कौन जीता? कौन हारा? देखा जाए, तो हमको कोई शक नहीं है कि हम जीते। लेकिन पाकिस्तान के लोगों को यकीन है कि भारत ने उन पर हमला किया बेवजह और हमले का मुकाबला उनकी सेना ने इतनी बहादुरी से किया कि जीत उनकी हुई। नजरिए इतने अलग हैं कि यह भी नहीं तय कर पाए हैं हम कि संघर्ष विराम की मांग किसने की और अमेरिका का हस्तक्षेप किसके कहने पर हुआ। इन सब के बीच ‘संघर्ष विराम’ का श्रेय डोनाल्ड ट्रंप ने ले लिया। ट्रंप को सख्त आवश्यकता थी किसी न किसी युद्ध को समाप्त कराने की, इसलिए कि दूसरी बार राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने दावा किया था कि रूस-यूक्रेन की जंग वह चौबीस घंटों में रोक सकेंगे और इजराइल-फिलीस्तीन के बीच भी शांति ला सकेंगे वाइट हाउस पहुंचने के एक दिन के बाद। ऐसा हुआ नहीं, सो अब ले रहे हैं भारत और पाकिस्तान के बीच शांति कराने का श्रेय और दावा यह भी कर रहे हैं कि कश्मीर की समस्या का समाधान वे ही कराएंगे।
अभी तक इस युद्ध का विश्लेषण पूरी तरह हुआ नहीं है
‘दिल को खुश रखने का खयाल अच्छा है’, जैसा कि मिर्जा गालिब ने कहा। सच यह है कि अभी तक इस युद्ध का विश्लेषण पूरी तरह हुआ नहीं है, सो हम यह भी नहीं जानते कि वास्तव में पाकिस्तान ने हमारे दो रफाल गिराए थे या नहीं। न हम जानते हैं कि हमारे कितने जवान शहीद हुए हैं। पश्चिमी मीडिया का कहना है कि हमारे दो लड़ाकू विमान गिराए गए हैं, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि पाकिस्तान का कहीं ज्यादा नुकसान हुआ है भारत से। हमको चिंता अगर होनी चाहिए किसी चीज की, तो यही कि पाकिस्तान को इस दौरान मुद्रा कोष से पैसे क्यों दिलवाया गया। क्या इस ऋण को अमेरिका रोक नहीं सकता था? क्या यह समय था पाकिस्तान को कर्ज देने का? क्या यह पैसा एक बार फिर उन्हीं आतंकवादी अड्डों को बनाने में लग जाएगा, जिनकी वजह से भारत ने पाकिस्तान पर कार्रवाई की?
मेरी राय में इन सवालों के जवाब हम बाद में ढूंढ़ सकते हैं। फिलहाल हमको इस बात की खुशी होनी चाहिए कि इस युद्ध के बाद पाकिस्तान ने साबित कर दिया है दुनिया के सामने कि अभी तक पाकिस्तानी सेना पाल रही है ऐसे दरिंदों को, जिनको सारे विश्व में जिहादी आतंकवादी माना जाता है। किसी को शक अगर था, तो उस तस्वीर को देख कर सारे शक दूर हो गए होंगे, जिनमें जैश-ए-मोहम्मद के एक आतंकवादी के जनाजे में उसके रिश्तेदारों के पीछे खड़े हैं वर्दीदार सैनिक।
सबूत पाकिस्तान के प्रवक्ताओं और समर्थकों ने भी दिए पाकिस्तान का समर्थन करते हुए। पहले तो जब पाकिस्तान के रक्षामंत्री से सीएनएन पर पूछा गया कि उनकी सरकार जिहादी आतंकवाद को क्यों फैला रही है, तो उन्होंने कहा कि ऐसा ‘गंदा काम’ हमने जरूर किया है अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए। फिर जब बिलावल भुट्टो से यही सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऐसी चीजें जरूर हुई हैं अतीत में, लेकिन अब नहीं हो रही हैं। निजी तौर पर मुझे सबसे बड़ा सबूत तब मिला, जब एक विदेशी टीवी पर चर्चा में बरखा दत्त ने पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार से पूछा कि क्या वह स्वीकार करने को तैयार हैं कि लश्कर-ए-तैयबा और जैसे-ए-मोहम्मद जिहादी आतंकवादी संस्थाएं हैंं? यह सवाल इतना मुश्किल था हिना साहिबा के लिए कि उसका जवाब देने के बदले वह भाग निकलीं। अचानक जहां उनकी तस्वीर थी टीवी पर, वहां खाली जगह दिखी।
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युद्ध की धुंध जैसे-जैसे छंटने लगी है, दिखने लगी है भारत की जीत। हमारी जीत इसमें है कि हमने बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना, मौलाना मसूद अजहर का अड्डा तबाह कर दिया है। यह वह दरिंदा है, जो भारत से इतनी नफरत करता है कि जब हमने उसको रिहा किया था आइसी 814 के अगवा होने के बाद और उसको कंधार ले जाया गया था एक भारतीय सैनिक विमान में, तो उसने पानी तक नहीं पिया। बाद में इस दरिंदे ने एक वक्तव्य में गर्व से यह बताया। हमारी गलती यह थी कि ऐसे दरिंदों को हमने वर्षों तक अपनी जेलों में रखा। दंडित किया होता, तो उसके साथ उमर सईद भी दंडित होता, जिसने रिहा होने के बाद डेनियल पर्ल नाम के अमेरिकी पत्रकार को अगवा कर मरवाया था, सिर्फ इसलिए कि वह यहूदी था।
इस बार की सैन्य कार्रवाई में हमने मुरीदके में हाफिज सईद के अड्डे को भी तबाह किया है। इस दरिंदे के नेतृत्व में लश्कर-ए-तैयबा ने मुंबई में 26/11 वाले हमले को अंजाम दिया था। इसका सबूत डेविड हेडली ने अमेरिकियों को दिया था कुछ साल पहले, लेकिन इसलिए कि हेडली अमेरिकी नागरिक है, हम उसको भारत ला नहीं सके दंडित करने के लिए। अच्छा है कि उसके दोस्त तहव्वुर राणा को हम कई वर्षोंं की मशक्कत के बाद ला सके हैं और फिलहाल उससे पूछताछ की जा रही है दिल्ली में।
इन दरिंदों के अड्डों को तबाह करके हम कह सकते हैं कि इस युद्ध को हम जीत चुके हैं। अगली बार हमारे देश के अंदर आकर बेगुनाह लोगों को मारने से पहले इनके जिहादी साथी इतना तो सोचेंगे कि अब वह अपनी कायर, गंदी लड़ाई को रोकते नहीं हैं, तो भारत उनको ढूंढ़ कर मारेगा जरूर। वे दिन गए जब हम चुपचाप सहते थे पाकिस्तान की सेना के दिए गए ‘हजार जख्म’। अब हर एक जख्म के बदले उन पर किए जाएंगे दो जख्म। अब हर गोली का जवाब दिया जाएगा गोले से जैसे हमारे प्रधानमंत्री ने कहा है इन ही शब्दों में। पाकिस्तान को अब उस भाषा में जवाब दिया जाएगा जो हम दशकों से नहीं देते आए शराफत के मारे। हमारी शराफत को पाकिस्तान ने कमजोरी समझा।