बीतते ही सरकार ने चाहा कि सभी सोशल मीडिया कानून का अनुपालन करें अन्यथा वे ‘प्लेटफार्म’ की जगह ‘इंटरमीडियरी’ माने जाएंगे और कानून के तहत जवाबदेह होंगे! लेकिन ‘वाटसऐप’ और ‘ट्विटर’ का जिगरा देखिए कि कह रहे हैं कि यह उनकी आजादी का हनन है! एक तो अदालत तक चला गया! इनको चीन ठोंक चुका है। सउदी अरब और अन्य कई देशों ने प्रतिबंधित किया हुआ है, लेकिन यहां आखें दिखा रहे हैं!