हरियाणा के चुनाव परिणाम का झटका देने वाली आठ अक्तूबर की सुबह! उससे पहले बहुत से नतीजा पूर्व सर्वेक्षण हरियाणा में विपक्ष को जिता चुके थे और सत्ता दल को बुरी तरह हरा चुके थे। नतीजतन, सुबह विपक्ष के कार्यालय में जलेबियां तली जा रही थीं। उल्लसित भक्तों की भीड़ थी। हर एंकर, संवाददाता यही कहे जा रहा था कि सत्तासीन दल का ‘सूपड़ा साफ’ होने जा रहा है। ‘आसन्न’ मुख्यमंत्री की एक बाइट लेने के लिए संवाददाता गिरते-पड़ते-दौड़ते दिखते रहे और स्टूडियो में विपक्षी प्रवक्ता एक सुर में प्रसन्नवदन गाते दिखे कि सत्ता को किसान, पहलवान और जवानों का शाप लगा, कि महंगाई-बेरोजगारी ने हिसाब चुकता किया!
चुनावी जलेबी के चक्कर में सर्वेक्षण का ‘सत्ता’ स्वाद!
चर्चा में कुछ चर्चक ऐसे चहकते दिखते थे, मानो वे ही नई सरकार बना रहे हों, कि जो नतीजा पूर्व सर्वेक्षण कह रहे थे, वही होने जा रहा है, कि ‘सत्ता विरोधी लहर’ सत्ता पार्टी का सूपड़ा साफ करने वाली है। नतीजा पूर्व सर्वेक्षण वालों की मांग बढ़ी हुई थी। जब चर्चक, एंकर जलेबी और लड्डुओं की चर्चा से ऊब जाते तो सर्वेक्षण वालों से पूछते कि आपने जीत-हार के सच को इतना पहले कैसे जान लिया? उनमें से कुछ इतराते कहते कि हमने मतदाताओं के मन की बात सुनी, सो कही। दस साल की ‘सत्ता विरोधी लहर’ और सहयोगियों की नाराजगी, किसानों, पहलवानों, जवानों की नाराजी रंग लाने वाली है, कि जीत के अंतराल में फर्क हो सकता है… हो सकता है ये बहत्तर सीट तक ले आएं..!
जलेबी का सन्नाटा: जीत के रुझान पलटे, विपक्ष की उम्मीदें ध्वस्त!
इधर विपक्ष जीत के लिए आश्वस्त। कई कथित ‘तटस्थ विश्लेषकों’ ने खुश होना शुरू किया ही था कि सुबह साढ़े नौ बजे के बाद अचानक जीत के रुझानों ने पलटी मारनी शुरू कर दी। फिर जैसे ही सत्तासीन दल की सीटों में खासी बढ़त की खबरें आने लगीं, वैसे ही एक संवाददाता ने बताया कि जब से नए रुझान आए हैं, तब से कार्यालय में न जलेबी है, न भीड़! सिर्फ सन्नाटा है! इस अचानक की उलटमार को देख जैसे ही एक पत्रकार-चर्चक ने नतीजा पूर्व सर्वेक्षण वाले से पूछा कि अब तक एक रुझान थे, अब सत्तासीन पार्टी सारी सीटों पर आगे निकल रही है, क्यों?
एक नतीजा पूर्व सर्वेक्षण वाला संभालने लगा कि ये एक एक बाक्स खुलने के कारण है… हमारा सर्वेक्षण सही निकलेगा! एक बड़े विपक्षी नेता ने हिम्मत बढ़ाई कि हमारा बहुमत आएगा, लेकिन सत्ता प्रवक्ता लगा रहा कि पत्रकार ने कैसे कहा कि ये बक्से कहां से आ रहे हैं! पत्रकार ने सफाई दी कि मैंने तो सिर्फ यह पूछा था कि ये आंकड़े यहां तक कैसे पहुंचे… ये लोग मुझ पर हमेशा हमला करते हैं। इसके बाद प्रवक्ताओं में तो ठनी ही रही, लेकिन ‘आहत’ पत्रकार कहने लगा कि अगर यह स्थिति आगे भी बनी रहती है तो यह विपक्षी दल के लिए चिंता की बात है।
दोपहर से शाम तक हरियाणा में सत्तासीन पार्टी कभी 47, कभी 48 सीट लेती रही और विपक्षी उसी अनुपात में पिछड़ते रहे थे, जबकि जम्मू-कश्मीर में विपक्षी दलों को बहुत मिल चुका था!
‘अड़तालीस सीट’ वाले कहिन कि कश्मीर का मीठा तो ‘गप’, लेकिन कड़वा थू-थू। हरियाणे की जलेबी न मिली तो ठीकरा ईवीएम की बैटरी पर फोड़ा। पहले शिकायत की गई कि आयोग आंकड़ा देने में देरी कर रहा है, फिर शिकायत आई कि कुछ ईवीएम की बैटरी खत्म हुई। जहां बैटरी पूरी थी, वहां सत्तासीन दल को ज्यादा वोट पड़े… हम आयोग को शिकायत करेंगे! कुछ चर्चक कहिन कि यह उनका संवैधानिक अधिकार है!
कुछ पत्रकार बताते रहे कि सत्ता दल ने जाति समीकरण सही बिठाए, चुनावी मशीनरी को दुरुस्त कर काम किया, जबकि उधर सिर्फ अपने पक्ष में ‘हवा, आंधी और सुनामी’ पर अटूट भरोसा रहा। एक ‘थिंक टैंक’ ने चढ़ाया भी था कि या तो (विपक्ष की) ‘हवा’ चलेगी या ‘आंधी’ चलेगी या ‘सुनामी’ चलेगी’ और परिणामों के बाद उसने इसके लिए माफी भी मांग ली, लेकिन जलेबी की फैक्ट्री खोलने वालों ने यह तक न माना कि आकलन में गलती हुई। वे जारी रहे कि हम परिणाम को नहीं मानते।
इस सब चर्चा पर तब लगाम लगी जब देश के एक सबसे बड़े उद्योगपति का निधन हुआ। सारा मीडिया, नाना कारपोरेटों के मालिक, उनका जीवन-चरित बताने लगे कि वे कितने मानवीय, दयालु और राष्ट्र निर्माता थे, लेकिन हारने वालों की ओर से चुनाव आयोग से शिकायत कर दी गई। कई चैनल विश्लेषण करते रहे कि इस जीत ने लोकसभा चुनावों की ‘हानि’ को पलट दिया है, कि महाराष्ट्र झारखंड के चुनावों पर इसका असर पडेगा। ‘हारे’ के कई साथी कहते रहे कि ‘अहंकार’ ने हराया, कि ‘आत्ममंथन’ करिए, लेकिन उस हठ का क्या करें जो जिद करता रहता है कि मैं तो चंद्र खिलौना लैहों! इस बीच बहुत-सी खबरों के ‘क्षेपक’ भी आए, निकल गए, लेकिन हरियाणा के परिणाम झटके देते रहे!