कुरीतियों या रूढ़ियों की जड़ें गहरी होती हैं। जीवनशैली में बदलाव मानसिकता बदलने की पुष्टि नहीं करता। न ही शिक्षा के आंकड़े संवेदनाओं और मानवीय समझ को पोषित करने की तस्दीक करते हैं। हाल ही में तमिलनाडु के तिरुपुर जिले में सत्ताइस वर्षीय एक युवती की आत्महत्या की घटना इन्हीं स्थितियों की बानगी है।
इस तरह की घटनाएं न केवल समाज को झकझोर देने वाली हैं, बल्कि बदलाव के नाम पर आए मात्र सतही दिखावे की स्थिति को भी सामने रखती हैं। इस युवती की शादी दो महीने पहले ही हुई थी। आरोप है कि विवाह में दहेज के तौर पर सोना और महंगी गाड़ी दी गई थी। बावजूद इसके ससुरालवाले उसे कम दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे, जिस कारण उसने जीवन से हार मान ली। खुदकुशी से पहले इस युवती ने अपने पिता को मोबाइल फोन पर सात आडियो संदेश भेजे और रोज की मानसिक प्रताड़ना को सहन करने में असमर्थ होने की बात कही।
आज भी कई युवतियों की शादी उनके लिए एक बुरा सपना बन कर रह जाती है
मौजूदा दौर में किसी को दहेज के लिए मानसिक रूप से प्रताड़ित करना बीते जमाने की बात लगती है। जबकि यह कटु सत्य है कि लालच की इस मानसिकता के कारण आज भी कई युवतियों की शादी उनके लिए एक बुरा सपना बन कर रह जाती है। कहीं जीवनभर की प्रताड़ना और ताने-उलाहने, तो कहीं जीवन का साथ छोड़ देने के हालात उनके हिस्से आ जाते हैं।
चिंताजनक यह है कि ऊपरी तौर पर बदले सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में स्थितियां और मुश्किल हो गई हैं। आज के बनावटी-दिखावटी परिवेश में तो विश्वास दिलाना भी मुश्किल हो गया है कि किसी को दहेज के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है। अपने पिता को भेजे संदेश में इस युवती ने भी स्पष्ट किया कि वह झूठ नहीं बोल रही है और हर कोई उसके आसपास नाटक कर रहा है।
ऐसे में यह संदेश एक शिक्षित-सजग युवती के मन की पीड़ा ही नहीं, परिवेश की तयशुदा सोच को भी उजागर करता है।
दहेज के लिए प्रताड़ित होने के कारण जीवन से हारने वाली युवतियां ऐसे संदेशों में समाज की कड़वी सच्चाई अपने पीछे छोड़ जाती हैं। कुछ वर्ष पहले अहमदाबाद में भी एक महिला ने वीडियो संदेश में स्त्री जीवन की त्रासद हकीकत से रूबरू करवाने के बाद नदी में छलांग दी थी। उसे भी ससुरालवालों की ओर से दहेज के लिए प्रताड़ित किए जाने का दावा किया गया था।
दरअसल, हाल के बरसों में हर वर्ग एवं समुदाय में ठाट-बाट से शादी और मोटा दहेज देने का दिखावटी-बनावटी माहौल बन गया है। महंगी शादी से शुरू होने वाली इन मांगों का अक्सर कोई अंत ही नहीं होता। वहीं नवविवाहिता से लेकर गर्भवती तक, अनगिनत महिलाओं को दहेज की मांग के लिए आए दिन प्रताड़ित किया जाता है। दहेज केवल आर्थिक लेन-देन भर का मामला नहीं है। यह बेटियों के अस्तित्व को नकारने वाली मांग भी लगती है।
ससुराल में उनकी स्वीकार्यता के बदले मोल स्वरूप धन देना मन कचोटने वाली कुरीति है। विशेषकर किसी परिवार की क्षमता से बढ़ कर की गई मांग तो सचमुच स्त्रियों के स्वतंत्र अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगाती है। दहेज का दंश अपेक्षाओं और उपेक्षाओं का एक ऐसा कुचक्र है, जो अपने ही आंगन में औरतों का जीना दुश्वार कर देता है।
महिलाएं अपनों के बीच भी खुद को दोयम दर्जे का महसूस करने लगती हैं, जो कि मानसिक रूप से बेहद पीड़ादायी है। साथ ही सामाजिक परिवेश में भी महिला और उसके परिवार को उपेक्षित तथा अपमानित करने की स्थितियां बना दी जाती हैं। मन को ठेस पहुंचाने वाला अपनों का यह बर्ताव जीवन को ही असुरक्षा के घेरे में ले आता है। नतीजतन, दहेज के दानव ने अबतक जाने कितनी बेटियों की बलि ले ली है। देश के हर हिस्से में इस कुरीति के कारण कभी घर टूटने, तो कहीं जीवन का साथ छूटने की घटनाएं सामने आती रहती हैं।
हालांकि दहेज प्रथा को रोकने के लिए हमारे यहां कड़े कानून बने हैं, पर वैवाहिक समारोहों में होने वाला यह लेन-देन आज भी जारी है। आमजन ही नहीं जन-प्रतिनिधियों और चर्चित चेहरों के परिवारों में भी वैवाहिक समारोहों का दिखावा और दहेज का लेन-देन आम बात है। स्पष्ट दिखता है कि समाज में संपन्नता बढ़ी है, तो शादियों में दिखावा भी बढ़ गया।
पहले पीटा फिर गर्म आयरन से पूरे शरीर को दागा, अलीगढ़ में दहेज के लिए बहू की निर्मम हत्या, मामला दर्ज
दुखद है कि बेटियों के आत्मनिर्भर और शिक्षित होने के बावजूद दहेज की कुरीति कायम है। गलतफहमी यह भी है कि दहेज की कुरीति केवल निचले या मध्यम तबके तक ही सीमित है। जबकि हमारे समाज में आर्थिक स्तर पर ऊंचे माने जाने वाले वर्गों में भी दहेज मांगने की रीत देखने को मिलती है। इसकी जड़ें सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था में गहरे तक फैली हुई हैं।
जिसका सीधा-सा अर्थ है कि बुनियादी रूप से समाज और परिवार की मानसिकता में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। बहुत से परिवारों में माता-पिता बेटियों की उच्च शिक्षा में धन खर्च करने के बजाय उनके विवाह में खर्च करने को प्राथमिकता देते हैं।
इस समस्या का एक पक्ष दहेज के कानून का दुरुपयोग होने के आरोप भी हैं। कई वैवाहिक विवादों के संदर्भ में ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि महिलाएं इस कानून का दुरुपयोग कर ससुरालवालों और यहां तक कि उनके दूर के रिश्तेदारों पर भी आपराधिक मुकदमा कर देती हैं। हालांकि दुरुपयोग के आरोपों के कुछ मामलों के आधार पर इस समस्या की वास्तविकता को झुठलाया नहीं जा सकता। सच यह है कि दुरुपयोग के आरोपों के सामान्यीकरण के असर से इस समस्या के असल पीड़ितों को न्याय मिलने में अड़चन आ सकती है।
गांवों-कस्बों में तो जो महिलाएं सचमुच दहेज के लिए परिवारजनों की प्रताड़ना झेल रही हैं, उन्हें दहेज विरोधी कानून की पूरी जानकारी तक नहीं है। किसी भी कुरीति को दूर करने के लिए परिवार और समाज की दकियानूसी सोच का बदलना भी आवश्यक है, क्योंकि दहेज की समस्या अब किसी जाति, वर्ग या समुदाय तक सीमित नहीं है।