जहां तक मैं याद कर पा रहा हूं, इससे पहले इतना अधिक राजनीति से प्रेरित बजट कभी पेश नहीं किया गया। न ही ऐसा कोई बजट रहा, जो अर्थव्यवस्था में सुधार और पुनर्गठन के अवसर का लाभ उठाने में इतनी बुरी तरह विफल रहा। लोग तैयार थे, मगर सरकार ने उन्हें निराश किया।
2025 में 1991 की झलक
अगर 2024 की स्थिति पर नजर डालें, तो लोगों ने भाजपा को तीसरी बार सत्ता में आने का मौका दिया, मगर एक चेतावनी के साथ। यानी संदेश साफ था कि आपके पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या तो होगी, लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं होगा। आप संविधान को बदलने का प्रयास नहीं कर सकेंगे। आप आम सहमति से शासन चलाएंगे। आप बेरोजगारी, गरीबी और असमानता, मुद्रास्फीति, किसानों की परेशानी और चरमरा चुके बुनियादी ढांचे के मुद्दों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करेंगे। यह ठीक वैसी ही स्थिति थी, जिसका सामना नरसिंह राव-मनमोहन सिंह ने 1991 में किया था। कांग्रेस के प्रधानमंत्री-वित्तमंत्री ने अवसर का फायदा उठाया और एक जुलाई, 1991 से शुरू होने वाले पथ-प्रवर्तक सुधारों की घोषणा की। 15 अगस्त, 1991 तक सुधारों का पहला अंश पूरा कर लिया गया (अवमूल्यन, व्यापार सुधार, वित्तीय क्षेत्र सुधार, कराधान सुधार और औद्योगिक नीति)।
2024 चुनावों के बाद, 23 जुलाई, 2024 का मोदी-सीतारमण का पहला बजट बहुत नीरस था। इसमें मूल कारणों को संबोधित करने जैसा कुछ भी नहीं था। हमेशा की तरह बहाने बनाए गए और वादा किया गया कि पहला पूर्ण बजट (इसका जो भी मतलब हो) मुद्दों पर केंद्रित रहेगा। इस बीच, अर्थव्यवस्था धीमी हो गई, मजदूरी स्थिर हो गई, मुद्रास्फीति हावी हो गई और आरबीआइ ने झुकने से इनकार कर दिया, एफडीआइ प्रवाह में गिरावट आई, एफआइआइ ने निवेश वापस ले लिया, और व्यवसाय तथा व्यवसायी सिंगापुर, दुबई और अमेरिका चले गए। हर किसी की जुबान पर बस यही सवाल था कि ‘सरकार को जगाएगा कौन?
समझदारी भरी सलाह
शुक्र है कि मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) ने आर्थिक सर्वेक्षण (ईएस) 2024-25 की अपनी प्रस्तावना में स्पष्ट और बेबाक बात कही। उन्होंने समझदारी भरी सलाह दी कि, ‘रास्ते से हट जाइए’ और ‘विनियमन हटाइए’। आर्थिक सर्वेक्षण में तेरह अध्याय हैं, लेकिन मैंने उनमें से केवल चार को चुना है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि सीईए की सिफारिश क्या थी और उस पर सरकार की प्रतिक्रिया (या गैर-प्रतिक्रिया) क्या थी।
पहले अध्याय (अर्थव्यवस्था की स्थिति) में मंदी के कारणों को रेखांकित किया और प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार के लिए जमीनी स्तर पर विनियमन हटाने और संरचनात्मक सुधारों की सिफारिश की गई है। वित्तमंत्री ने इसके उलट रास्ता अपनाया। उन्होंने मौजूदा योजनाओं में और अधिक पैसा झोंका और सात योजनाओं, आठ मिशनों और चार नए कोष की घोषणा की। विनियमन हटाने के लिए कोई विशेष प्रस्ताव नहीं किया; न ही किसी क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार के लिए कोई कदम बताए गए। वे केवल गैर-वित्तीय क्षेत्र में विनियामक सुधारों के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की घोषणा कर सकती हैं, जिसका अर्थ है कि वित्तीय क्षेत्र सरकार के नियंत्रण में रहेगा और कोई समीक्षा नहीं की जाएगी।
इनकार, और इनकार
बेरोजगारी देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है, खासकर उन परिवारों के लिए, जिनके बच्चे बेरोजगार हैं। ‘रोजगार और कौशल विकास’ शीर्षक अध्याय 12, में, आर्थिक सर्वेक्षण ने आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) पर भरोसा जताया है, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया है कि 2023-24 में बेरोजगारी दर घटकर 3.2 फीसद हो गई है। इसे आर्थिक सिद्धांत में पूर्ण रोजगार माना जाएगा। नुकसान को समझते हुए, आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि हमें 2030 तक हर साल 78.5 लाख गैर-कृषि नौकरियां पैदा करने की जरूरत है, जब कामकाजी उम्र की आबादी 96 करोड़ तक पहुंच जाएगी। नियमित/ वेतनभोगी नौकरियों का अनुपात कम हो गया है और स्वरोजगार, जिसमें खुद के खेत भी शामिल हैं, बढ़ गया है। पिछले सात वर्षों में पुरुषों के लिए वेतनभोगी रोजगार में प्रति माह वास्तविक मजदूरी 12,665 रुपए से घटकर 11,858 रुपए हो गई है। स्वरोजगार करने वाले श्रमिकों के लिए वास्तविक मजदूरी में भी गिरावट आई है। जमीनी स्तर पर सभी साक्ष्य (विशेष रूप से निम्न स्तर की नौकरियों के लिए आवेदनों की संख्या) पीएलएफएस के निष्कर्ष का खंडन करते हैं। क्या वित्तमंत्री पीएलएफएस और ईएस से सहमत हैं? इस मामले में उनकी चुप्पी एक तरह से सच्चाई को नकारना है। वास्तविकता यह है कि जीडीपी मध्यम गति से बढ़ रही है, लेकिन बेरोजगारी बढ़ रही है, खासकर युवाओं और स्रातकों के बीच, और रोजगार सृजन ठप है।
पांचवें अध्याय का शीर्षक है ‘विनियमन आधारित विकास’। इकतीस फीसद से कम की वर्तमान निवेश दर और 6.5 फीसद से कम की विकास दर के साथ, आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि हम 2047 तक विकसित देश नहीं बन सकते। ईएस ने सरकार से ‘विनियमन एजंडे को तेज करने और बढ़ाने का आग्रह किया… और लोगों को उनकी एजंसी वापस लौटाने और व्यक्तियों तथा संगठनों की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ाने की दिशा में काम करें।’ ईएस ने फैक्ट्री विनियमन और फुलाए गए नियामक क्षमता सहित नियामक बाधाओं की पहचान की। मैं 1991-96 से विनियमन के उदाहरण दे सकता हूं, जैसे कि सीसीआइ ऐंड ई के कार्यालय को समाप्त करना और ‘फेरा’ को ‘फेमा’ में बदलना। इसी तरह, वित्तमंत्री कुछ कार्यालयों और विनियमों को समाप्त कर सकती थीं। पर वे पीछे हट गईं, और मेरा अनुमान है कि पूरे एक वर्ष तक इस मामले में कुछ नहीं होगा।
कमजोरी
खूब जोर-शोर के साथ ‘मेक इन इंडिया’ अभियान चलाया गया, मगर भारत का विनिर्माण क्षेत्र बहुत छोटा है और मजबूत गति से नहीं बढ़ पा रहा है। ‘उद्योग: व्यावसायिक सुधारों से संबंधित’ शीर्षक अध्याय 7 में ठंडे तथ्य उजागर हुए हैं। वैश्विक विनिर्माण में हमारी हिस्सेदारी 2.8 फीसद है, जबकि चीन की 28.8 फीसद है। विनिर्माण क्षेत्र की जीवीए में हिस्सेदारी 2011-12 में 17.4 फीसद के उच्च स्तर से घटकर 2023-24 में 14.2 फीसद हो गई है। हम विनिर्माण के लिए आवश्यक उच्च-स्तरीय मशीनों का आयात करते हैं। अनुसंधान एवं विकास पर हम जीडीपी का एक फीसद से भी कम खर्च करते हैं। ईएस ने कहा कि आगे का रास्ता विनियमन, अनुसंधान एवं विकास और नवाचार तथा कार्यबल के कौशल स्तर में सुधार के साथ प्रशस्त है। बजट का उत्तरदायित्व योजनाओं और मिशनों को शुरू करने का था। शासन वर्तमान में स्थित है। जहां भी चुनौतियां होती हैं, वहां सरकार को होना ही चाहिए, मगर शासन अनुपस्थित है। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरण्य में एक दूसरी आवाज की तरह हैं।