पांच अगस्त, 2019 को भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के बाद से दूसरे नेताओं की तरह ही बिना लिखित आदेशों के ‘घर में नजरबंद’ एक राजनेता का कहना है कि ‘जम्मू कश्मीर एक बड़ी जेल है।’
प्रोजेक्ट जेएंडके का मकसद राज्य को विभाजित करना, इसका दर्जा घटा कर केंद्र शासित प्रदेश करना, इन क्षेत्रों को सीधे केंद्र सरकार के शासन के तहत लाना, राजनीतिक गतिविधियों का दमन, कश्मीर घाटी के पचहत्तर लाख डरे-सहमे लोगों को अधीनता में धकेल देना, और अलगाववादियों और आतंकवादियों को कुचलना था। जबकि सारे उपाय किए जा चुके हैं, किसी अंत तक नहीं पहुंचा जा सका है, और मेरे विचार से मौजूदा व्यवस्था की नीतियों के तहत कभी पहुंचा भी नहीं जा सकेगा।
पूर्व राज्य की स्थिति
हम कुछ ठोस तथ्यों पर नजर डालें (मुख्य स्रोत- जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के फोरम की रिपोर्ट, जुलाई 2020)
– 2001 से 2013 के बीच, आतंकी घटनाओं की संख्या चार हजार पांच सौ बाईस से घट कर एक सौ सत्तर पर आ गई थी और मृतकों (जिनमें नागरिक, सुरक्षाकर्मी और आतंकी हैं) की संख्या तीन हजार पांच सौ बावन से घट कर एक सौ पैंतीस पर आ गई थी। 2014 से, खासतौर से 2017 के बाद कठोरता और बाहुबल की नीति से हिंसा में जोरदार इजाफा हुआ। देखें सारणी-
– आंकड़ों का शिखर यह है कि छह हजार छह सौ पांच (जिनमें एक सौ चौवालीस नाबालिग भी हैं) को हिरासत में लिया गया था। महबूबा मुफ्ती सहित कई तो अभी तक हिरासत में हैं। कठोर जनसुरक्षा कानून को अंधाधुंध तरीके से लागू कर दिया गया और चार सौ चौवालीस मामले दर्ज कर लिए गए। राजनेताओं की सुरक्षा को काफी हल्का कर दिया गया और उनके घरों से सुरक्षा हटा ली गई, और इस तरह उनकी आवाजाही और राजनीतिक गतिविधियों को खत्म कर दिया गया।
– घाटी में सेना और केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों का हद से ज्यादा जमावड़ा है। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के बाद अड़तीस हजार अतिरिक्त सैनिकों को और तैनात कर दिया गया। व्यावहारिक तौर पर साल भर से आपराधिक दंड संहिता की धारा 144 के तहत सारे प्रतिबंध लागू हैं। 25 मार्च, 2020 के बाद पूर्णबंदी ने सब कुछ बंद कर देने में प्रशासन की मदद कर दी। अगर कुछ ‘शांति’ सी लग रही है तो यह वही है, जिसे जॉन कैनेडी ने ‘कब्रिस्तान की शांति’ करार दिया था।
– सभी प्रमुख मौलिक अधिकार प्रभावी रूप से निलंबित हैं। जनसुरक्षा कानून और गैरकानूनी गतिविधियां (निरोधक) कानून लागू हैं। बड़े पैमाने पर रोजाना घेराव और तलाशी (सीएएसओ) का काम हो रहा है और आवाजाही पर प्रतिबंध है। सभी शासकीय आयोगों के अधिकारों को खत्म किया जा चुका है। नई मीडिया नीति स्पष्ट स्वीकारोक्ति है कि जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया के लिए कोई जगह नहीं है और यह सेंसरशिप को पवित्रता प्रदान करता है।
– मुबीन शाह, मियां अब्दुल कय्यूम, गौहर जिलानी, मसरत जाहरा और सफूरा जफगर के मामले कानून के दुरुपयोग और न्याय पाने में आने वाली मुश्किलों को बताते हैं।
– कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने अनुमान व्यक्त किया है कि अगस्त 2019 से कश्मीर घाटी में बंद की वजह से चालीस हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है और चार लाख सत्तानबे हजार रोजगार खत्म हो गए हैं। घाटी में आने वाले पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई है। साल 2017 में छह लाख ग्यारह हजार पांच सौ चौंतीस पर्यटक घाटी में आए थे। 2018 में यह संख्या घट कर तीन लाख सोलह हजार चार सौ चौबीस और 2019 में मात्र तिरालीस हजार उनसठ रह गई। फल, परिधान, कालीन, आईटी, संचार और परिवहन उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
– सुप्रीम कोर्ट को अभी जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून की संवैधानिकता, 4जी सेवाओं की बहाली और गैरकानूनी गतिविधि (निरोधक) कानून के अलावा विभिन्न मानवाधिकारों को खारिज करने को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर अंतिम रूप से सुनवाई कर फैसला करना है।
नया कश्मीर मसला
कश्मीर का मसला 1947 से चल रहा था जब पाकिस्तान ने शासकों द्वारा भारत में विलय का विरोध किया था। पाकिस्तान को यह सबक मिला कि वह भारत से जंग के जरिए घाटी पर कब्जा नहीं कर सकता। हालांकि अगस्त 2019 से नया कश्मीर मसला शुरू हो गया है। नए कश्मीर के मसले के कई आयाम हैं- अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने की संवैधानिकता, राज्य का दर्जा घटा कर दो केंद्र शासित प्रदेश बना देना, राजनीतिक और मानवाधिकारों का हनन, अर्थव्यवस्था की तबाही, आतंकवाद का उभार, नई अधिवास नीति, घाटी के लोगों को पूरी तरह से अलग कर देना, और अब नई अधिवास नीति को लेकर जम्मू में और लद्दाख में किसी भी तरह के प्रशासन की गैरमौजूदी से पनप रहा असंतोष।
बाकी भारत दावे के साथ कहता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है, लेकिन दुख की बात है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों की व्यथा पर जरा सरोकार नहीं है। लद्दाख में चीनी घुसपैठ और पाकिस्तान के साथ चीन की धुरी ने आखिरकार बाकी भारत की नींद उड़ा दी है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
पूर्णबंदी में बंदी
शेष भारत में पूर्णबंदी का अर्थ है कि किसी को घर के बाहर नहीं निकलना है। पूर्णबंदी में भी शेष भारत को वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अखबारों, टेलीविजन, मोबाइल फोन, इंटरनेट, अस्पतालों, पुलिस थानों, अदालतों और निर्वाचित प्रतिनिधियों तक पहुंच मिली हुई है। कश्मीर घाटी में पूर्णबंदी के दौरान अधिकारों को खारिज करने वाली पूर्णबंदी लगी है। बाकी भारत को बिना वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाली और बिना अखबारों, टेलीविजन, मोबाइल फोन, इंटरनेट, अस्पतालों, पुलिस थानों, अदालतों और निर्वाचित प्रतिनिधियों तक पहुंच वाली पूर्णबंदी की कल्पना करनी चाहिए। आज यह हालत है वहां।
पांच अगस्त 2020 को साल भर पूरा हो जाएगा, फिर भी हमारे संवैधानिक संस्थान- संसद, अदालतें और बहुदलीय राजनीतिक व्यवस्था, जिन पर हम गर्व करते हैं, के पास उन सवालों के जवाब नहीं हैं जो पांच अगस्त 2019 को नए कश्मीर मसले को बनाने से निकले हैं। यह एक दुखद नाकामी है और यह उदासी इस हकीकत के साथ और बढ़ जाती है कि हमारे सामने कोई अब्राहम लिंकन नहीं है। न हम अंतरात्मा को झकझोर देने वाली आवाज सुन सकते हैं कि इस राष्ट्र को एक नई आजादी देनी होगी और जनता की सरकार, जनता के द्वारा, जनता के लिए, धरती से खत्म नहीं होगी।
साल संघर्ष विराम उल्लंघन घुसपैठ की घटनाएं आतंकी वारदातें मृतकों की संख्या
2017 881 136 398 357
2018 2140 143 597 452
2019 3168 7 369 283
2020 646 उपलब्ध नहीं 229 205
(जून/ जुलाई)
स्रोत : साऊथ एशियन टेररिज्म पोर्टल